- रश्मि शर्मा
ओ मेरे मानसून पाखी
हर दिन भोर में
आँख खुलते ही
सुनती हूँ तेरी पिउ-पिउ
और जानती हूँ
प्यास की समाप्ति? का
मौसम है ये
तू साथ अपने
बूँदे लेकर आया है
मेघों को संग लाया है
तेरी पिउ-पिउ सुन
मेरा भी जी भर आया है
ओ मेरे मानसून पाखी
स्वाति? बूँद की आस
तुझे भी है मुझे भी
तू बुझा ले
अपने मौसमों की प्यास
मुझे भी मिलेगा चैन
मिटेगी, जन्मों की प्यास
जब होगा मिलन पिया से
इन्हीं ख्वाहिशों में
इस बरस बारिशों में
ओ मेरे मानसून पाखी
जब तेरे पंखों में
घुल जाए पावस के रंग
तब उड़ जाना तू
दूर पिया के देस
उन तक ले जाना तू
मेरी बरसती आँखों के संदेस।
दुनिया के चितेरे ने
कूची से अपने
रंग दिया
आसमान को
कहीं गाढ़ा नीला
तो कहीं है
बदरंग-सा धब्बा
उस नीले आसमान की
छाती पर
टँका है आज
पीला उदास चाँद
अपनी मरियल
रौशनी के साथ
आषाढ़ की बूँदों को तो
निगल लिया
सूरज के प्रखर
ताप ने
अब ढलती रात को
काले बादलों का ग्रास
बन गया है पीला चाँद
क्या अबकी सावन
बरसेगा झमाझम
ऐ पीले चाँद
तुम न आना आज
आसमान पर
कहीं ऐसा न हो कि?
सावन रूठ जाए...।
सम्पर्क: रांची, झारखंड, E-mail- rashmiarashmi@gmail.com
कविता प्रकाशित करने के लिए बहुत धन्यवाद।
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