-विजय जोशी
(पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल (म. प्र.)
समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याध
जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध
जीवन
की सुंदरता यही है इसमें अनिश्चितता निहित है। आदमी, समाज
या सभ्यता को यदि पहले से ही भविष्य की जानकारी मिल जाये तो फिर कर्म दोयम दर्जे
पर चला जाएगा। आदमी आने वाले कल या भाग्य के भरोसे बैठ जाएगा। इस संदर्भ में
उपरोक्त शीर्षक को देखकर चौंकिएगा नहीं। एक अद्भुत प्रसंग जिसे साझा किया है थिंक
गैस के अध्यक्ष मेरे मित्र संदीप त्रेहन ने।
दुबई
के संस्थापक शेख रशीद से जब देश के भविष्य के बारे में पूछा गया , तो उनका उत्तर बहुत रोचक था। उन्होंने कहा:
- मेरे दादा ने ऊँट की सवारी की
- मेरे पिता ने भी ऊँट की ही
सवारी की
- मैंने मर्सिडीस की सुविधा का
लाभ उठाया
- मेरे पुत्र ने लेंड रोवर का
आनंद लिया
- किंतु मेरा नाती फिर ऊँट की
सवारी करेगा
ऐसा क्यों कहा आपने। जब यह पूछा गया तो उनका उत्तर बेहद रोचक और सारगर्भित
था :
कठिन समय एक मजबूत आदमी का सृजन
करता - मजबूत आदमी एक आसान समय का सृजन
- आसान समय की देन है एक कमजोर आदमी
- और कमजोर इंसान सृजन करेगा एक कठिन समय का
इसका
तात्पर्य सिर्फ यह है कि हमें योद्धा तैयार करने चाहिए, न कि परजीवी । शेख ने आगे अपनी बात जारी रखी – इसे परखा जा सकता है पुरानी
विशाल सभ्यताओं की विफलता से, जैसे फ़ारसी, ट्रोजन, मिस्र, ग्रीक, रोमन इत्यादि। आज वे सब इतिहास की धरोहर होकर रह गईं हैं। और बाद के दौर
में ब्रिटेन की सभ्यता। इन सबका विकास 240 वर्षों की
अल्पावधि में ढह गया और यह पराक्रम किसी बाहरी आक्रमण से नहीं, अपितु अंदर की सड़न या घुन से हुआ।
आज अमेरिका सहित अन्य कई यूरोपीय देश वैसी ही 240 वर्षों की सीमा रेखा को क्रॉस करने की कगार की ओर अग्रसर हैं। जो पीढ़ी
पहले समुद्र तटों पर तैराकी की शौकीन हुआ करती थी, अब जरा
-जरा सी बात पर आहत होकर कमरों में कैद हो जाती है। संवेदनशीलता समाप्ति की कगार
पर। संवादहीनता अग्रगामी।
आज हर नागरिक परजीवी होता जा रहा है। हर एक को
सरकार से मुफ्त सुविधा की चाहत है, क्योंकि
उन्हें लगता है कि वे उसके उत्तराधिकारी हैं। दुर्भाग्य से हमारे यहाँ तो यह
सरकारों के गद्दीनशीन होने की एक अनिवार्य शर्त होता जा रहा है, जो भविष्य में भयानक बदहाली में तब्दील हो सकता है। यह ऊँट के उदय होने की
आहट की संभावना का पूर्वानुमान है। इतिहास स्वयं को दोहराने को लालायित है । अब
समय भी शेष नहीं है। याद रहे प्रकृति हमारी विरासत नहीं, बल्कि
आगत पीढ़ी की धरोहर है। इसे न केवल सहेजें, अपितु संवारें सुरक्षापूर्वक
सौंपने के लिये। अपने पैरों पर खड़े हों कर्म के बल पर। मुफ्तखोर बनकर नहीं। प्रगति
की दौड़ पर्यावरण की कीमत पर नहीं। वरना महाकवि इक़बाल तो कह ही गये हैं :
वतन की फिक्र नादाँ मुसीबत आने वाली है
कि तेरी बर्बादियों के मश्वरे हैं
आसमानों में
न समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिंदोस्ताँ
वालों
तुम्हारी दास्ताँ तक भी न होगी दास्तानों
में
सम्पर्क: 8/ सेक्टर-2,
शांति निकेतन (चेतक सेतु के पास), भोपाल-462023,
मो. 09826042641,
E-mail- v.joshi415@gmail.com
समाज के उत्थान के लिए निरंतर सांस्कृतिक परिवर्तन आवश्यक है। यदि ये परिवर्तन केवल ऐशो आराम की वृद्धि के लिए हो तो समाज कमजोर होता जाता है। समग्र समाज के विकास को ध्यान में रखते हुए किए परिवर्तन ही समाज को मजबूत बनाते हैं। आपने सही मुद्दे की ओर ध्यान आकर्षित किया है। साधुवाद!
ReplyDeleteदेवेन्द्र जोशी
ReplyDeleteआदरणीय,
Deleteबिल्कुल सही कहा आपने। परिवर्तन तो प्रकृति का नियम है, पर वह हो सर्वजन हिताय : सर्वजन सुखाय। स्वार्थ से सर्वथा परे।
हर बार की तरह इस बार भी आप मेरे मनोबल के कृष्ण रूपी वरिष्ठ रहे हैं। हार्दिक आभार। सादर
100% सत्य विश्लेषण किया है आपने, इससे हमे यही सीख लेनी है की हमे अपनी नई पीढ़ी को भी संघर्ष करना सिखाना चाहिए । उन्हे सिर्फ आसान समय का आदि नहीं बनाना चाहिए ।
ReplyDeleteबल्कि उन्हें हमारे और हमारे पूर्वजों के उस पुरुषार्थ से बखूबी अवगत कराना चाहिए जिसके बदौलत उन्हे ये आसान समय प्राप्त हुआ है ।
आति उत्तम लेख ।
साधुवाद
प्रिय शरद, सकारात्मक संघर्ष के अभाव में प्राप्त सफलता उतनी सुखद नहीं होती। बच्चों के लिये भी संदेश समाहित है। आशा है गुजरात में आनंद आ रहा होगा। सस्नेह।
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteExcellent article sir
ReplyDeleteThanks very much Dear Om Prakash
ReplyDeleteआदरणीय जोशी जी, आपने शाश्वत सत्य सरल शब्दों में बयाँ कर दिया है।आपने सत्य कहा कि यदि हमें विश्व व मानवता बचाना है तो हमें परजीवी व मुफ़्तख़ोर न बनकर, प्रकृति को सहेज-सँवार कर भावी पीढ़ी को सौंपे जो कि उन्हीं की धरोहर है।
ReplyDelete-वी.बी.सिंह
लखनऊ।
आ. सिंह सा., सही कहा आपने, पर चिंता किसे है। सच कहें तो हमारी पीढ़ी को भी नहीं।
Deleteकाश सब तगिक ही जाए। हार्दिक आभार। सादर
काश सब ठीक हो जाए। हार्दिक आभार। सादर
Deleteसच है। आगे की पीढ़ियों के लिये हमें आज ही जागरूक होना पड़ेगा।
ReplyDeleteहार्दिक आभार मित्र
Deleteप्रेणादायक लेख,. आपने सही कहा karm प्रथम भाग्य दिव्तीय। एक बार जब मैं arnhem नीदरलैंड में शार्ट सर्किट टेस्ट की गया था ,तो देखा की एक बृद्ध व्यक्ति करीब 70 साल एक प्लास्टिक की थैली लेकर रेलवे स्टेशन के बाहर खड़ा था , saturday को। फिर मैंने देखा यंग बच्चों की भीड़ स्टेशन से बाहर निकलती और bear कैन pizza packet, snacks packet sadak main daal kar chali jati to bah vridh vyakti unko collect kar pass ke garbage bin main dal deta tha,jab maine pucha to usne kaha hamare fore father's ne nederland ko sea sa bachane bandh banye,diwar banaya, nahren banayi isko ab young log nahi jante aur bear pikar littering karte kyonki ab sab unhen aasani se mil jata hai , so I atleast keep this area clean as I have no work at this hour in night. Please note 8n developed country infrastructure is old and will collapse soon bcz their economy based on device sector.
ReplyDeleteCorrection .Service sector . Dave
ReplyDeleteअशोक भाई, आपने तो सारी दुनिया देखी है, सो बात का भगव ग्रहण कर लिया। विदेशी अधिक जागरूक हैं हमारे मुकाबले। हार्दिक आभार। सादर
DeleteDear Joshiji, आज कोई student किताब text book ,नहीं खरीदता, numerical questions solve नहीं करना चाहता, हाथ से fountain pen पकड़कर लिखना नहीं चाहता, पहाड़े याद नहीं करता hand writing सुधारना नहीं चाहता, 5 kilometer पैदल नहीं चल सकता, 24 घंटे भूखा नहीं रहा
ReplyDeleteबिना बिजली सो नहीं सकता, अपने clothes पर press नहीं कर सकता, खाना नहीं बना सकता, shoes per polish नहीं कर सकता, 8 घंटे study नहीं कर सकता, इस generation को कौन ठीक करेगा, सिर्फ पूरे देश में 1000 students,जो UPPSC qualify करते है, आज real में मन लगाकर study करते है, हमे कुछ करना चाहिये
ReplyDeleteइसमें एक आवश्यक तत्व, पुरुषार्थ छूट गया। धीरूभाई अंबानी के 2 पुत्र, मुकेश और अनिल, इसका साक्षात उदाहरण है। मेहनत का कोई शॉर्टकट नहीं होता। एक और ताजा ताजा उदाहरण ख्याल आया। बाल ठाकरे जहां अपनी मेहनत से उस मुकाम पर पहुंचे, वही उद्धव उसको अपनी बपौती समझ कर चले और औंधे मुंह गिरे।
ReplyDeleteएक कहावत है Hard work can replace intelligence, but intelligence can not replace hard work. सादर साभार आपका आभार. सादर
DeleteAs I have dealing with students, baring a few ,most of them are not learning
ReplyDelete1)देशभक्ति
2) रामजी, श्रीकृष्ण जी, तिलक जी के आदर्श
3)हमारी समृद्ध विरासत और उसके आदर्श
4)बारे mim त्याग की भावना
उचित बातों को, positivity को समर्थन, दे, highlight करें, अच्छे लोगों की जय जयकार हर कोई करें, महिमामंडित हो,,ऐसे लोग
ReplyDeleteजय श्रीरामजी
प्रिय डॉ. अग्रवाल,
ReplyDeleteयही तो कहा है. आसान समय की देन है आलसी आदमी. और बच्चों को यह भी हमारी ही देन है. संस्कार तो दूर हमने उनका सफर इतना सरल कर दिया कि वे परिश्रम की परीक्षा में चूक गए. बहैसियत प्रोफेसर आपकी पीड़ा से मैं पूरी संवेदना रखता हूं.
आप इतने मनोयोग से पढ़कर प्रतिक्रिया देने का परिश्रम करते हैं, इसका आभार शब्द सीमा से कई गुना अधिक है. हार्दिक आभार सहित सादर
शत प्रतिशत सत्य यदि समय रहते बदलाव नहीं आया तो आने वाला समय भयावह होगा
ReplyDeleteहार्दिक आभार भाई किशोर। सादर
Deleteसाहेब आपका लेख सत्यता बता रहा है। परिवर्तन तो इस श्रुष्टि का एक नियम या सिद्धांत है जिसे अपनाने की जरूरत है आज की पीढ़ी को। आदरणीय पिताश्री को सादर नमस्कार व चरण स्पर्श ।
ReplyDeleteप्रिय हेमंत, हार्दिक आभार। सस्नेह
Deleteबिल्कुल सही कहा आदरणीय... जहां अभाव होता है वही कुछ करने का भाव भी आता है.. और वही लोग सामर्थ्यवान बनते हैं.. मुफ्त की चीजें हरामखोर ही बनाती हैं.. आत्मनिर्भरता एक सशक्त राष्ट्र की पहचान होती है 🙏🏼
ReplyDeleteबधाई सर
--
रजनीकांत चौबे
प्रिय रजनीकांत, हमारे देश में तो जनता फ़्री बिजली पानी की चाह में सरकार बना देती है। कहीं ऐसा न ही कि हम भी लंका पाकिस्तान हो जाएं। सस्नेह
Deleteबिल्कुल सही कहा आपने सर 🙏🏼😊
Delete"आदरणीय जोशी सर,
ReplyDeleteसादर अभिवादन
आपके सारगर्भित आलेख को जितनी बार पढा जाए मन हर बार बहुत कुछ सीखता है।कर्मठता, जुझारूपन, परिश्रम जैसे मानवीय मूल्यों के आधार पर ही हम अपनी सामाजिक ,आर्थिक और सांस्कृतिक विरासत को सहेज पाएँगे।बिना आंव में तपे मिट्टी का सकोरा पानी की एक बूँद भी नहीं सम्भाल पायेगा।ऐसे ही सुविधा भोगी जीवन सिर्फ भावी पीढ़ी के लिए कंटक के अलावा कुछ नहीं दे पाएगी।
"आसान समय की देन कमजोर आदमी ......एक कठिन समय का" इन पंक्तियों में पुरा कालचक्र है।
आपकी लेखनी सदा सर्वदा की तरह सभी विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करेगी।
हार्दिक साधुवाद।
माण्डवी सिंह।💐💐💐💐💐💐💐💐😊
आदरणीया, सही कहा आपने। विरासत से विकास या विनाश हमें ही चुनना है। अंग्रेजी में एक कहावत है Complacency kills a person यानी सीमा से अधिक आराम, आलस व्यक्तित्व का विकास अवरुध्द करता है। आप शिक्षक हैं सो बात को सर्वथा नवीन आयाम प्रदान कर देतीं हैं। सो इस बार भी किया। हार्दिक आभार। सादर
Deleteस्वामी विवेकानंद जी का कथन है कि सभी वस्तुएं अपने चरम तक पहुंचती हैं और इसके बाद उसका पतन होना भी आरम्भ हो जाता है। इसके इसके उदाहरण में उन्होंने ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि के पतन और शूद्रों के क्रमिक उत्थान पतन आदि का ऐतिहासिक क्रम का उल्लेख किया है।
ReplyDeleteआज का परिदृश्य दुर्भाग्यपूर्ण है। परन्तु पतन के बाद उत्थान के क्रम भी आता है।
आलेख के रुप में इस सिद्धांत को रोचक ढंग से लिपिबद्ध किया गया है।
अत्यंत सराहनीय। बहुत साधुवाद।
आ. गुप्ताजी, आपके सकारात्मक सोच से मैं भलीभांति परिचित हूं। पतन के पश्चात सृजन शाश्वत सत्य है। आशा है विश्वास साथ है। हार्दिक आभार सहित सादर
ReplyDeleteआभार, आदरणीय। हार्दिक आभार। संगति से गुन होत है, संगत से गुन जाय। आप सुहृद सुजन जनों की संगति का प्रभाव और वरिष्ठ जनों का आशीर्वाद है। ईश्वर इसे बनाये रखें।
Deleteबहुत बढ़िया आलेख सर😊🙏
ReplyDeleteअरविन्द गुप्ता
ReplyDeleteअरविंद भाई, हार्दिक आभार। सादर
ReplyDeleteExcellent article sir
ReplyDeleteBahut badiya aalekh sir
DeleteThanks very much.
ReplyDeleteExcellent article sir. 🙏🙏
ReplyDeleteSo nice of you. Thanks very very much.
ReplyDeleteसमाज के सामूहिक उत्थान अर्थात देश के उत्थान के लिये श्रेष्ट लेख वास्तव मे हमे नइ तकनीकों के भौतिकी करण ने आलसी बना दिया हे जिसके कारण हम अपने कमरों मे केद हो गये ओर देश मे बेरोजगारी अपने चरम पर आ गई
ReplyDeleteभला हो आज जनसंख्या नियंत्रण होने से अभी बहुत ज्यादा प्रभाव नही पडा अन्यथा हालात ओर अधिक खराब होते
आपके चिंतन के लिए साधुवाद आप को
बिल्कुल सही कहा आपने भाई असलम, हालात तो दर्दनाक हैं हमारे यहां भी। कांक्रीट जंगल का दौर है। ख़ुदा खैर करे। हार्दिक आभार। सस्नेह
ReplyDeleteनिरंतर सुधार करते हुए जो समाज आगे बढ़ता है वही समाज उन्नति करता है जड़वत समाज धर्मांधता और दूसरों के प्रति वैमनस्य का भाव रखता है आज भारतीय संस्कृति का रहना इसके निरंतर सोच और संवाद के कारण है
ReplyDeleteहार्दिक आभार भाई अनिल, बिल्कुल सही कहा आपने।
ReplyDeleteसही दिशा में किया सुधार ही खोलता है प्रगति के द्वार। हार्दिक आभार। सादर
सरकार से मुफ्त सुविधाएं और कर्मठ, ईमानदार मध्लोयमवर्गी जनता पर बढते टैक्स यह सरकार के गद्दानशीन होने की अनिवार्य शर्त बन गई है। हमारे देश की यह दुर्भाग्यपूर्ण वास्तविकता को उजागर किया आपने। शायद आपकी यह चेतावनी हमारे नेताओं के समझ में आए तो देश का सौभाग्य होगा।
ReplyDeleteआ. कासलीवाल जी, बिल्कुल सही बात। मुफ्तखोरी का नशा देश को गर्त में ले जाने का प्रथम सोपान है। अब तो इस आधार पर राज करने का राज़ पार्टियों का पता चल गया है। ईश्वर रक्षा करे। हार्दिक आभार। सादर
ReplyDeleteमेरा ऐसा मानना है की पर्यावरण को ध्यान में रखकर आगे आने वाले समय में पेट्रोल और डीजल की जगह नई ऊर्जा से चलने वाले वाहन ही बनेंगे और यदि ऐसा ना हो पाया तो प्रकृति अपना बदला लेना अच्छी तरह जानती है।
ReplyDeleteराजेश भाई, सही कहा है आपने. प्रकृति से ऊपर नहीं है पुरुष. वह सबक सीखाना जानती है. हार्दिक आभार सहित सादर
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत और प्रेरणादायक विचार!
ReplyDeleteहार्दिक आभार मित्र
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