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Sep 3, 2021

नवगीत - होम करते हाथ जलें

-क्षितिज जैन अनघ


यज्ञ नहीं रुकना

चाहिए, चाहे होम

करते हाथ जलें।

 

पूरी प्रजा का डाल

दिया, कुछेक

अभागों पर भार

और मढ़ दिए

माथे पर,दान

और परोपकार।

 

समझ नहीं आता

बेचारें, भार उठाएँ

या आगे चलें?

 

जिनका धर्म बन

चुका, जीवन

भर त्याग

उन्हें मिलती बस

ताड़ना, दूभर

कोई अनुराग।

 

देश के स्तम्भ

बनकर,गए हैं

केवल छलें।

 

सरकार आजतक

एक ही, बात  

कहती है आई

समाज की संपत्ति

है बस,उनकी

गाढ़ी कमाई।

 

मुफ्तखोरों से तो

लेकिन, ये लाख

गुना हैं भलें।

2 comments:

  1. बेतरतीन रचना , मध्यम वर्ग का कटु सत्य प्रस्तुत कर दिया है आपने लेखक महोदय , धन्यवाद 🙏 लिखते रहिये

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  2. बहुत सुंदर सटीक कविता।

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