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Feb 3, 2024

अनकहीः जा पर कृपा राम की होई..

 . - डॉ. रत्ना वर्मा

जब आपके चारो ओर खुशहाली का माहौल हो तो कैसा लगता है, खिली धूप, स्वच्छ हवा, हरी- भरी वादियाँ, नीला आसमान, मन को सुकून देने वाली चाँदनी रातें... और लता एक खूबसूरत गाना- ये रात ये चाँदनी फिर कहाँ ...अरे नहीं मैं कविता नहीं कह रही, मैं तो अपने दिल में उठने वाली उन भावनाओं को व्यक्त कर रही हूँ , जो पिछले कुछ दिनों में महसूस हो रहा है। क्या आपको भी इनमें से कुछ भी ऐसा आभास हुआ कि बरबस यह कहने का जी चाहा हो- आहा मन कितना प्रफुल्लित है... न कहीं राग- द्वेष, न कलेश, न निराशा, सब कुछ खिले उस कमल की फूल की तरह, जिसमें ओस की बूँदे ठहरी हुई मोती- सी चमक रही हों... सोचकर कितना अच्छा लगता है न यह सब। ... आप कह सकते हैं कि सपने में सबकुछ बहुत सुंदर दिखता है; पर सपने देखने और सोचने से ही तो साकार होता है । आप सपने ही नहीं देखेंगे, तो उसे फलीभूत कैसे करेंगे। सच है मन जब खुश होता है, तब इसी तरह कुछ कवि हो जाने का दिल करता है... 

इस बार मन के ये अलग तरह के उद्गार व्यक्त करने का कारण, आप सब समझ ही गए होंगे। अयोध्या में रामलला की प्राण- प्रतिष्ठा का भव्य आयोजन। समस्त भारतवासियों के लिए रामलला का आगमन किसी दीपावली से कम अवसर नहीं था, बल्कि इससे भी कुछ ज्यादा ही था; क्योंकि इस अवसर पर पूरा देश भक्ति में सराबोर था।  और हो भी क्यों न,  क्योंकि जब  बात भारत की संस्कृति, सभ्यता, आस्था, भक्ति और शक्ति की होती है, तो पूरा देश एक ही रौ में बहने लगता है। तब छोटे- बड़े, ऊँच- नीच, अमीर- गरीब के बीच कोई भेदभाव नहीं रह जाता। यही तो हमारी भारतीय सभ्पता की पहचान भी है। तभी तो जब सदियों बाद रामलला के रामजन्म भूमि में पधारने की बात हुई, तो रामभक्तों ने उनके स्वागत में पलक पाँवड़े बिछा दिए। पूरा देश फूलों से सुरभित होने लगा, हर घर दीप से जगमगा उठा। भारतीय संस्कृति के इतिहास में ‘वसुधैव कुटुम्बमं’ की ऐसी मिसाल अरसे बाद देखने को मिली। भक्ति की जो भावना इस समय सबके दिलों में बही, वह सबके हृदय को आह्लादित करने वाली थी। 

आज भी उस पीढ़ी के लोगों को याद होगा जब1987- 88 में दूरदर्शन पर रामानंद सागर की रामायण को दूरदर्शन पर रविवार के दिन सुबह 9:30 बजे किया प्रसारित किया जाता था । तब की मिसालें आज तक दी जाती हैं कि इस धारावाहिक ने  देश में रामनाम की अलख जगा दी थी। आलम यह था कि जिस समय यह टीवी पर दिखाया जाता था, तो सड़कें सूनी हो जाती थीं, मानों कर्फ्यू लगा हो। पर इस बार का नजारा बिल्कुल इसके उलट रहा, क्योंकि राम भगवान टीवी पर; नहीं बल्कि साक्षात् सबके दिलों में आ बसे ।  

राम के बारे में  जब मोदी जी कहते हैं - ‘राम आग नहीं है, राम ऊर्जा हैं, राम विवाद नहीं, राम समाधान हैं। राम तो सबके हैं। राम सिर्फ वर्तमान नहीं, राम अनंतकाल हैं। यह भारत का समय है और भारत अब आगे बढ़ने वाला है। शताब्दियों के इंतजार के बाद ये पल आया है। अब हम रुकेंगे नहीं।’ तब यह जाहिर- सी बात है कि उनका यह वक्तव्य सिर्फ धर्म से जुड़ा हुआ नहीं है, यह राजनीति से भी प्रेरित है और वे इसमें सफल भी हुए हैं।

 जाहिर- सी बात है कि यह आगामी लोकसभा चुनाव में तुरुप का पत्ता साबित होगा। इसमें कोई दो मत नहीं कि आस्था भक्ति और धर्म जनमानस के लिए ऐसी शक्ति है , जिसके बल पर आजादी की जंग भी जीती गई है । इसका उदाहरण हमारे सामने हैं- जब लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने लोगों में एकता और राष्ट्रभक्ति की भावना जागृत करने के मकसद से घर- घर में किए जाने वाले गणेश पूजन को सार्वजनिक उत्सव के रूप में बदल दिया था। जनहित और देशहित में किए जाने वाले इस प्रकार के काम की हमेशा ही सराहना की जाती है और की जानी चाहिए, जिसका व्यापक असर जनमानस और जनहित में होता है। अतः आस्था और भक्ति की ताकत को कोई भी नकार नहीं सकता; परंतु इसका उपयोग तरक्की, भलाई और अच्छाई की ताकत के रूप में किया जाना चाहिए, न राजनैतिक फायदे के लिए। 

 क्या हम अयोध्या में हुई इस प्राण -प्रतिष्ठा को बदलते दौर की शुरुआत मानें? पर इसके लिए अपना दृष्टिकोण कुछ अलग ही  रखना होगा। इसे हम केवल  राजनीतिक चश्मे से न देखें, बल्कि इसे एक सामाजिक- सांस्कृतिक बदलाव की नींव मानते हुए सकारात्मक दृष्टिकोण रखना होगा। नई पीढ़ी के लिए अपने देश के लिए सोचने का नजरिया बदलने का समय है। अभी हम एक ऐसे दौर से गुजर रहे हैं, जहाँ आज की पीढ़ी आगे तो बढ़ना चाहती हैं; परंतु अपने देश, अपने शहर, अपने गाँव और अपने घर को लेकर नहीं; बल्कि सिर्फ अपने को लेकर आगे बढ़ जाती है। भारतीय सभ्यता और संस्कृति में इसे तो आगे बढ़ना नहीं कहते। हमारी संस्कृति में आगे बढ़ने का मतलब होता है, सबको साथ लेकर आगे बढ़ना। हमारे देश का यह दुर्भाग्य है कि शिक्षा का बहुत कम प्रतिशत होने के कारण अधिकांश जनता अपनी दीर्घकालीन तरक्की को लेकर सचेत नहीं है। वह एक रौ में बहकर अपना फैसला दे देती है और ऐसा तब तक होता रहेगा, जब तक हमारे देश की जनता शिक्षित होकर अपने फैसले खुद न लेने लगे। 

अतः उम्मीद की जानी चाहिए कि नए दौर के इस बदलाव में देशवासियों के जनमानस में ऊर्जा का नया संचार होगा, आग नहीं, शांति स्थापित होगी। आज की पीढ़ी तरक्की के रास्ते पर तो बढ़ेगी ही;  साथ ही देश प्रेम उनके लिए सर्वोपरि रहेगा,  तब यह पीढ़ी बिना छल- कपट के माता- पिता की सेवा करते हुए पारिवारिक जिम्मेदारी को निभाते हुए भ्रष्टाचार मुक्त एक शांतिप्रिय समाज और देश के निर्माण में महती भूमिका निभाएगी। अगर ऐसा देश होगा, ऐसे लोग होंगे, तो कभी उनके ऊपर कोई संकट नहीं आएगा राम जी सदैव उन पर कृपालु रहेंगे। जिस दिन वे यह समझ लेंगे कि असली ताकत उनके हाथों में है, उस दिन असली रामराज्य की कल्पना साकार होगी।  

जा पर कृपा राम की होई । ता पर कृपा करहिं सब कोई ॥

जिनके कपट, दम्भ नहिं माया । तिनके हृदय बसहु रघुराया ॥


10 comments:

  1. आदरणीया,
    अद्भुत, अद्भुत, अद्भुत. पूरे देश ने सांस्कृतिक उत्थान की एक सुखद लहर देखी. ऐसा लगा देशवासियों को सांस्कृतिक स्वाधीनता अब जाकर प्राप्त हुई. छद्म नहीं बल्कि दोगली धर्म निरपेक्षता से अब जाकर निजात मिली हमें.
    आपके साहसी सोच और लेखन को प्रणाम.
    हार्दिक बधाई सहित सादर 🌷🙏🏽
    तुलसी ममता राम सों समता सब संसार
    राग न रोष न दोष दुख दास भए भव पार

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    1. हार्दिक धन्यवाद विजय जोशी जी 🙏आप सबके साथ वैचारिक विमर्श, सहयोग और प्रोत्साहन से ही साहस और लेखन की शक्ति मिलती है l बाकी सब राम कृपा l

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  2. वाह!बहुत सुंदर। गंभीर लेख।हार्दिक बधाई आदरणीय रत्ना जी।

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    1. आपका हार्दिक धन्यवाद और आभार सुरंगमा जी🙏

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  3. Anonymous05 February

    Very nice

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  4. Anonymous06 February

    गहन विश्लेषण करता सामयिक सटीक सम्पादकीय। हार्दिक बधाई रत्ना जी।

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    1. अदरणीय इस सराहना के लिए आपका हार्दिक धन्यवादl
      किसी कारण से आपका नाम प्रकाशित नहीं हो पा रहा है l

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  5. डॉ दीपेन्द्र कमथान09 February

    श्रद्धेय रत्ना जी
    राम भारत का विधान हैं
    राम हमारी चेतना हैं
    राम देश की मर्यादा हैं
    राम भारत के दिग्दर्शन का मंदिर हैं
    अनुभवों का अपरिपक्व होना बुरा नहीं...
    अनुभवों से न सीखकर
    अपरिपक्व बने रहना घातक है !
    राम ‘विपक्ष’ की सोच से परे है !
    यकीनन आपके विचार इस भारत देश के विचार हैं !
    एक धर्म मोदी हैं तो एक कर्म योगी हैं
    राम के नाम पर सब बन बैठे जोगी हैं
    सरयू के पानी का रंग सब याद दिलाए है !
    राम अपने घर आये हैं
    राम मेरे घर आये हैं !!
    आपको बहुत बहुत बधाई !
    सादर !
    डॉ. दीपेन्द्र कमथान

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    1. डॉ. दीपेंद्र जी इस खूबसूरत कवितामय प्रतिक्रिया के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया🙏

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