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Nov 1, 2022

जीवन दर्शनः भाग्य से सौभाग्य की यात्रा

-विजय जोशी

पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल (म. प्र.)

भाग्य बड़ा अद्भुत शब्द है जो दिखाई नहीं देता पर उसमें सबको अपने भविष्य के दिग्दर्शन होते हैं, लेकिन आश्चर्य की बात यह भी है कि मनुष्य एक ओर जहाँ अपनी सफलता का श्रेय स्वयं को देता है, वहीं दूसरी ओर असफलता की कथा भाग्य पर थोपता है। दरअसल जीवन में भाग्य जैसी तो कोई बात ही नहीं। कर्म का फल तो आपकी मानसिकता पर आधारित है।        

हार्टफोर्डशायर विश्वविद्यालय स्थित प्रोफेसर रिचर्ड वाइज़मेन ने एक दशक पूर्व भाग्य पर एक परीक्षा का आयोजन का विचार करते हुए एक विज्ञापन का प्रसारण किया कि ऐसे जो लोग प्रबल भाग्यवादी या इसके विपरीत हैं, वे उनसे सम्पर्क करें। उन्हें आशातीत आवेदन प्राप्त हुए, जिनमें से कुछ को चुनकर उन्हें एक स्थान पर बुलाकर सबको एक- एक अखबार देते हुए कहा कि उसमें कितने फोटो हैं, गिनकर बताएँ और यह कहते समय यह बात छुपाई कि उसी अखबार में किसी जगह एक संदेश भी उपलब्ध था कि इसे पढ़कर बताने पर 50 डालर के इनाम की राशि का पढ़ने वाला अधिकारी हो जाएगा। अक्षर भी बड़े थे। आश्चर्य की बात तो यह हुई कि जहाँ भाग्यहीन इसे देख नहीं पाए, वहीं भाग्यवानों ने इसे तुरंत देख लिया। इसका कारण स्पष्ट था कि पहला वर्ग जहाँ तनाव के परिप्रेक्ष्य में इसे नहीं देख पाया, वहीं भाग्यशाली लोगों ने तुरंत देख लिया।

अब इस बात से प्रोफेसर वाइज़मेन ने यह निष्कर्ष निकाला कि कुछ लोग केवल इसलिए अवसर खो देते हैं; क्योंकि वे केवल एक जगह केन्द्रित रहते हैं। पार्टियों में भी वे सर्वोत्तम साथी की खोज में उलझे रहकर अच्छे मित्र बना पाने से वंचित रह जाते हैं। दूसरे अवसरों की उपेक्षा कर देते हैं। लकी लोग तनाव से रहित होकर खुले दिल दिमाग से अवसरों की खोज करते हुए उनका सम्मान करते हैं। लचीले लोग अंतस् की आवाज की कद्र करते हैं। वे बदलती परिस्थिति के परिप्रेक्ष्य में खुद को ढालने की कला में सक्षम होते हैं। इस तरह प्रोफेसर ने जो निष्कर्ष निकाले वे यूँ थे :

-   अपने अंतस की आवाज की उपेक्षा मत कीजिए। उसे ठीक से सुनिए, परखिए। वे अधिकर बार सही साबित होती हैं।

-   नये प्रयोगों का खुलकर स्वागत करें

-   हर दिन का आकलन करते हुए याद रखें ,उस दिन जो भी घटित अच्छी घटनाएँ रही हों

-   खुद को भाग्यशाली समझते हुए तथा हर दिन को सुअवसर मानते हुए कार्य का आरंभ करें

 याद रखिए समाज में सर्वाधिक खुश लोग वे नहीं होते, जिनके जीवन में कोई समस्या नहीं होती, बल्कि वे होते हैं, जो उनके साथ जीने की कला को सीख लेते हैं। चिंता और सोच के बीच बहुत छोटा अंतर है। चिंताग्रस्त व्यक्ति केवल समस्या देखते हैं जबकि सोच से समाहित व्यक्ति उन्हें सुलझा लेते हैं। भाग्य को अपनी ओर उन्मुख रखिए।

सम्पर्क: 8/ सेक्टर-2, शांति निकेतन (चेतक सेतु के पास), भोपाल-462023,

 मो. 09826042641, E-mail- v.joshi415@gmail.com

26 comments:

  1. देवेन्द्र जोशी02 November

    जीने की सही कला इससे अधिक आसानी से नहीं समझाई जा सकती है‌। साधुवाद!

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  2. हार्दिक आभार आदरणीय, सदा की तरह इस बार भी आपने त्वरित टिप्पणी से उत्साह में अभिवृद्धि की। सादर

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  3. Anonymous09 November

    Very nice learnings in the article...
    Vandana Vohra

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    1. Dear Vandana, as an HighTech IT professional your passion for reading touches me to the core. With regards

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  4. Anonymous09 November

    अच्छा विश्लेषण किया है आपने। साथ ही, लोगों को निमंत्रण दिया है, कुछ अच्छा सीखने के लिए ।

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    1. हार्दिक आभार मित्र

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  5. Anonymous09 November

    दिल की आवाज सुने या दिमाग की। यह भृम हमेशा रहता है।

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    1. सुनना तो सदा दिल को ही चाहिये पूरी ईमानदारी के साथ। हार्दिक आभार

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  6. Sorabh Khurana09 November

    Exactly Sir , Awesome messages:
    Fortune favours the brave... and one should always listen to the inner voice.

    Sadhuwad🙏🙏

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  7. Dear Sourabh, inner voice will never deceive, so you should always value it irrespective of luck. With affection

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  8. माननीया, भेल के कॉरपोरेट कार्यालय राजभाषा प्रमुख रूप में आपका योगदान अद्भुत है। एक इंजीनियरी संस्थान में यह कार्य सरल भी नहीं है, पर आपने असंभव को संभव कर दिखाया। सो हार्दिक साधुवाद। सादर

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  9. Anonymous09 November

    बहुत ही व्यावहारिक एवं यथार्थ को परिभाषित करने वाला लेख। इस लेख को पढ़ने के पश्चात मुझे वर्ष 2000 में बी एच ई एल भोपाल के सांस्कृतिक सभागार में एक आयोजन में आपसे सुनी हुई दो पंक्तियां याद आती हैं:
    जो होता है होने दो यह पौरुषहीन कथन है।
    होगा वह जो हम चाहेंगे इन शब्दों में जीवन है।।

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    1. प्रिय मंगल स्वरूप, कितनी पुरानी बात याद दिलवाई। सच में इस दौर में ऐसे स्नेही कहां मिलते हैं। मेरा परम सौभाग्य। हार्दिक आभार। सस्नेह

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  10. आदरणीय सर,
    बिलकुल सही विश्लेषण किया आपने, कर्म से ही भाग्य का निर्माण होता है ।
    अपने यहां तो कहावत भी है की~
    पैर में मोच और छोटी सोच इंसान को आगे नहीं बढ़ने देती,
    इतने सरल शब्दों में इतनी बड़ी सीख के लिए धन्यवाद ।

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    1. प्रिय शरद, इस वाट्सेपी दौर में भी कितने मनोयोग से पढ़ते हो। भेल और मेरा हम दोनों का सौभाग्य है। सोच ही तो संवारने की विषय वस्तु है। हार्दिक आभार। सस्नेह

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  11. आदरणीय सर, जीवन जीने का नजरिया बहुत अच्छे उदाहरण से प्रस्तुत किया है आपने.. सोना भूलाय जाए, कोयला पर छापा.. कोयले की बचत करते समय सोना खो जाना जैसा ही है सुअवसर को खोना 👌🏼🙏🏼

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    1. प्रिय रजनीकांत, यह तो विचार यात्रा है जो तुम्हारे सहयोग से जारी है। हार्दिक आभार

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    2. आपका बड़प्पन है सर 🙏🏼

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  12. Anonymous10 November

    बिल्कुल सच बात है सर, भाग्य भी सकारात्मक सोच रखने वालों का ही साथ देता है 🙏🙏
    निशीथ खरे

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    1. भाई निशीथ, बिल्कुल सही कहा आपने। हार्दिक आभार।

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  13. सर जीवन जीने की कला इतने गंभीर प्रश्न को इतनी सरलता से आपने समझाया हे
    यह अद्भुत कला मे समझता हूं इसके लिए कितने तजुर्बे की आवश्यकता हे जो कि आप मे अति उन्नत रूप से अपार हे
    कोटि कोटि धन्यावाद सर

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    1. प्रिय भाई असलम, बात तो सही कही आपने। दुनिया ने तजुर्बातो हवादिस की शक्ल में जो कुछ मुझे दिया है वही लौटा रहा हूं मैं। अपना साथ तो समय की शिला पर सिद्ध है। हार्दिक धन्यवाद।

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    2. हार्दिक आभार सर

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  14. Very well written, people get caught in their own defined circle and don't look beyond!

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  15. That's quite correct sir. Thanks very very much. Kind regards

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  16. आदरणीय गुप्ताजी, आपका साथ मेरे लिये सत्संग के समान है। आभार छोटा शब्द है, आत्मा में एहसास है मुझे। हार्दिक आभार सहित सादर

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