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Sep 26, 2013
दर्द भरी आवाज़
दर्द भरी आवाज़
-फ़िराक़ गोरखपुरी
जो न मिटे ऐसा नहीं कोई भी संजोग
होता आया है सदा मिलन के बाद वियोग।
जग के आँसू बन गए निज नयनों के नीर
अब तो अपनी पीर भी जैसे पराई पीर।
मैंने छेड़ा था कहीं दुखते दिल का साज़
गूँज रही है आज तक दर्द भरी आवाज़।
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