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Sep 1, 2024

कविताः गाँव की अँजुरी ?

  - निर्देश निधि

जो गाँव की अँजुरी में 

छलछलाईं  फिर से पोखरें 

और खिलखिलाए फिर किसी दिन

उसकी हथेलियों पर 

नरम, फुलकारी से कपास के श्वेतवर्णी फूल 

तो टलते रहेंगे संकट 

 

जो गाँव के चबूतरों पर

लौटीं कभी फिर से 

टेलिविज़न और मोबाइलों के सैलाब में 

बह गईं  चौपालें

फिर गुड़गुड़ा उठे हुक्के, 

हुक्कों पर खिल उठीं 

अगनफूलों- भरी चिलम 

और फिर से जी उठे अंतहीन 

किस्से बुजुर्गों के 

तो भी टलते रहेंगे संकट 

 

जो कंक्रीटों की क़ैद से मुक्त होकर 

पसर जाएँगे हरे कालीनों वाले 

चरागाह दूर तलक 

गाँव की सीमाओं के उदर पर

बज उठेंगी एक बार फिर से घंटियाँ 

आते - जाते पशुकुल की 

मर जाएँगे सारे के सारे अवसाद उनके 

तो भी टलते रहेंगे संकट 

 

जो पितामह की हर टेर पर

दौड़े आएँगे अंग्रेज़ीदाँ घर के किशोर

अस्मिताएँ स्त्रियों की होंगी कोहिनूर से कीमती

सुने जाएँगे उनके मन के सब आलाप

मासूम बने रहेंगे बचपन 

साफ़ रहेंगे पंख हवाओं के 

तो भी देखना टलते रहेंगे संकट


6 comments:

  1. Anonymous04 September

    बहुत सुंदर कविता । हार्दिक बधाई । सुदर्शन रत्नाकर

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  2. अनिता मंडा06 September

    सुंदर सकारात्मक कविता।

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  3. बहुत सुंदर भाव, सुन्दर कविता !

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  4. कितने सुंदर भाव और कितनी सुंदर अभिव्यक्ति ! वाह बधाई निर्देश जी💐

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  5. बेहतरीन कविता

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