सतयुगी सावित्री का पुनर्जन्म
-विजय जोशी
होते हैं बलिदान कई, तब देश खड़ा होता है
अपने प्राणों से भी बढ़कर देश बड़ा होता है.

रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने थल सेना अध्यक्ष जनरल दलबीर सिंह की सिफारिश और सहमति पर उन्हें आयु में छूट की अनुमति प्रदान की. अगली सीढ़ी थी भर्ती हेतु आवश्यक एस. एस. बी. टेस्ट को उत्तीर्ण कर पाने की. इसके लिये उन्हें अपने पुत्र एवं पुत्री को बोर्डिंग स्कूल में भर्ती करना पड़ा ताकि वे इस प्राथमिक टेस्ट हेतु तैयारी कर सकें. आगे की यात्रा और अधिक कठिन थी जब सुधा को चेन्नई स्थित आफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी में अपने से कम से कम 10 वर्ष छोटे युवा प्रतिभागियों के समकक्ष खरा उतरना था. अब आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि अपने दुख और अपूरणीय क्षति को परे रखकर हृदय को संतुलित रख पाना कितना कठिन रहा होगा. यदि आज कर्नक महाडिक भी जीवित होते तो अपनी सहधर्मिणी की संकल्प शक्ति, दृढ़ आत्मविश्वास,कठिन परिश्रम व लगन को देखकर अभिभूत हो गए होते.
बात का सार सिर्फ इतना सा है कि सुधा ने भारतीय नारी शक्ति के साहस व सामर्थ्य को देश के प्रति समर्पण के चिरस्थायी प्रतीक के रूप में देश के जनमानस के हृदय पटल पर हमेशा के लिये एक अमिट रेखा खींच दी. उस दौर की सावित्री को हम में से किसी ने नहीं देखा, लेकिन इस युग की सावित्री यानी सुधा महाडिक उससे किसी भी मायने में कमतर नहीं है. इसीलिये तो हमारे देश में नारी के शक्ति रूप की दुर्गा स्वरूप उपासना की गई है : या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:.
- जग के मरुथल में जीवन की
- नारी ज्वलंत परिभाषा है
- ममता की, त्याग, तपस्या की
- यह श्रद्धा की परिभाषा है
10वीं की किताब में 'सम्मान एक महिला फौजी का'
शहीद कर्नल संतोष महादिक की पत्नी स्वाति महादिक के जीवन के संघर्ष की कहानी को मराठी पाठ्यपुस्तकों का हिस्सा बनाया जा रहा है. जहां उनकी साहस और प्रेरणादायक कहानी को 10वीं कक्षा की मराठी किताब में एसएससी बोर्ड (सेकेंडरी स्कूल सर्टिफिकेट) के द्वारा पढ़ाया जाएगा.
पति की मौत के बाद देश के प्रति अधूरी जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए स्वाति ने सेना का दामन थाम लिया था. जिसके बाद राज्य शिक्षा विभाग ने उनके जीवन के संघर्ष की कहानी को मराठी पाठ्यपुस्तकों का हिस्सा बनाने का फैसला किया.
10वीं की किताब में 'सम्मान एक महिला फौजी का' के नाम से ये चैप्टर होगा. जिसमें स्वाति की कहानी पढ़ाई जाएगी. बता दें, स्वाति ने पिछले वर्ष 'ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकादमी', चेन्नई से ट्रेनिंग हासिल की है.
सेना जॉइन करते हुए स्वाति ने बताया कि मेरे पति का पहला प्यार उनकी वर्दी थी, इसलिए मुझे एक दिन तो इसे पहनना ही था. लेफ्टिनेंट स्वाति ने अपने पति की शहादत के बाद सेना में शामिल होने की इच्छा जताई थी. बता दें, स्वाति ने शिवाजी विद्यापीठ से बीएससी और एमएसडब्लू की पढ़ाई की. फिर पुणे के महानगरपालिका में झोपडपट्टी पुर्नवास में कुछ समय नौकरी करने बाद उनका विवाह महाराष्ट्र के सातारा जिले में रहने वाले कर्नल संतोष महादिक के साथ हुआ था.
बता दें, ऑफिसर कर्नल संतोष महादिक साल 2015 को देश की सेवा करते समय जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में नियंत्रण रेखा के पास आतंकियों से लड़ते हुए शहीद हो गए थे. जिसके बाद उनकी पत्नी स्वाति ने सेना से जुडऩे का निश्चय किया था.
स्वाति और संतोष के दो बच्चे हैं. एक लड़का और एक लड़की. उनके लिए दोनों बच्चों की परवरिश एक बड़ी जिम्मेदारी थी. वहीं उन्होंने न सिर्फ बच्चों को संभाला बल्कि अपने पति के अधूरे सपने को भी पूरा किया.
शौर्य से सम्मान
जीवन में साहसपूर्वक सम्पन्न कार्य शौर्य के प्रतीक बनते हुए व्यक्ति को सम्मान का सिंहासन प्रदान करता है। पर इसके लिए आवश्यक है संकट के समय आत्म विश्वास को सहजते हुए निर्णय लेना और फिर उस पर बिना डिगे टिके रहना।
विश्वयुद्ध द्वितीय ऐसी अनेक शौर्य गाथाओं से भरा हुआ है । लेफ्टिनेंट कमांडर बुच ओ हेयर एक साहसी पायलट थे। जिनकी तैनाती दक्षिण प्रशांत महासागर में उपस्थित एयर क्राफ्ट कैरियर जहाज लेक्सिंगर पर थी। एक दिन पूरी वायु टुकड़ी को मिशन पर भेजा गया । हेयर ने उड़ान के तुरंत बाद पाया कि उनके प्लेन में पेट्रोल कम था। जहाजकर्मी टेंक भरना भूल गया था।
अतः मिशन लीडर ने उन्हें लौटने का आदेश दिया। जब वे लौटने लगे तो अचंभित होकर देखा कि जापान वायु सेना की एक टुकड़ी जहाज की ओर तेजी से बढ़ रही थी। अमेरिकी जहाज दूर मिशन पर थे तथा जहाज असुरक्षित. हेयर के पास वापिस लौटकर अपनी स्क्वेड्रन को ला पाने का न तो समय था और न ही ईंधन. जहाज बचाना भी आवश्यक था। केवल एक उपाय था कि किसी तरह जापानी वायु दल को लौटने पर विवश किया जाए।
हेयर ने एक पल में निर्णय ले लिया तथा जापानी वायु टुकड़ी की दिशा में अपनी दिशा कर दी। उनका एकमात्र लक्ष्य जापानी प्लेनों को अधिकतम संख्या में नुकसान पहुंचाना था। एक एक करके उन्होने 5 प्लेनों को क्षतिग्रस्त कर दिया । हताश होकर जापानी वायु दल को लौटना पड़ा।
हेयर अपने क्षतिग्रस्त प्लेन के साथ जहाज पर लौट आए। प्लेन में लगी गन कैमरा की फिल्म ने उनके इस दुस्साहसपूर्ण साहस की कथा को प्रमाणित कर दिया।
यह घटना 20 फरवरी 1942 को हुई। हेयर को प्रथम नेवल हवाबाज मेडल से सम्मानित किया गया। एक वर्ष बाद वे हवाई मुकाबले के आपरेशन में मारे गए। नगर निवासियों ने उनकी याद को अमर रखने हेतु शिकागो एयर पोर्ट को हेयर ऐयरपोर्ट नाम प्रदान किया जो उनकी शौर्य का ज्वलंत प्रमाण है। अगर आप कभी जाएं तो यह मेडल तथा उनका स्टेच्यू भी आप आज वहां पाऐंगे । यह टर्मिनल 1 तथा 2 के मध्य स्थापित है।
मित्रों मनुष्य के जीवन में जन्म के बाद केवल एक बात सुनिश्चित है और वह है मृत्यु. एक दिन हम सबको चले जाना है। पर इतिहास में वे ही अपना नाम कर पाए जो समाज व देशहित में स्वयं को समर्पित कर पाए। यहां संदर्भ प्राणों के उत्सर्ग का नहीं अपितु देश के लिए कुछ कर पाने के मिशन का है। देश है तो हम हैं, देश नहीं तो फिर हम भी कहां होंगे। याद रखिये हम देश से हैं। देश हमसे नहीं।
जीवन रण में वीर पधारो
मार्ग तुम्हारा मंगलमय हो
गिरी पर चढ़ना, चढ़कर बढ़ना,
तुमसे सब विघ्नों को भय हो
सम्पर्क: 8/ सेक्टर-2,
शांति निकेतन (चेतक सेतु के पास), भोपाल- 462023, मो.
09826042641, E-mail- v.joshi415@gmail.com
अप्रतीम लेखन। Hats off to respected joshi Sahab. Regards
ReplyDeleteIt is courtesy RatnaJi for her motivational support
ReplyDelete- तिरंगे ने मायूस होकर सियासत से पूछा ये क्या हाल हो रहा है
- मेरा लहराने में कम और कफन में ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है
Kind Regards : Vijay Joshi