लो कर दिए अब रिश्ते
नामों की क़ैद से आज़ाद मैंने
उडऩे लगे वे खुले आसमान में
अपने खूबसूरत पंख फ़ड़फ़ड़ाते।
देर तक इन्हें पिंजरों में
हिफाज़त से बंद रखा था
बाहर जीव-जंतुओं का
खतरा जो बहुत था।
जब पिंजरों के सीखचों से
सर पटकते पाया इन्हें
इनके लहूलुहान माथों ने
समझाया मुझे
कि
बाहर के
खुले आसमान में
ज़ख्म तो इन्हें
लगेंगे ही
पर, वे भरेंगे भी
रूह तो ज़ख्मी नहीं होगी!!
उँगलियों की फितरत
रेत पर लिखी हुई
तहरीर मिट ही जायेगी
वक्त के समंदर का
एक तेज़ ज्वार जो आएगा
साहिल की सारी इबारतें
समेटता चला जाएगा!
यह और बात है
कि लिखना
उँगलियों की फितरत है।
मिटने के डर से
उँगलियाँ कहाँ थमती हैं ?
उन्हें रोशनाई मयस्सर न हो
तो भी वे लिखती हैं
लिखना उनकी फितरत जो है!
Email- rekha.maitra@gmail.com
बनी रहे फितरत ॥चलती रहे लेखनी ।
ReplyDelete