( पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल (म. प्र.)
किसी से कोई भी उम्मीद रखना छोड़ कर देखो
फिर देखो किस कदर ये जिंदगी आसान हो जाये
जीवन उम्मीदों का अपार संसार है और यही हमारी यात्रा की नौका भी है और पतवार भी। लेकिन उम्मीदों से बहुत ज्यादा की आस पाल लेना दुख का कारण भी बन सकता है, यदि हम उस स्वावलंबन की लक्ष्मण रेखा लांघकर परावलंबन की सरहद में पहुँच जाएँ। जीवन में खुद की उम्मीद पूरा करने की आकांक्षा के दूसरों की उम्मीदों पर खरा उतरने पाने का प्रयास करने से अधिक सुखकारी है।
इस संदर्भ में एक सुंदर वृत्तांत से मेरा सामना हुआ। पत्नी ने दिनभर की थकान के बाद रात के भोजन के समय थाली में दाल सब्जी के साथ किसी हद जली हुई रोटी पति को परोसी। पुत्र बड़े मनोयोग से सारा दृश्य निहार रहा था। उसके लिए आश्चर्य अभी प्रतीक्षा सूची में तब तक था, जब उसने देखा कि माँ सॉरी कह पाती, उसके पूर्व ही उसके पिता ने जली रोटी के साथ भोजन बिल्कुल आनंदपूर्वक ग्रहण करना आरंभ कर दिया।
पुत्र से रहा नहीं गया। उसने भोजन उपरांत पिता से देर रात्रि अकेले में धीमे स्वर में पूछा कि क्या उन्हें सचमुच में जली रोटी पसंद आई थी। और तब जिस सत्य से उसका साक्षात्कार हुआ उससे उसकी आँखें भर आईं ।
पिता ने कहा - तुम्हारी माँ सारे दिन काम करते हुए थक जाती है। गृहस्थी की गाड़ी खींचने में। सारा दिन काम करते- करते शाम तक थककर निढाल हो जाती है। उसके त्याग से परिपूर्ण प्रेम के सामने मुझे रोटी के जले होने का एहसास ही नहीं हुआ। ऐसे अवसर पर यदि मैं कुछ भी कटु शब्द कह भी देता, तो शायद अपनी नजर में खुद गिर जाता।
पिता ने अपनी बात आगे जारी रखी - सारा संसार और हमारा अपना जीवन अनेक कमियों से परिपूर्ण है। ऐसे में दूसरों में कमियाँ ढूँढकर हम अपनी कमियों पर परदा नहीं डाल सकते। सो श्रेष्ठ यही होगा कि हम सब जैसे भी हैं, एक साथ संतुष्टि का भाव अंतस् में समाकर प्रसन्नतापूर्वक जीने की कला सीखें।
बात बहुत सरल, सामायिक और सार्थक है। हमें दूसरों से आवश्यकता से अधिक उम्मीद रखने के बजाय अपनी कमियों की ओर अंदर झाँकते हुए सबके साथ जीने की कला को व्यक्तित्व में अंगीकार करना चाहिए। जीवन बहुत छोटा है। उसे दुख, अवसाद, असंतोष के साथ जीने के बजाय उपलब्ध की कद्र करते हुए जीने की कला सीखना चाहिए। याद रखिए, किसी से अत्यधिक उम्मीद भी अंततः निराशा का कारण बन सकती है।
जो चाहते हैं, उनसे प्यार करो, उनका सम्मान करो, उनकी कद्र करो। जो नहीं करते उनसे सहानुभूति रखो। याद रखो, जो आपको पसंद नहीं करते, उन पर समय बर्बाद मत कीजिए। जो चाहते हैं उनकी कद्र कीजिए, उनका सम्मान कीजिए। और कहिए:
कितने हसीन लोग हैं, जो मिलके एक बार
आँखों में जज़्ब हो गए दिल में समा गए। ■
सम्पर्क: 8/ सेक्टर-2, शांति निकेतन (चेतक सेतु के पास), भोपाल-462023, मो. 09826042641, E-mail- v.joshi415@gmail.com
दूसरों के प्रति संवेदनशील होना सम्बधों को प्रगाड़ता देता हैl सहनशीलता संबंधों को मजबूती देती हैl आपने दृष्टांत से ये दोनों पक्ष बहुत ही स्पष्ट उजागर किये है l
ReplyDeleteआदरणीय
Deleteआप तो मेरे मनोबल अभिवृद्धि हेतु गुरु सम हैं। आभार बहुत छोटा शब्द है, एहसास बड़ा। सो इस अनुभूति के साथ हार्दिक आभार सहित सादर
सुखी और संतुष्ट जीवन के लिए आपने बहुत सरल ढंग से गुरूमंत्र दिए हैं । बहुत सुंदर। साधुवाद । सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteआदरणीया,
Deleteआपका व्यक्तित्व अद्भुत है। सदा सबको प्रोत्साहित करने वाला। हार्दिक आभार सहित सादर
प्रेरक और दिशाबोध करता...अपना अंतस टटोलने के लिए बाध्य करता आलेख। मेरा भी यही मानना है की भोजन बिना किसी मीन मेख के ग्रहण करना चाहिए पूरे आनंद के साथ।
Deleteबहुत सुंदर !! जीवन की हर घटना का साक्षी बनै और यह ध्यान रहे कि जन्म से आख़िरी समय तक भगवत प्राप्ति के लिए अग्रसर रहे !!
Deleteप्रिय विवेक
Deleteस्नेह बनाये रखना। हार्दिक आभार सहित सस्नेह
आदरणीय सर,
ReplyDeleteबहुत ही प्रेरणादायक लेख।
"किसी से कोई भी उम्मीद रखना छोड़ कर देखो
फिर देखो किस कदर ये जिंदगी आसान हो जाये"
प्रिय महेश, त्वरित प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार। सस्नेह
DeleteVery nicely brought a very deep thought of tolerance and empathy. Very true we can't, better not to have expectations from others.
ReplyDeleteS N Roy
Very nicely brought out a very deep thought of tolerance and empathy. Very true we can't have perpetual expectations, better not to have.
ReplyDeleteSN Roy.
S N Roy
Thanks very very much sir. Kindest regards
DeleteThanks very very much sir for your fastest response and blessings. Kind regards
ReplyDeleteसदा की भाँति इस लेख में भी आपने सफल शांतिमय जीवन का गूड़ रहस्य समझाया है। वाक़ई जीवन में क्लेश का कारण दूसरों से की गई अपेक्षायें ही हैं । जीवन के चलते हमारी अपेक्षायें भी बड़ती जाती हैं साथ ही जीवन में असंतोष भी । और यही यदि हम अपने आप को क़ाबू कर अपेक्षाएँ छोड़ दें तो जीवन आनन्दमय हो जाएगा । आपने सही मुद्दे को इंगित किया है।
Deleteअशोक मिश्रा
प्रिय बंधु अशोक
Deleteसही कहा। सुख, दुख, संतोष, असंतोष सब मानसिकता आधारित मन की अवस्थाएं हैं। अति महत्वाकांक्षी व्यक्ति कभी सुखी नहीं देखा होगा। हार्दिक आभार सहित सादर
आदरणीय सर, बहुत ही खूबसूरत तरीके से लिखा हुआ है। आपके लेखन का कोई जवाब नहीं है। जीवन को जीने की कला सिखाती हुई छोटी छोटी कहानियां बड़ी बड़ी सीखें बहुत आसान और साधारण तरीके से सिखा देती है। सादर।
ReplyDeleteप्रिय राजीव भाई
Deleteइन दिनों तो आपसे बहुत कुछ सीखा है तथाआपके झांसी स्थित सहयोगियों की ज़ुबान के माध्यम से। उस इकाई में आप आदर्श साथी रहे हैं सबके लिये। सो मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये। सादर
बिना उम्मीद के प्राप्य अपार आनन्द दायी रहा है सदैव और उम्मीद पर पानी फिरना अत्याधिक कष्टदायी। अतः जीवन की समरसता के लिए दोनो हाल मे प्रभु इच्छा समझ कर प्रसन्न रहे यही आपके आलेख का भी मन्तव्य है।सादर
ReplyDeleteप्रिय राजेश भाई
Deleteआज आपके साथ सत्संग का सुख पुनः प्राप्त हुआ। प्रभु सर्वोपरि है यह मान लिया तो जीवन में आनंद ढूंढने बाहर नहीं जाना पड़ेगा। हार्दिक आभार सहित सादर
अतिसुंदर, सारगर्भित लेख। अपने जीवन को सुगम बनाने में अपनी जीवनसंगिनी के योगदान और सहयोग का संवेदनशील मूल्यांकन।
ReplyDeleteहार्दिक आभार मित्र
DeleteDr S K AGRAWAL GWALIOR
ReplyDeleteमार्मिक
ReplyDeleteगंभीर अर्थ
साधुवाद, चिंतन का
सार्थक सोच
जय हो जोशी जी की
प्रिय बंधु डॉ. श्रीकृष्ण
Deleteहार्दिक आभार सहित सादर
बहुत अच्छी व सार्थक बात कही आपने.. पर यह समझ तभी आ पाती है जब रिश्ते परिपक्व हों.. दोनों एक लम्बा समय साथ गुजार दिए हों.. जैसा कि आपके लेख से भी स्पष्ट है 🙏
ReplyDeleteये हर रिश्ते व संस्थान में भी लागू है पर यह एक आदर्श स्थिति है जो धरातल पर विरले ही मिलती है.
लेख हेतु साधूवाद व बधाई आदरणीय सर 🌹💐
प्रिय रजनीकांत
Deleteजो जीवन में निभा दे रिश्ता वही तो होगा फरिश्ता। यह बात हर जगह पर लागू होती है। हार्दिक आभार सस्नेह
अति उत्तम और प्रेरणा दायक लेख है सर आपका। आपने सही लिखा है कि जीवन रूपी नौका से ज्यादा आश लगाना दुःख का कारण बन जाता है।
ReplyDeleteहार्दिक आभार मित्र
Deleteमननीय चिंतन
ReplyDeleteजीवन सरल है और कठिन भी है
जो जितना डूबा उसने उतना पाया
जो किनारे पर रहा खडा
उसने उतना ही देखा
अशोक कुलकर्णी ,अकोला
सत्य है. परन्तु कठिन है. कठिन है इसलिए करने योग्य है. करेगें तो जिन्दगी आसान.
ReplyDeleteप्रेरणादायी एवं बहुत ही सुन्दर लेख, सहीं लिखा है कि सारा संसार और हमारा अपना जीवन अनेक कमियों से परिपूर्ण है। ऐसे में दूसरों में कमियाँ ढूँढकर हम अपनी कमियों पर परदा नहीं डाल सकते।
Deleteप्रिय आनंद
Deleteबहुत सही बात कही है। जब एक ऊंगली दूसरे की ओर उठाते हैं तो तीन हमारी ओर होती हैं और मजे की बात तो यह है कि हम इस सच को स्वीकार ही नहीं करते। हार्दिक आभार सहित
परम आदरणीय
Deleteकठिन का सामना मतलब अपनी शक्ति और सामर्थ्य की परीक्षा। हार्दिक आभार सहित सादर
बहुत ही हृदय स्पर्शी आलेख के लिए धन्यवाद सर।
ReplyDeleteपिछले तीन दशकों में जीवन में यह त्रासदी बढ़ी है कि हमने अपनों का सम्मान करना धीरे-धीरे कम कर दिया है और एक काल्पनिक जीवन जीने में व्यस्त हो गए हैं जिसका यथार्थ से कोई लेना-देना नहीं रहा है।
जैसे-जैसे समाज का तथाकथित आधुनिकीकरण होता गया वैसे-वैसे हम अपनों के साथ दूरियां बढ़ाते गए और सुखांत जीवन को दुखमय करते चले जा रहे हैं।
भावनाओं की नाव पर सवार होकर हमने अपनों के जीवन को समझना ही छोड़ दिया है और उनके द्वारा हमारे लिए किए जा रहे प्रयासों को हमने देखा ही नहीं है और यदि देखा भी है तो यह मान करके देखा है कि ऐसा करना उनका दायित्व है और अगर वह ऐसा कर रहे हैं तो कोई मेहरबानी नहीं कर रहे हैं यह हमारा अधिकार है।
और हमारी इसी सोचने हमारे सुखांत जीवन को धीरे-धीरे दुखांत जीवन में परिवर्तित कर दिया है और यह प्रक्रिया कैसे हो गई हम समझ ही नहीं पाए।
हम अपनों के द्वारा हमारे जीवन के लिए किया जा रहे प्रयासों को देखें और उनकी सराहना करें ताकि एक बार पुनः जीवन को सुखांत बनाया जा सके।
स्वर्ग यहीं है, नर्क यहीं हैं; जो चाहे वह पा लो तुम।
एक बार मन की आंखें खोलो; और जीवन को स्वर्ग बना लो तुम।।
बहुत ही हृदय स्पर्शी आलेख के लिए एक बार पुनः आभार!
प्रिय मंगल स्वरूप
Deleteबहुत सटीक बात कही है। मूल्य ह्रास सबसे बड़ी चुनौती है इस दौर की। हम शायद धरती पर वो आखिरी पीढ़ी कहलाएंगे जो आदरवश कभी अपने माता पिता के सामने जबान नहीं खोल पाए और जिन्हें बच्चों को सुनने की आदत डालनी पड़ी है। क्या कहेंगे इसे और किसे दोष देंगे खुद के सिवाय। तुम्हारी बात गहन गम्भीर होती है सो सुनने की लालसा मन में सदैव बनी रहती है। हार्दिक आभार सहित। सस्नेह
जीवन का यथार्थ यही है
ReplyDeleteजली रोटी.... किसके हाथ की, किस समय, किस समर्पण के साथ.....सब मिलकर थाली मे...स्वयं ही प्रेम का सागर बन जाती है...शहद सी लगती है... लेखनी को साधुवाद🌹🌷🙏
प्रिय बंधु रवींद्र
Deleteबहुत सुंदर आकलन किया है विषय का। हार्दिक आभार
सादर अभिवादन मान्यवर🙏
DeleteVery good article sirji
ReplyDeleteSo kind of you Res. Ananda Ji. Kindest regards
Deleteबहुत सुंदर लेख
ReplyDeleteमुकेश श्रीवास्तव
हार्दिक आभार मित्र मुकेश भाई
Deleteअति सुन्दर और प्रेरणादायक लेख हमेशा अपनो की कद्र करना एवम उनको समय देना महत्व रखता है
ReplyDeleteप्रिय अनिल
Deleteहार्दिक आभार। सस्नेह
जीवन का अनमोल सूत्र! आपके इन छोटे - लेखों में बहुत बड़ी बातें छुपी होती हैं। आपकी लेखनी को नमन! आदरणीय.
ReplyDeleteआदरणीय
Deleteआप तो स्नेह सम्मान सबके साक्षात उदाहरण हैं। सो हार्दिक आभार सहित सादर
प्रेरणादाई लेख
ReplyDeleteजिंदगी भरी पड़ी है अपूर्ण चीजों से .... अपूर्ण चीजों से....कर्मियों से..... दोषोसे... एक दूसरे की गलतियों को स्वीकार करना, नजर अंदाज करना जरूरी है। जिंदगी बहुत छोटी है ...उसे सुबह शाम दुख पछतावे खेदसे बर्बाद नहीं करना चाहिए। जिंदगी को जीना आसान नहीं होता, जिंदगी को जीना आसान बनाना पड़ता है .....कुछ सब्र करके.. कुछ बर्दाश्त करके, और बहुत कुछ नजरअंदाज करके।
सुरेश कासलीवाल
आदरणीय कासलीवाल जी
Deleteसंबंधों की अहमियत दर्शाता क्षमा वाणी पर्व सबसे सार्थक मंच है रिश्तों की नींव की मजबूती का।सो आगत पर्व की प्रतीक्षा कर रहा हूं। हार्दिक आभार। सादर
अति सुंदर उदाहरण- काश हम सब यही सीख जायें तो रिश्ते कितने मज़बूत हो जाएँगे - स्वयं द्वारा की गयी ग़लतियों पर हम वकील बन जाते हैं और दूसरे द्वारा की गयी ग़लतियों पर न्यायाधीश
ReplyDeleteप्रिय किशोर भाई
ReplyDeleteसही कहा आपने। संबंधों को सशक्त बनाने का एकमात्र सूत्र है आपसी स्नेह। हार्दिक आभार
सादर प्रणाम आदरणीय
ReplyDeleteसदा सर्वदा की तरह यह आलेख भी कुटुंब और समाज प्रबोधन की नई इबारत है।बहुत ही रोचक अंदाज में प्रेरक उदाहरण के माध्यम से आपने जीवन दर्शन का मंत्र दिया है।इस आलेख को मैं इसे लोगों को शेयर की हूं जहां इसकी नितांत आवश्यकता है।वर्तमान स्थिति में प्रेरक,सारगर्भित एवम् दिशाबोध से परिपूर्ण आलेख।
आ. माण्डवी जी
Deleteनारी तो धरती पर ईश्वर स्वरूपा है। स्नेह का अद्भुत सरोवर। आपने साझा कर मेरा मान बढ़ाया है, वरना इस दौर में पढ़ता ही कौन है। हार्दिक आभार सहित सादर
Satya Vachan
ReplyDeleteहार्दिक आभार सहित सादर
Deleteअति सुंदर प्रेरणा दायक लेख।अक्सर हम दूसरो की गलतियों को ही ढूंढते रहते है।और उसमे लोगो को मजा भी आता है।सुखी जीवन का मूलमंत्र:ना अपेक्षा और ना उपेक्षा।अपने अंदर झांक कर अपनी गलतियों को ढूंढने का समय ही नहीं।आपके ऐसे प्रेरणा दायक लेख का हमेशा इंतज़ार रहता है।
ReplyDeleteप्रिय बंधु अनिल
Deleteबिल्कुल सही कहा। बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलया कोय। हार्दिक आभार सहित
An excellent emotional example has been cited by you, any act of kindness with out expecting any thing in return fosters inner peace and self satisfaction. By letting go of expectations allows relationship to thrive naturally, this not only strengthen your emotional resilience but also fosters more meaningful purpose of life.
ReplyDeleteपिताश्री आपके द्वारा लिखा हुआ लेख प्रेरणादायक और उदाहरण से स्पष्ट है कि स्वयं में सुधार किया जाए तो ज्यादा अच्छा होगा नाकि दूसरों कि गलतियां निकालना 🙏पिताश्री warm regards🙏
ReplyDeleteप्रिय हेमंत
Deleteहार्दिक धन्यवाद। हमेशा यही स्नेह बना रहे। इसी कामना के साथ
My Dear Dr Krishnakant
ReplyDeleteAlways a great pleasure to see you. Desires pull us towards unethical actions many times. Once we rise above it, life becomes very simple. Thanks very much. Regards
जीवन की बहुत ही सुन्दर व्याख्या सर।
ReplyDeleteमुकेश कुमार सिंह
प्रिय मुकेश
ReplyDeleteहार्दिक आभार सस्नेह