उदंती.com

Jul 25, 2017

अम्बर भरता आह!

अम्बर भरता आह! 
- शशि पाधा
ना बादल ना वर्षा बूँदें
मौसम भी बेहाल खड़ा
अम्बर में अकाल पड़ा।

झुर्रियों वाली हुई बावड़ी
ताल-तलैया भूखे से
माथे शिकन पड़ी नदिया के
झाड़-तरु सब रूखे से
अमरु के घर चढ़ी ना हाँडी
स्वाद पेट के संग लड़ा
कैसा यह अकाल पड़ा।

सागर भाप उड़ाना भूले
सूरज चखना भूल गया
बादल सर टकराना भूले
पर्वत भूले दान -दया
टक-टक आँखें, खड़े मवेशी
आस कटोरा अधर धरा
अम्बर भरता आह ज़रा।

ऋतुओँ ने पंचायत साधी
दिशा-दशा में सुलह-सलाह
कथनी-करनी पोथी बाँची
कौन है मुज़रिम, कौन गवाह
कारण-कारज, बहस मुबाहसा
पाप सभी के माथ जड़ा
समझ में आई बात ज़रा।

इंद्र धनु ने घोले सतरंग
मन में कुछ मलाल हुआ
बदली ने भी खोली गठरी
शर्म से मुखड़ा लाल हुआ
पकड़ी सीधी राह धरा की
किया वही फिर काम बड़ा
अम्बर का अकाल डरा !!!!!

No comments:

Post a Comment