उदंती.com

Mar 14, 2014

अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो

अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो

-सुशीला श्योराण 'शील'

रह-रह कानों में
पिघले शीशे-से गिरते हैं शब्द-
अगले जनम मोहे
बिटिया न कीजो
ज़हन में
देती हैं दस्तक
घुटी-घुटी आहें
कराहें
बिटिया होना
दिल दहलाने लगा है
कितने ही अनजाने खौफ
दिल पालने लगा है
मर्दाने चेहरे
दहशत होने लगे हैं
उजाले भी,
अँधेरों-से डसने लगे हैं!
बेबस- से पिता
घबराई-सी माँ
कब हो जाए हादसा
न जाने कहाँ!
कुम्हला रही हैं
खिलने से पहले
झर रही हैं
महकने से पहले
रौंद रहे हैं
मानवी दरिंदे
काँपती हैं,
ज्यों परिंदे
अहसासात
मर गए हैं
बेटियों के सगे
डर गए हैं।

सम्पर्क: बद्रीनाथ- 813, जलवायु टावर्स, सेक्टर- 56, गुडग़ाँव- 122011, मो. 09873172784, Email - sushilashivran@gmail.com

No comments:

Post a Comment