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Oct 1, 2022

कविताः मन का रावण

 - डॉ. उपमा शर्मा

हों एकजुट जब हर बुराई

मन का रावण तब हरषाया।

पुतला हम हर साल जलाते

मन का रावण कहाँ जलाया।।

 

नित यहाँ सीता का अपहरण

राम न कोई आगे आए।

रोज़ पाप की लंका बनती

इसको आकर कौन जलाए।

 

अपहृत सीता रही इस युग

नहीं किसी ने आन छुड़ाया।।

पुतला हम हर साल जलाते

मन का रावण नहीं जलाया।।

 

कपट भरा कितना मन भीतर

झूठ बोलना कभी न छोड़ा।

सच्चाई की राह चलेंगे

वादा यह कितनों ने तोड़ा ।

 

राग झूठ के ही वे गाते

द्वेष न मन से कभी मिटाया

पुतला हम हर साल जलाते

मन का रावण कहाँ जलाया।।

3 comments:

  1. nilambara.shailputri.in06 October

    बहुत सुंदर, हार्दिक बधाई शुभकामनाएं

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  2. सुंदर कविता,हार्दिक बधाई

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  3. Anonymous08 October

    अति सुंदर कविता। हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर।

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