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Dec 2, 2022

यादेंः यहाँ बदला वफ़ा का बेवफाई के सिवा क्या है...

 - डॉ. दीपेन्द्र कमथान

पद्मश्री, पाँच राष्ट्रीय और छह फिल्म फेयर अवार्ड वाले मोहम्मद रफ़ी साहब की कब्र का नामोनिशाँ नहीं ।

रफ़ी साहब के बिना 42 साल कैसे गुज़र गए कभी महसूस ही नहीं हुआ, रफ़ी की आवाज़ आज भी कानों में ऐसी ज़िंदा है की लगता नहीं हमने उन्हें खो दिया।

24 दिसंबर 1924 को पंजाब के कोटा सुलतानसिंह गाँव में हाजी अली मोहम्मद और अल्लाह रक्खी बाई के घर में छठी संतान के रूप में रफ़ी का जन्म हुआ था । घर में प्यार से 'फ़ीकु' बुलाते थे ।

रफ़ी साहब की दो शादियाँ हुईं।  उनकी पहली पत्नी बाशीरा बीबी उनकी रिश्तेदार थीं जो देश विभाजन के समय हुए दंगों में मारे गए अपने माता -पिता की वजह से लाहौर, पाकिस्तान चली गईं, उनसे एक पुत्र सईद हुए ।

उनकी दूसरी पत्नी बिलकीस बानो थीं, जिनसे उनके 6 बच्चे हुए । उनके बेटे शाहिद  रफ़ी साहब के नाम से एक संगीत अकादमी चला रहे हैं और संगीत के क्षेत्र काफी सक्रिय हैं ।

गली मोहल्ले में गाते हुए एक फ़कीर को सुनकर उनकी  संगीत में रुचि पैदा हुई, जिसको उनके बड़े भाई ने महसूस कर उनको उस्ताद बड़े गुलाम अली खान, बरक़त अली खान, उस्ताद वाहिद खान, पंडित जीवन लाल मट्टू और फ़िरोज़ निज़ामी से शास्त्रीय संगीत की शागिर्दी दिलवाई ।

और सहगल साहब की भविष्यवाणी सच साबित हुई...

लाहौर के एक संगीत समारोह में कुंदन लाल सहगल को गाना था; मगर लाउडस्पीकर में तकनीकी कमी के कारण प्रोग्राम में कुछ विलम्ब हुआ, रफ़ी के बड़े भाई हमीद ने रफ़ी को स्टेज पर खड़ा कर दिया, उनकी आवाज़ जो गूँजी, तो चारों और एक मादक- सा नशा बिखर गया। सहगल साहब ने भविष्यवाणी की कि यह लड़का एक दिन बहुत बड़ा गायक बनेगा ।

मात्र 13 वर्ष की आयु में रफ़ी ने अपना पहला स्टेज प्रोग्राम दिया, जिसको सुनकर  संगीतकार श्याम सुंदर ने उनको मुंबई आने का न्योता दिया और अपनी एक पंजाबी फिल्म ‘गुलबलोच’ में ज़ीनत बेगम के साथ ‘सोनिये नी हीरिये नी’ गाना गवाकर रफ़ी को पार्श्व गायन का पहला मौका दिया ।

हिंदी फिल्मो में संगीतकार नौशाद अली ने 1944 में फिल्म ‘पहले आप’ में गवाया । नौशाद के ही निर्देशन में फिल्म ‘दुलारी’ का गाया गाना ‘सुहानी  रात  ढल  चुकी  ना  जाने तुम कब आओगे’  रफ़ी के लिए मील का पत्थर बन गया जिसके बाद रफ़ी ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा ।

6 फिल्म फेयर अवार्ड में पहला अवार्ड 1961 में फिल्म ‘चौदहवीं का चाँद’ के गाने ‘चौदहवीं का चाँद हो या आफताब’ हो के लिए मिला और छठा फिल्म फेयर अवार्ड 1977 में फिल्म ‘हम किसी से कम नहीं’ के गाने   ‘क्या हुआ तेरा वादा’ के लिए मिला, इसी गाने के लिए उन्हें 1977 में राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला ।

तीन मुस्लिमों ने दिया हिंदी का सर्वश्रेष्ठ ‘भजन’

आज कुछ मौलवी टीवी डिबेट में रफ़ी द्वारा गाया ‘खुदा भी आसमान से जब ज़मीं पर देखता होगा, मेरे मेहबूब को किसने बनाया सोचता होगा’ के ऊपर सवाल उठाते हैं। उनको इस बात का इल्म नहीं कि शकील बदायूँनी का लिखा नौशाद की धुन में पिरोया और रफ़ी की बेहतरीन शास्त्रीय गायन में ढला फिल्म ‘बैजू बावरा’ का भजन ‘मन तड़पत हरि दर्शन को आज’ उन लोगों के मुँह पर तमाचा है, जो धर्म के नाम पर लोगों को बरगलाते हैं ।

            रफ़ी का तानपुरा बरेली में          

जिस तानपुरे पर रफ़ी साहब ने ताउम्र रियाज़ किया, वो तानपुरा हमारे शहर बरेली में धरोहर के रूप में सुरक्षित है ।

बरेली में ‘नाईटएंगिल म्यूजिकल ग्रुप’ के संयोजक एवं महान संगीतकार स्वर्गीय ओ पी नय्यर साहब के शिष्य श्री राज मलिक ने अपने मुंबई प्रवास के दौरान तत्कालीन रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन की भतीजी लीला मेनन से खरीदा था, जो अब उनकी संग्रालय की शोभा बढ़ा रहा है ।

1944 में 3 गीत गाने वाले रफ़ी ने करीब 26000 गाने गाए, जिसमें तकरीबन 238 संगीतकार, 274 गीतकार एवं  206  गायक -गायिकाओं के साथ काम किया ।

संगीतकारों में सबसे ज्यादा 346 गाने शंकर जयकिशन के साथ और गीतकारों में 390 गाने मजरूह सुल्तानपुरी के लिखे गाये ।

उन्होंने 903 गाने आशा भोंसले , 447 लता मंगेशकर,172 गाने शमशाद बेगम, 154 सुमन कल्याणपुर  66 गाने किशोर, और 82 गाने मन्ना डे के साथ सहगान किया ।

रफ़ी ने 12 प्रादेशिक फिल्मों में करीब 79 गाने गाये। इसके अलावा गैर प्रादेशिक फ़िल्मी गीत, गैर फ़िल्मी भजन, नात क़व्वाली और ग़ज़ल भी गाई । रफ़ी साहब ने 2 अंग्रेजी गीत भी गाए ।

9 जुलाई 1986 में बांद्रा में पदमश्री मोहम्मद रफ़ी चौक का नाकरण किया गया एवं 22 सितम्बर, 2007 को  ‘तस्सवर बशीर’ द्वारा डिज़ाइन किए गए रफ़ी के पवित्र स्थल का फज़ले स्ट्रीट, बर्मिंघम, इंग्लैंड में उद्घाटन किया गया ।

भारत चीन युद्ध के समय रफ़ी साहब ने सीमाओं पर जाकर जवानों के हौसले बुलंद किए, उन्हें अपने गीतों के ज़रिये एक नया जोश दिया, हिम्मत दी । कृतज्ञ राष्ट्र ने उन्हें 1967 में  पद्मश्री  से सम्मानित किया ।

कुछ अनजाने तथ्य ...

गिनीस बुक में सबसे ज़्यादा रिकार्डेड गानों की संख्या रफ़ी साहब की है ।

1948 में स्वतन्त्रता दिवस पर रफ़ी को जवाहर लाल नेहरू ने रजत पदक दिया था ।

2001 में हीरो होंडा और स्टारडस्ट मैगज़ीन की तरफ से बेस्ट सिंगर ऑफ़ द मेल्लिनियम का ख़िताब मिला

2013 में रफ़ी को ‘ग्रेटर वॉयस इन हिंदी सिनेमा’ के लिए सबसे ज़्यादा वोट CNN – IBN’S पोल में  मिले ।

रफ़ी फ़िल्मी परदे पर दो फिल्मों के गाने में अभिनय करते दिखाई दिए, जिसमें एक गाना ‘तेरा जलवा जिसने देखा’ फिल्म ‘लैला मजनूं’ (1945) का, और दूसरा गाना ‘वो अपनी याद दिलाने को’ फिल्म ‘जुगनू’ (1947) था !

रफ़ी के ऊपर उनके बच्चों ने किताब प्रकाशित की ।

रफ़ी की बेटी ‘रफ़ी यास्मीन खालिद’ ने 2012 में Mohammad Rafi : Mere Abba – A Memoir (Westland Books,  ISBN no. 9789381626856)

‘रफ़ी शाहिद, देव, सुजाता ने 2015 में’ Mohammad Rafi : Golden Voice of the Silver Screen' (Om Book International, ISBN no. 9789380070971।

- लक्ष्मी प्यारे की पहली फिल्म ‘छैला बाबू’ ( जो बनी नहीं ) में सबसे पहले रफ़ी ने ग़ज़ल गाई- ‘तेरे प्यार में मुझे ग़म मिला तेरे प्यार की उम्र दराज़ हो’ ।

- शंकर जयकिशन की पहली फिल्म ‘बरसात’ का पहला गाना ‘मैं ज़िन्दगी में हरदम रोता ही रहा हूँ’ रफ़ी ने ही गाया था।

- ओ.पी. नय्यर की ‘बाज़ी’  और कल्याण जी आनंद जी की ‘बेदर्द जमाने क्या जाने’ के प्रथम गीत रफ़ी ने ही गाए  

- एस.डी. बर्मन की पहली फिल्म ‘दो भाई’, मदन मोहन की पहली फिल्म ‘आँखें’ ,आर .डी . बर्मन की पहली फिल्म ‘छोटे नवाब’ की पहली फिल्मों के गानों के अलावा रोशन , भप्पी लाहिरी , उषा खन्ना की पहली फिल्मों के गाने भी रफ़ी ने ही गाये थे ।

रविंद्र जैन जिनकी पहली फिल्म ‘राधेश्याम’ (जो सम्भवत: रिलीज़ नहीं हुई ) के गीतों को रफ़ी ने ही स्वर दिया था ।

26 जुलाई और वो आखरी  गीत !

- रफ़ी साहब ने अपना आखिरी गाना जे.ओम प्रकाश की फिल्म ‘आसपास’ का ‘शहर में चर्चा है ये दुनिया कहती है, गली में मेरी एक लड़की कुँवारी रहती है' लता मंगेशकर के साथ 26 जुलाई 1980 को रिकॉर्ड करवाया था, गीत लिखा था आनंद बक्शी ने और धुन बनायी थी लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल ने ।

मोहम्मद रफ़ी फ़िल्मी संगीत के पितामह के रूप में सदा याद किए जाते हैं। फिल्म इतिहास में उनका नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा हुआ है,आज भी उनको उतना ही सम्मान दिया जाता है जितना उनके जीवन काल में दिया जाता था ।

फ़िज़ा का एक एक कण उनको आज भी पुकारता है कि ‘अभी ना जाओ छोड़ कर कि दिल अभी भरा नहीं’ 

पर भगवान् ने शायद यहीं तक का साथ दिया था ...

31 जुलाई 1980 कि उस रात को रफ़ी साहब ‘तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे’ कहते हुए सब से सदा के लिए दूर हो गए।

कंकरीट के बढ़ते जंगल का इंसान अपने लालच में देश दुनिया के इस चहेते कलाकार की कब्र पर जाने कब का बुलडोज़र चला चुका है । रफ़ी के चाहने वाले अब उनकी  कब्र के नज़दीक लगे एक नारियल के पेड़ के पास इकट्ठे होकर श्रद्धांजलि देते हैं ।

लेखक  के  बारे  में : भारतीय सिनेमा का इतिहास (फिल्मोग्राफी) का संग्रह,  शिक्षा- ऍमएससी, पीएचडी (रसायन), पीजीडीजेएम्एस (मास कॉम), एमबीए । सम्पर्क : जे -10, रामपुर गार्डन, बरेली -243001, मो. 9837042827

11 comments:

  1. Anonymous05 December

    He is the ultimate singer ever to be born on this universe.hum tho chale pardesh hum pardeshi ho gaye...

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  2. Anonymous05 December

    Kya baat hai beautifully written Rafi sahab humare dilon mein amar hai

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  3. Atul chaturvedi05 December

    Great discription of the legend mohd rafi. His songs are evergreen and will be remembered for ever.

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  4. Anonymous05 December

    Kamthan ji , your article is very very nice. Keep it up to give better knowledge and entertainment to viewers.

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  5. Anonymous05 December

    Rajeev Mohan

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    1. Anonymous05 December

      Dhanyawad

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    2. दीपेन्द्र कमथान05 December

      क्या आप सोच सकते हैं कि कभी 1940-50 में मिट्टी के तेल- Kerosene- का भी विज्ञापन आया करता था जिसे बर्मा शैल कम्पनी ने मोहम्मद रफी से गवाया था उस समय सिर्फ रेडियो ही हुआ करता था !

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  6. Anonymous05 December

    Congrats Dr Kamthan for enriching such a knowlegable subject .keep it up Dear for such hidden context fading away day by day.

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  7. Anonymous05 December

    Rajesh Sharma

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  8. Anonymous19 October

    Excellently compiled...Congratulations

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