- सुदर्शन रत्नाकर
1.प्यार
प्यार से छू लो तो
कलियाँ
निखर आएँगी
मौसम की
पत्तियाँ हैं
लहराने दो
पतझड़
आने पर स्वयं ही
बिखर जाएँगी।
2.नदी बन जाऊँ।
मैं बरसों से
प्रतीक्षा कर रही हूँ
उस उजली धूप और
हरी दूब के लिए,
जहाँ एक नदी बहती हो
और मैं भी हिमखंड-सी पिघलती
नदी बन जाऊँ।
निरन्तर गतिशील बहती
अँजुरी-अँजुरी प्यार बाँटती
सागर की गहराइयों में
कहीं खो जाऊँ।
3. उधार की जिंदगी
घोंसला बनाने की चाह में
ज़िन्दगी भर वह
जिंदगी को ढोता रहा
पर
न तो उसे ज़िन्दगी मिली
और
न घोंसला।
टूटता रहा
वह पल-पल
जीता रहा उधार की जिंदगी।
अलग अलग भाव भूमि की मार्मिक कविताएँ। हार्दिक बधाई
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ReplyDeleteबहुत सुंदर कविताएँ।
ReplyDeleteबहुत उम्दा कविताएं हैं मैम की 👌
ReplyDeleteखूब बधाई 🌹
बहुत सुंदर कविताऍं, हार्दिक शुभकामनाऍं।
ReplyDeleteआदरणीया
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर एवं संवेदनशील भाव समाहित रचनाधर्मिता हेतु मेरी हार्दिक बधाई। सादर
विजय जोशी जी, शिवजी श्रीवास्तव जी,भीकम सिंह जी, नंदा पांडेय जी, अनिता सैनी जी प्रतिक्रिया देकर प्रोत्साहित करने के लिए हार्दिक आभार ।सुदर्शन रत्नाकर
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