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Jan 18, 2013

नारी कहाँ नहीं हारी


नारी कहाँ 
नहीं हारी 
-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु

नारी कहाँ नहीं हारी
अस्मत की बाज़ी
दाँव पर लगाते रहे
सभी सिंहासन
सभी पण्डित, सभी ज्ञानी
सतयुग हो या कि कलयुग
कायरों की टोली
देती रही अपनी मर्दानगी का सुबूत
इज्ज़त तार-तार करके
देवालयों में मठों में नचाया गया
धर्म के नाम पर
कुत्सित वासना का शिकार बनाया गया।
विधवा हुई तो उसे जानवर से बदतर
'सौ-सौ जनममरने का गुर सिखाया गया,
रूपसी जब रही
तब योगी-भोगी ऋषिराज-देवराज
सभी द्वार खटखटाते रहे
छल से बल से
अपना शिकार बनाते रहे।
जब ढला रूप मद्धिम हुई धूप
उसे दुरदुराया, लतियाया
दो टूक के लिए
बेटों ने, पति ने, सबने  सदा ठुकराया!
व्यवस्था बदल देंगे सत्ता बदल देंगे!
लेकिन एक यक्ष प्रश्न मुँह बाए खड़ा है-
क्या संस्कार बदल पाएँगे?
किसी दुराचारी के
स्वभाव की अकड़ तोड़ पाएँगे
क्या धन-बल, भुज-बल के मद से टकराएँगे?
कभी नहीं!!!
रिश्ते भी जब भेड़िए बन जाएँ
तब किधर जाएँगे?
क्या किसी दुराचारी, पिता, मामा, चाचा आदि को
घरों में घुसकर खोज पाएँगे?
सलाखों के पीछे पहुँचाएँगे ? या
इज्ज़त के नाम पर सात तहों में छुपकर
आराम से सो जाएँगे!
और नई कुत्सित दुर्घटना का इन्तज़ार करके
समय बिताएँगे!
किसी कुसंस्कारी का संस्कार
किसी बदनीयत आदमी का स्वभाव
बदल पाएँगे?
जब ऐसा करने निकलोगे
क्या सत्ता में बैठे जनसेवकों
मठों में छुपे महन्तों,
अनाप-शनाप बोलने वाले भाग्य विधाताओं,
शिक्षा केन्द्रों में आसीन भेडिय़ों को
उनके क्रूर कर्मों की सज़ा दिलवा पाओगे?
शायद कभी नहीं, क्योंकि
सत्ता के कानून औरों के लिए हैं,
मठों में घिनौनी सूरत छिपाए
वासना के कीड़ों पर उँगली उठाना
हमारी किताबों के खिलाफ़ है।
अगर कुछ भी बदलना है तो
ज़हर की ज़ड़ें पहचानों
उसे काटोगे तो वह फिर हरियाएगी
समूल उखाड़ो!
बहन को बेटी को, माँ को उसका सम्मान दो
हर मर्द की एक माँ ज़रूर होती है
जब कोई भेड़िय़ों की गिरफ़्त में होता है,
उस समय माँ ही नहीं पूरी कायनात ही
 लहू के आँसू रोती है।

संपर्क: मोबाइल नं. 09313727493 

1 comment:

  1. एक कड़वे सच को उजागर करती "नारी" पर ये रचना दिल को छू गई काम्बोज की मेरी हार्दिक बधाई...

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