आदमी पत्थर की मूरत नहीं है। जीवंत, जाग्रत एवं जोश से परिपूर्ण एक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण इकाई है समाज की। आदतें ही समाज के समक्ष उसकी उपस्थिति दर्ज कराती है। जीवन में सुधार की संभावना सदैव बनी रहती है बशर्ते हमारा आचरण लचीला हो। पर कई बार ऐसी घटना भी घटित हो जाती है, जिसके कारण व्यक्ति के आचार, विचार एवं व्यवहार में अचानक परिवर्तन हो जाता है और सोच सकारात्मक।
कबीर फक्कड़ संत थे। उनकी पत्नी लोई भी उन जैसी ही थी। एक किंवदंती के अनुसार एक दिन एकाएक कुछ मेहमानों का उनके घर पर पदार्पण हो गया और चूंकि उस दिन वर्षा के कारण खुद का बनाया कपड़ा बेचने के लिये कबीर बाजार नहीं जा पाये थे, अत: घर में स्थिति फाँकेनुमा थी। इतना आटा, दाल भी न थी कि अतिथियों का स्वागत किया जा सके । कबीर ने पत्नी से कहा – तुम पंसारी से आटा, दाल कुछ दिनों के लिए उधार मांग लाओ। पर गरीब जुलाहे को उधार कौन देता है। आखिरकार एक दुकानदार ने सामान देना स्वीकार कर लिया इस शर्त के साथ कि लोई एक रात उसके घर उसके साथ बिताये। लोई शर्त सुनकर हैरान हो गई और कुछ न बोल पाई। दुकानदार ने इसे स्वीकृति समझकर आटा, दाल दे दिया।
शाम को जब मेहमान विदा हो गए तो उसने यह बात कबीर को बताई। कबीर ने दुकानदार को समझा बुझाकर सही मार्ग पर लाने का निश्चय किया तथा लोई को तैयार हो जाने के लिये कहा। और जब लोई तैयार हो गई तो चूंकि वर्षा हो रही थी सो उसे कंबल उढ़ाते हुए कंधे पर उठाकर दुकानदार के घर पहुँच गए।
दुकानदार को आश्चर्य हुआ कि न तो लोई के कपड़े भीगे थे और न ही पाँवों में कीचड़ लगा था। पूछने पर लोई ने बताया कि उसके पति खुद उसे उठाकर लाये हैं। दुकानदार भौंचक्का रह गया। हालांकि लोई शांत स्वरूपा ही बनी रही। दुकानदार को विश्वास नहीं हो पा रहा था कि खुद कबीर ने इसे अंजाम दिया था और जब लोई ने कहा कि कबीर अभी भी बाहर बैठे हैं उसे वापिस ले जाने के लिए तो वह शर्म से पानी पानी हो गया। उसे अपने किए पर आत्मग्लानि हुई और वह कबीर के चरणों में गिर पड़ा। बार-बार शर्मिंदा होकर उनसे माफी मांगने लगा। कबीर ने दुकानदार को क्षमा भी कर दिया। उसी दिन से वह उनका शिष्य भी बन गया ।
बात का संदर्भ बहुत सरल और स्पष्ट है। अप्रिय प्रसंग होने पर स्वयं के स्वभाव से दूसरे में परिवर्तन का यह उत्तम उदाहरण है। महात्मा गांधी भी कहा करते थे हमें पापी से नहीं अपितु पाप से घृणा करना चाहिए। यही इस प्रसंग का सार है।
बहुत शानदार आलेख सर, आपका हेर लेख प्रेरणा दायक होता है 🙏
ReplyDeleteअरविन्द गुप्ता
ReplyDeleteअरविंद भाई, हार्दिक आभार।।
Delete😊🥰
Deleteइतनी महानता तो सिर्फ संत कबीर में ही हो सकती थी और इतना अच्छा narration भी सिर्फ आप ही कर सकते हैं....🙏🏻🙏🏻
ReplyDeleteआदरणीया, अच्छाई तो देखने वाले की नज़र में होती है। जैसी नज़र वैसे नज़ारे और फिर जैसे नज़ारे वही बन जाता है हमारा नज़रिया। आपकी पसंदगी के लिए हार्दिक आभार।
Delete🙂🙂
Deleteसही है.
ReplyDeleteसही है
ReplyDeleteआदरणीय, हार्दिक आभार
Deleteसन्त कबीर बडे सरल ढंग से कठिन से कठिन मसलों का अत्यंत सहज निदान करते थे। यही कबीर दर्शन है।अनेकों बार वही सहजता और सरलता श्री विजय जोशी जी के लेखन व आलेखों मे परिलक्षित होता है।
ReplyDeleteआदरणीय त्रिपाठी जी आपका स्नेह ही मेरी शक्ति है। सो हार्दिक आभार। सादर
Deleteबहुत सुंदर एवं प्रेरणादायी आलेख कबीर दर्शन का l
ReplyDeleteप्रिय आनंद, हार्दिक धन्यवाद। सस्नेह
Deleteअति साथ गर्भित समीक्षा, खास कर कबीर जी की कहानी तो दिल को छू गई
ReplyDeleteगणेशन
प्रिय मित्र, हार्दिक आभार। सादर
Deleteनि: शब्द.. 🙏🏼💐 कबीर तो कबीर थे 💐🙏🏼
ReplyDeleteप्रिय रजनीकांत, हार्दिक आभार। सस्नेह
Deleteसर, अत्यंत रोचक कथा.
ReplyDelete"साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,
सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय"
प्रिय महेश, बहुत सुंदर संदेश साधु के बारे में। हार्दिक आभार। सस्नेह
Deleteकिराने वाले का वंशज आज का केजरीवाल होगा। वरना छोटी सी उधारी के लिए इतनी बड़ी मांग ??
ReplyDeleteआदरणीय जनार्दन जी, आपको आज यहां देखकर मन प्रसन्न हो गया। आज के गंदे राजनयिक लोगों को देखकर ही मन विचलित हो जाता है। ईश्वर रक्षा करे इन दुष्टों से। हार्दिक आभार। सादर
Deleteपिताश्री इतने सरल ढंग से और स्पष्ट शब्दों में समझाया है ये आप ( मेरे पिताश्री ) ही कर सकते है। Warm regards with lots of love पिताश्री 🙏
ReplyDeleteप्रिय हेमंत हार्दिक आभार। सस्नेह
Deleteउच्च विचार, अद्भुत सरलता, अटूट श्रद्धां का अनुपम उदाहरण
ReplyDeleteसाधुवाद बंधु
प्रिय डॉ श्रीकृष्ण, हार्दिक आभार। सादर
Deleteउत्तम आलेख। किन्तु आज के सामाजिक परिपेक्ष में यह उदाहरण सटीक नही बैठता ज्योकि इस दौर में इंसान , इंसानियत की हर एक सीमा लाँघ चुका है।
ReplyDeleteआधुनिक कबीर आज के समय मे इस तरह की बात सोंच भी नही सकते क्योकि मनुष्य की शर्म, हया और मानवता तार तार हो चुकी है।
प्रिय मनोज, बात तो सही है। इस दौर में शर्मिंदगी भी शर्मसार है। कबीर तत्व को भी निगल गई नकारात्मक मनोवृत्ति। बिल्कुल सही कहा। हार्दिक आभार। सस्नेह
Deleteअतिउत्तम प्रेरणादायक है सरजी
ReplyDeleteअनंदा सी
आदरणीय, हार्दिक आभार। सादर
Deleteअति सुंदर
ReplyDeleteमैं कबीर जी का प्रशंसक हूँ और ये पढ़कर और ज़्यादा प्रशंसक हो गया हूँ
कितने सुंदर तरीके से हाल ढूँढा और हमेशा कि लिए सुधार भी दिया
किशोर भाई, कबीर तो अद्भुत हैं। जितना कहें उतना कम। हार्दिक आभार। सादर
Deleteहार्दिक आभार
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ReplyDeleteआदरणीय सर,
ReplyDeleteअतिउत्तम एवं प्रेरणादायी लेख ।
कबीरजी उच्च कोटि के संत थे और संतो की संगत कभी निष्फल नहीं होती है।
"कबीर संगति साधु की, निष्फल कभी न होय |
ऐसी चंदन वासना, नीम न कहसी कोय ||
धन्यवाद
प्रिय शरद, तुम तो पठन, पाठन एवं लेखन की साक्षात मिसाल हो। विद्वान तो हो ही। हार्दिक आभार। सस्नेह
Deleteआदरणीय सर
ReplyDeleteसादर अभिवादन
बहुत शानदार और रोचक उदाहरण । कठिन परिस्थितियों में भी ज्ञान की गरिमा की अपनी महता है,,।संत कबीर के स्वभाव से अज्ञानी के ज्ञान चक्षु खुल गए।
आपके आलेख को पढ़कर पाठक के ज्ञान चक्षु खुल जाते हैं। कोटि कोटि नमन तथा साधुवाद।
प्रिय माण्डवी, तुम्हारी पसंदगी ने मेरे मनोबल में सदा अभिवृद्धि की है। सो हार्दिक आभार सस्नेह
DeleteBahut sundar or Gyan wardhak aalekh sir.smaj ko sikhane wala.sadar prnam.
ReplyDeleteAnil Kumar Singh.
प्रिय अनिल, यहां देखकर बहुत खुशी हुई। सादर धन्यवाद। सस्नेह
Deleteअतं भला तो सब भला। कबीर जी ने पापी को पाठ पढा.दिया। पर कही पाप हो जाता तब क्या होता??
ReplyDeleteविचारणीय विषय। सादर
राजेश भाई, कबीर इस युग अधिक प्रासंगिक हैं। हार्दिक आभार
DeleteInteresting story...Good old times, wherein, people have some value system. Although, it could get shaked sometimes. However, in the contemporary era, human values are at its Nadir.
ReplyDeleteGood impressions. Handling such a situation with complete self control & ultimately the sinner too🙏🏼
ReplyDeleteDear Daisy, absolutely right. Thanks very much.
DeleteDear Sorabh, you are absolutely right. Values matter most in life. Thanks
ReplyDeleteवाह आदरणीय Sir, शानदार प्रेरक अनुकरणीय प्रसंग एवं अपकी प्रस्तुति
ReplyDeleteD C Bhavsar
आदरणीय, हार्दिक आभार। सादर
Deleteआदरणीय सर हमिशा की तरह रोचक ऐवज प्रेरणा दायक आलेख
ReplyDeleteप्रिय असलम, दिल से आभार।
Deleteकबीर दास जी महानता तो जग विदित है ही, इस दृष्टांत ने कबीर कीअतिथी परमोधर्म की भावना का सुंदर चित्रण किया है। कबीर दास तो महान संत थे ही परन्तु इस दृष्टांत में माता लोई का त्याग और अतिथि सत्कार के लिए समर्पण अतुलनीय है।
ReplyDeleteमाता लोई एवम् संत कबीर को श्रद्धा सुमन।
कृष्ण कांत पुराणिक
puranik.krishna50@gmail.com
कृष्ण भाई, आप तो द्वापर से भिज्ञ हैं हर दौर के। सारी माया आपकी ही है। सो फिर से भेजिये कबीर नुमा व्यक्तित्व धरती पर। पाप बहुत बढ़ गए हैं। हार्दिक आभार।
Deleteसर् सादर प्रणाम आप के लेख प्रेरणा दायक होते है ।
ReplyDeleteप्रिय रितेश, हार्दिक आभार। सस्नेह
ReplyDeleteशाश्वत सच है सर 🙏
ReplyDeleteअपराधी को सिर्फ़ घृणा करके या अपराध का कठोरतम दण्ड देकर ही नहीं प्रेमपूर्वक लज्जित करके भी सुधारा जा सकता है। और ऐसा सुधार ही स्थायी होता है।
निशीथ खरे
भाई निशीथ, बिल्कुल सही कहा आपने. स्थायी सुधार का यही एकमात्र मंत्र है. हार्दिक आभार सहित
Deleteकबीर अब कहा है
ReplyDeleteआदरणीय, लौटेंगे पुन:. हर दौर की तरह. हार्दिक आभार सहित सादर
Deleteपाप मनोगत होता है, मानसिक होता है और अपराध शरीरगत होता है। जब पाप प्रगट हो जाता है तब व्यक्ति अपराधी बनता है। इसी लिए संत कहते हैं पाप से घृणा करो पापी से नहीं।
ReplyDeleteआदरणीय, सही कहा आपने. पाप पापी नहीं. पापी तो वह जो उसे अपनाता है. हार्दिक आभार सहित सादर
Deleteअति सुन्दर यही बङी सोच आदमी को महान बनाती है हर मुसीबत कुछ न कुछ सिखा जाती है
ReplyDeleteआपको नमन
हार्दिक आभार मित्र
ReplyDeleteपठनीय तथा सारगर्भित लेख
ReplyDeleteआदरणीय त्रिपाठी जी, हार्दिक आभार सहित सादर
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