सम्मान ह्रदय से उपजा वह भाव है जो शब्दों की सीमा से आगे बढ़कर हमारे व्यवहार में परिलक्षित हो। कितने दुख की बात है कि एक ओर जहाँ हमारी सेना के जवान विषम परिस्थितियों में भी रात रात भर चुस्ती के साथ चौकसी इसलिए करते हैं ताकि हम अपने घरों पर आराम से सो सकें। पर वास्तविकता तो यह है कि हमारे तन मन में उनके लिये वह सम्मान दिखाई नहीं देता, जिसके कि वह हकदार हैं बगैर किसी आशा के।
इस मामले में सर्वोत्तम उदाहरण से हाल ही में साक्षात्कार हुआ। पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल एम. एन. लखेरा की पुस्तक “ टूवर्ड्स रिसर्जेंट इंडिया ” से जिसमें उन्होंने अपने संस्मरण इस प्रकार समाहित किए हैं
मैं इंग्लैंड आमंत्रित किया गया था उनके देश में यूरोप विजय की 50 वीं वर्षगाँठ के समारोह में सहभागिता हेतु। उद्घाटन समोराह के बाद मैं अपने चार अन्य सैन्य अधिकारियों के साथ बाहर निकला। हम सब ट्रेफिक रुकने के सिग्नल की प्रतीक्षा करने लगे ताकि सड़क पार कर सकें। मेरे साथ विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित कैप्टन उमराव सिंह भी थे एवं उस समय हम सब भारतीय सेना की वर्दी में थे।
अचानक से एक कार सड़क पर हमारी ओर को किनारे पर आकर रुकी। उसमें से एक सज्जन उतरे तथा उमराव सिंह से अनुमति लेने की मुद्रा में हाथ बढ़ाते हुए कहा - सर क्या मैं विक्टोरिया क्रास से सम्मानित आप से हाथ मिला सकता हूँ। स्पष्ट था उन्होंने अपनी कार के शीशे से वर्दी पर सजे विक्टोरिया क्रास को देख लिया था तथा हमें सम्मान प्रदान करने हेतु कार रोककर उतरे थे।
फिर मेरी ओर देखकर वे बोले - जनरल आप भी भारतीय सेना से ही हैं। और जब मैंने सहमति में सिर हिलाया तो उन्होंने अपना नाम बताया - माइकल हेसलटीन।
अब हमें सहसास हुआ कि हम वहां के उप प्रधान मंत्री के सामने खड़े थे। हम अवाक रह गए। हमने उन्हें तथा ब्रिटिश सरकार को उस सौजन्य हेतु दिल से धन्यवाद दिया। उन्होंने अपनी बात जारी रखी – सर धन्यवाद तो हमें देना चाहिए आपके देश का, आपकी सेना का, जिन्होंने प्रथम तथा द्वितीय विश्व युद्ध में विजय हेतु अपना सहयोग प्रदान किया। हम इतने कृतघ्न कैसे हो सकते हैं कि आपके देश के योगदान को भूल जाएँ।
अचानक मैंने देखा कि सड़क पर ट्रेफिक थम गया था। मैंने उन्हे धन्यवाद देते हुए प्रस्थान की अनुमति चाही ताकि हम लोगों की असुविधा का कारण न बन सकें। उन पलों में मार्ग पर प्रतीक्षित अन्य लोग बेसब्र तो थे पर किसी ने भी हार्न तक नहीं बजाया।
वे हमारा मंतव्य समझ गए – सर हम सब सड़क से आगे कैसे आगे गुजर सकते हैं जबकि विक्टोरिया क्रास से सम्मानित समूह सड़क के उस पर नहीं जा पायेगा।
उनकी भावनाओं की कद्र करते हुए हमने तुरंत सड़क पार की। दूसरी ओर पहुँचकर मुड़ने पर हमने देखा कि हेसलटीन अब तक हमारी सुरक्षा के लिये वहीं खड़े थे और जब हमने हाथ हिलाकर विदाई दी तभी मार्ग पर अब तक रुका ट्रेफिक फिर से आरंभ हुआ।
यह है वह श्रद्धा और सम्मान जो वहाँ के जनमानस के मन में है। तभी लगता है यही सम्मान हमारे देश में भी, सबको तो नहीं पर कम से कम परम वीर चक्र एवं अशोक चक्र से सम्मानित सैनिकों को हमारे जन मानस द्वारा प्रदान किया ही जा सकता है और किया ही जाना चाहिये।
कभी ठंड में ठिठुर कर देख लेना
कभी तपती धूप में जलकर देख लेना
कैसे होती है हिफ़ाज़त मुल्क की
कभी सरहद पर चलकर देख लेना
■■
सम्पर्क: 8/ सेक्टर-2, शांति निकेतन (चेतक सेतु के पास), भोपाल-462023,
मो. 09826042641, E-mail- v.joshi415@gmail.com
हर राष्ट्र भक्त भारतीय सैनिकों का सम्मान करता हैl हम भारतीय अपनी भावनाओं का प्रायः प्रदर्शन नहीं करते हैंl पश्चिमी सभ्यता में यह अधिक प्रचलन में हैl एक अच्छा दृष्टांत! 👍👍
ReplyDeleteआदरणीय,
Deleteहर बार की तरह इस बार भी आपकी ही मेरा मनोबल बढ़ाने वाली सबसे पहली प्रतिक्रिया।
अगस्त के प्रथम पक्ष तो देश समर्पित ही होता है। सो यह विनम्र प्रयास।
हार्दिक आभार एवं धन्यवाद सहित सादर।।
वतन पर अपनी जान निछावर करने वाले भारत मां के सपूतों और सरहद की निरंतर रक्षा कर हमें सुरक्षा का एहसास कराने वाले वीर जवानों के प्रति हमारा कर्तव्य और अधिक होता है कि हम उनके सम्मान का हमेशा ध्यान रखें
ReplyDeleteदेश प्रथम। हार्दिक आभार सहित मित्र।
Deleteकृतज्ञता का भाव तभी उत्पन्न होता है जब हम किसी से हृदय से जुड़े होते हैं। जब तक राष्ट्र के प्रति कृतज्ञता का भाव नहीं है। तब तक राष्ट्र-वीरों के प्रति यह भाव आना संभव नहीं है।
ReplyDeleteमाता भूमि पुत्रों अहं पृथिव्या, जननी जन्मभूमिश्च, अथवा अवधपुरी सम प्रिय नही सोउ आदि हमारे प्राचीन भाव थे। मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथ पर तुम देना फेक अर्वाचीन भाव है। लेकिन अब इसका अभाव है। मात्र मिथ्या प्रदर्शन।
यद्यपि समाज में कृतज्ञता का भाव पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है तथापि स्वार्थ भाव की प्रबलता स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।
इस प्रकार के आलेख जागरण का काम करते हैं। इस प्रकार का जागरण चलते रहना चाहिए। आपको हार्दिक बधाई।
आदरणीय प्रेमचंद जी,
Deleteआपका स्नेह अद्भुत है। आपका साथ ही मेरी विरासत। अच्छा हो सब संस्थाएं अगस्त प्रथम पक्ष में शहीद समर्पित आयोजन कर समाज में संदेश का उपक्रम करें।
सर , अगस्त की औपचारिकता तो प्रायः सभी संस्थाएँ करती हैं। जागरूकता के लिए तो एक कार्यक्रम अलग से बनान पड़ेगा जो सतत और सुचारू रूप से चल सके।
Deleteबहुत अच्छा लेख, बाकई हम सब उन सैनिको का आभारी हैँ मगर जो सम्मान आम जनता को उनके प्रति देना चाहिए वह कहीं छूट जाता है.
ReplyDeleteS N Roy
आदरणीय सर, उत्साह वर्धन हेतु हार्दिक आभार। सादर
Deleteसचमुच इन्हीं की बदौलत हम सुरक्षित हैं, और इसलिए ये सम्मान के सच्चे हकदार भी हैं !
ReplyDeleteआज एक और सीख मिली आप से !
अब से मैं सड़क पर इन के वाहनों को पहले रास्ता दूँगा ठीक जैसे एम्बुलेंस को देते हैं
उन के लिये समय बहुत मायने रखता है !
प्रिय डॉ विजेंद्र, आपकी प्रतिक्रिया की सदैव प्रतीक्षा रहती है। हार्दिक आभार
Deleteसम्मान सबका समान,
ReplyDeleteफौजी सबसे महान,
दिल में जस्बा ऊफान,
देश कि रक्षा जहान ।
Jayesh Janardhanan
DeleteThanks very much Dear Jayesh
Deleteइसमें कोई शक नहीं कि देश का सबसे सम्मानित व्यक्ति एक सैनिक होना चाहिए.. दुर्भाग्य है देश का कि हम उन्हें वो सम्मान नहीं दे पाते जिनके वो हकदार हैं.. उन्ही के वजह से हम सुरक्षित हैं.. वो हमेशा अपनी जान जोखिम में ले के चलते हैं.. प्राकृतिक आपदा से लेकर दुश्मन तक, नक्सली से लेकर गृह युद्ध तक, दंगों से मौषम की मार तक.. वो हमारे लिए खड़े रहते हैं.. उदाहरण अनुकरणीय दिया आपने आदरणीय.. यही आदरभाव मिलना चाहिए एक सैनिक को.. जय हिन्द 🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
ReplyDeleteआपका सैनिकों के प्रति सम्मान व प्रेम भी एक मिसाल हैं.. बधाई आपको सर 🌹🙏🏼💐
सादर -
रजनीकान्त चौबे
प्रिय रजनीकांत, यही तो दुर्भाग्य है कि जिन्हें प्रथम पंक्ति में होना चाहिये वे पार्श्व में हैं और जिन्हें अंतिम वे राजनीतिज्ञ खुद आसीन हो गए कुर्सियों पर देश के दीमक सम। हार्दिक आभार। सस्नेह
DeleteExcellent article. Jai ho.
ReplyDeleteRespected AnandaJi, Thanks very very much. Kind regards.
Deleteएक अनुकरणीय उदाहरण।
ReplyDelete*अति उत्तम लेख ! देश की रक्षा करने वाले और अतिविशिष्ट सेवा देने वाले विशिष्ट सैनिकों को हमें समुचित सम्मान देना ही चाहिए. यद्यपि सेना को भारत में इतना महत्व नहीं दिया जाता है और अक्सर राजनीतिक लोग सेना का मनोबल कम करने वाले कथन करते रहते हैं जो निषिद्ध होना चाहिए। संदरभित लेख में उल्लिखित सम्मान की मर्यादाओं का पालन हमे भी अवश्य ही करना चाहिए। लेखक श्रीमान जोशी जी को अनंत बधाइयां..!!*
ReplyDeleteविजय जैन
Ex BHEL
प्रिय मित्र इंजी. विजय जैन,
Deleteआप तो देश भक्ति की ज्वलंत एवं जाग्रत मिसाल हैं अपने आप में। आपकी देश के प्रति संवेदना से मैं भली भांति परिचित हूं।
हार्दिक आभार सहित सादर
आप एक उत्कृष्ट और संवेदनशील विद्वान हैं और मौन की भाषा भी पढ़ते हैं। आपको अनेक साधुवाद, इसीलिए कि आपका लेखन नैतिक मूल्यों को बढ़ाता है.. सादर !!
Deleteये विषय बहुत गंभीर मनन ,चिंतन, मंथन काहै,जिसमे समाज शास्त्री ,शिक्षा शास्त्री , मिलकर सोचे कि नई पीढी present generation को सैनिकों के बारे मे सारी सच्चाई बताई जाय, उनका सम्मान देश के लोग, सरकार, celebrities, धार्मिक गुरू, सभी वर्ग के लोग अपनी आदत बनाले
ReplyDeleteDr S K AGRAWAL GWALIOR
प्रिय डॉ श्रीकृष्ण, सच कहा आपने। हार्दिक आभार सहित सादर
DeleteExcellent Sir ! Rightly said,Our award winner soldiers also deserve special treatment
ReplyDeleteDear Manish, i appreciate your passion for reading. Thanks very much
DeleteDefense forces deserve all our respect. This is the least we can do for them..
ReplyDeleteVandana Vohra
Dear Vandana, Thanks for your motivational response.
Deleteआपका लेख पढ़कर ये एहसास होता है कि हमारे देश के नागरिकों को बहुत कुछ सीखना बाकी है। हमारे आदर्श तो सत्ता लोलुप भ्रष्ट नेता हैं।
ReplyDeleteआदरणीय कासलीवाल जी, बिल्कुल सही कहा आपने। हार्दिक आभार। सादर
Deleteआदरणीय जोशी जी,
ReplyDeleteप्रणाम। एक अति महत्वपूर्ण मुद्दे पर चर्चा करने हेतु हार्दिक साधुवाद। कदाचित हम भारतीयों में राष्ट्रभक्ति की कमी है। हमारी राष्ट्रभक्ति केवल नारे लगाने तक ही सीमित है। राष्ट्रीय झण्डा दिवस पर मैंने लोगों को अपनी जेब से दस रूपए मात्र निकालने में होती परेशानी देखी है। यदि हममें लेशमात्र भी राष्ट्रभक्ति होती तो हम अपने सूरमाओं का सम्मान करना जानते होते। यही कारण है कि विदेशी आक्रान्ताओं ने आक्रमण कर आसानी से भारत पर क़ब्ज़ा न कर लिया होता। आशा है आपके सुन्दर आलेख से हम शिक्षा लेकर अपने देश के वीर जवानों का सम्मान करना सीखेंगे।
-वी.बी.सिंह,लखनऊ
आदरणीय सिंह सा.,
Deleteबहुत संवेदनशील विषय छुआ है आपने। केवल दो चुनौतियों के मद्देनज़र हम आज तक इस दशा को भुगत रहे हैं। पहली Patriotism देशभक्ति और दूसरी Integrity ईमानदारी. इसके हम सब उत्तरदायी हैं।
आपने पुरी साफ़गोई से मन के भाव को उकेरा है। सो हार्दिक आभार सहित सादर
रवीन्द्र निगम भेल भोपाल
ReplyDeleteआदरणीय जोशी साहब
युँ तो लेखनी आपकी घुमती है हर और सारगर्भिता संग पर बात देश, सेना व सम्मान की हो तलवार की ताकत भी रखती है
🙏लेखनी को प्रणाम
प्रिय रवींद्र भाई,
Deleteजब अंदर कुछ नहीं हो तो क़लम को घुमाना शायद विवशता भी बन जाता है।
गांधीवादी विचारक डॉ सुब्बारावजी तो कह ही गये हैं "एक घंटा देह को, एक घंटा देह को"
हार्दिक आभार सहित
बाकी 22 घंटे देश को,💐🌹🌷🙏
Delete
ReplyDeleteहम चैन से सो पा रहे हैं क्योंकि कोई जाग कर इस देश की रक्षा कर रहा है। गर्मी, सर्दी की चिंता किये बगैर दिन रात सीमा पर खड़े रहते है। भारतीय सेना देशभक्ति की एक सच्ची मिसाल है जो अपने प्राणों की परवाह किये बिना वतन की रक्षा करते हैं।
प्रिय सौरभ, सबसे पहले देश हमारा। देश है तभी तो हम हैं। और इसे सुरक्षित रखा है हमारे जवानों ने। सस्नेह
ReplyDeleteआदरणीय सर,
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लेख, वाकई आपने बिलकुल सही लिखा है की इनका सम्मान दिल से होना चाहिए, हमारे देश में इनके प्रति सम्मान का भाव वैसे तो जनमानस के मन में होता है परंतु वह जाग्रत विशेष अवसरों पर ही होता है, इनके प्रति सम्मान जगाने वाले इस लेख के लिए धन्यवाद ।
वैसे मेरा यह मानना है कि हमारे देश में भी दो
साल या पांच साल के लिए मिलिट्री सर्विस को अनिवार्य कर देना चाहिए, इससे निश्चित रूप से बहुत सी समस्याओं का समाधान हो जाएगा ।
जय हिन्द
प्रिय शरद,
Delete- बिल्कुल सही कहा। पर हमारे देश में तो नेता अफसर व बिज़नेस समुदाय के बच्चे गलती से भी सेना में जाने का सोच नहीं रखते।
- उनके अभिभावक भी भगत सिंह की तारीफ़ तो बहुत करते हैं, पर चाहते हैं कि भगत सिंह यदि पैदा हो तो पड़ोसी के घर में। अपना बच्चा तो बड़ा अफ़सर बने। टेबल के ऊपर से भी ले और नीचे से भी।
- जहां तक नेताओं का सवाल है उन्हें भी बकलम शायर : रंज लीडर को भी बहुत है मगर आराम के साथ।
- मेरे अदना से प्रयास पर इतनी स्नेही प्रतिक्रियाएं मेरे विश्वास को कायम रखने में कितनी सहायक हैं।
दिली आभार के साथ सस्नेह
आदरणीय सर,
ReplyDeleteनमस्कार।
देश के आम जनमानस का जो भाव हमारे जवानों के प्रति हैं उसको आपने बिल्कुल साफ साफ शब्दों में लिख दिया। हम लोग कहीं ना कहीं सेना को एक नौकरी की तरह और उसमें काम करने वाले जवानों को एक कर्मचारी की तरह देखने लगे हैं।
कड़वा ही सही पर यह सत्य है कि भारत में हम अपने जवानों को वह सम्मान नहीं दे पा रहे हैं जिसके वे हकदार हैं। भारत में लोकतंत्र अवश्य है परंतु लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ जीने वाले कितने हैं ? यह बताने की आवश्यकता नहीं है। इस देश में आज लगभग हर व्यक्ति अपने अधिकारों की बात करता दिखता है और अपने कर्तव्यों के निर्वहन से दूर भागने के अनेकानेक बहाने बनाता दिखता है। दूसरों की कुर्बानी और त्याग तथा तपस्या का सम्मान करने के लिए बहुत जरूरी है कि पहले व्यक्ति के अंदर खुद कुर्बानी देने का माद्दा हो या उसमें समाज और राष्ट्र के लिए कुछ योगदान किया हो। आज समाज और व्यक्ति जहां खड़ा है वहां वह अपने लिए ही सुख, समृद्धि और स्वार्थ की सभी सामग्रियों को इकट्ठा करने में लगा हुआ है ऐसा व्यक्ति और ऐसा समाज किसी की तपस्या और त्याग का क्या सम्मान करेगा। हमारे यहां देश भक्ति की जो परिभाषा सिखाई गई है वह 15 अगस्त , 26 जनवरी और कुछ ऐसे ही अवसरों पर सुबह शुरू होती है और शाम को मोटरसाइकिलों पर तिरंगा हाथ में लेकर जुलूस और मौज मस्ती के साथ समाप्त हो जाती है। इस व्यवस्था से और इस व्यवस्था के प्रतिनिधियों से यह अपेक्षा करना कि वे अमेरिका, इजरायल या आयरलैंड की तरह व्यवहार करेंगे सोचना ही बेमानी लगता है। देश भक्ति और देश की अस्मिता से जुड़े प्रतीकों और देश के सेवा में लगे जवानों का सम्मान करना एक संस्कार है और वह संस्कार समाज से हर रोज धीरे-धीरे समाप्त होता जा रहा है। मुझे बचपन में सुनी हुई किसी कविता की दो पंक्तियां याद आ रही है - शहीदों की समाधियों पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा।
एक गंभीर और मन को झकझोर देने वाले विषय पर आलेख के लिए आभार!
प्रिय मंगल स्वरूप,
Delete- अद्भुत। कितनी साफ़गोई से सच से साक्षात्कार करवा दिया। आज तो क्रांतिकारी भी गहन सोच में होंगे कि कितने स्वार्थी निकले हमवतन।
- कहां भगत सिंह से देशभक्तों का सोच :
* जब से सुना है मरने का नाम ज़िंदगी है
सिर से कफ़न लपेटे क़ातिल को ढूंढते हैं *
- और कहां आज़ादी उपरांत का स्वार्थी , खुदगर्ज़ राजनैतिक नेतृत्व। बेशर्म, निर्लज्ज केवल खुद और परिवार को समर्पित नेता समूह।
- सच कहूं तो शहीदों की चिता पर मेले के संदर्भ में तो आज केवल यह कहा जा सकता है
* शहीदों की चिता पर लगते नहीं मेले
वतन पर मरने वालों का नहीं बाकि निशां कोई *
- जिस गम्भीरतापूर्वक पढ़कर प्रतिक्रिया देते हैं वो मन को गहराई तक छूती है। आभार बहुत छोटा शब्द है। फिर भी कहना चाहूंगा सादर साभार : दिल से आभार। सस्नेह
आदरणीय सर
ReplyDeleteसादर अभिवादन
आपकी रचना जन जागृति की अलख जगाकर देश की तंद्रिल जनता में नव जागरण का शंखनाद करती है।ये भी सच है कि जिसका व्यक्तित्व स्वयं देश और समाज के लिए समर्पित होकर नित नई हितग्राही परिवेश का निर्माण करता हो,जिसकी सोच में वसुधैव कुटुंबकम् की भावना को साकार करता हो,सिर्फ उसकी कलम शहीदों की जय बोल सकती है और समाज को भी नई दिशा दिखा सकती है।हार्दिक साधुवाद।जय हो।
प्रिय माण्डवी जी,
ReplyDeleteसही कहा। जिसके दिल में देश धड़कता हो वही तो होता है सच्चा देशभक्त। देश धर्म ही सर्वोपरि। अन्य धर्म दूसरी पायदान पर। लेकिन जो हो रहा है वह वेदना का विषय है। फिर भी मन में आशा एवं विश्वास है नई पीढ़ी से।
हार्दिक आभार सहित सादर