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Jan 1, 2021

लघुकथा- पेट पर लात

 पेट पर लात

-विक्रम सोनी

उसे आज भी मजदूरी नहीं मिली। मजबूत कदकाठी का था। अत:, भीख माँगना उसको बीमार बना देता। शहर भर की सड़क नापने के बाद वह मोटर स्टैण्ड के शैड में सुस्ताने बैठ गया है। करीब ही एक बाबू पेटीबिस्तर पर बैठे इधरउधर देख रहे थे। उसने पूछा, ‘सामान ढोना है बाबू जी ? चलिये मैं पहुँचा दूँ, कहाँ चलियेगा ?’’

‘‘धामपुर! क्या लोगे?’’

‘‘सोच समझकर दे दीजिएगा।’’

‘‘फिर भी ! तय रहे तो अच्छा है न?’’

‘‘पाँच रुपये।’’

‘‘चलो!’’

वह अभी पेटी उठवा ही रहा था, दोतीन वर्दीधारी कुली आ धमके। एक ने बाबू जी से कहा, ‘आप लोग पढ़ेलिखे होकर भी लायसेन्स वाले कुलियों को चोर समझते हैं। जानते हैं ये कुली बन गँवार जैसा आदमी कौन है? शहर के नामी गुण्डे जग्गी का खास पट्ठा। अभी ले जाकर रास्ते में आपको नंगा कर देता।

वह हक्काबक्का कभी कुली की तरफ कभी बाबू जी की तरफ देख रहा था। वह कुछ बोलता, इससे पहले ही कुली ने उसके गाल पर एक तमाचा जड़ते हुए कहा, ‘‘जा ! अपने बाप से कह देना, यह मेरा इलाका है।’’ फिर वह बाबू जी की ओर पलटा, ‘‘जाइए आपको हमारा साथी सुरक्षित पहुँचा आएगा।’’ कहाँ जाइएगा?’’

‘‘धामपुर!’’

‘‘पन्द्रहरुपये कुली को दे दीजिएगा।’’

बाबू जी भी डर गए थे। उनके जाते ही उसी मरियल कुली ने उससे कहा, ‘‘कौन है बे? आइन्दा पेट पर लात मारने इधर आया, तो अंतड़ी निकाल लूँगा समझा! चल भाग यहाँ से।’’

 वह बाहर आतेआते सोच रहा था, कौन किसके पेट पर लात मार रहा है?

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