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Mar 16, 2019

जब्त शुदा गीत

रचनाकाल- सन 1930
कहता यही रहूँगा।

जन्मभूमि जननी, सेवा तेरी करूँगा,
तेरे लिए जिऊँगा, तेरे लिए मरूँगा।

हर जगह, हर समय में, तेरा ही ध्यान होगा,
निज देश-भेष-भाषा का भक्त मैं रहूँगा।

संसार की विपत्ति हँस-हँस के सब सहूँगा,
तन-मन सभी समर्पित, तेरे लिए, जननी!

पर देश-द्रोही बनकर यह पेट नहीं भरूँगा,
धन-माल और सर्वस्व, यह प्राण वार दूँगा।

होगी हराम मुझको, दुनिया की ऐशो-इशरत,
जब तक स्वतंत्र तुझको, माता मैं कर लूँगा।

कह-कह के माता! तेरे दुख-दर्द की कहानी,
भारत की लता-पेड़ों तक को जगा मैं दूँगा।

हम हिन्द के हैं बच्चे, हिन्दोस्तां हमारा,

मैं मात! मरते दम तक कहता यही रहूँगा।

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