-विजय जोशी
पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल (म. प्र.)
संसार में प्रबंधन के क्षेत्र में सुचारू संचालन के लिये जापान ने सर्वाधिक
योगदान दिया है। यह उनकी प्रतिबद्धता के साथ ही देश प्रेम का भी सूचकांक है। इसी
तरह हमारे देश में टाटा प्रतिष्ठान भी सिद्धांतवादी सोच के प्रतिबिंब हैं। एक बार
टाटा होटल प्रबंधन ने जापानी विशेषज्ञ मसाई को वर्कशाप हेतु आमंत्रित किया। चूंकि
होटल पहले ही काफी अच्छा चल रहा है, इसलिए सब उलझन
में पड़ गए। खासतौर पर इसलिए भी कि जापानी इस मामले में विशेषज्ञ नहीं माने जाते
हैं, लेकिन चूंकि आदेश था; अत: सब सभागार
में एकत्र हो गए।
छोटे
से कद व साधारण सी कद काठी वाले मसाई को जो विद्वत्तापूर्ण अंग्रेजी भी नहीं बोल
पा रहे थे, सबने आश्चर्य से देखा। और तभी मसाई ने बोलना
आरंभ किया - इसे वर्कशाप कहा गया है, किन्तु यहाँ न तो कोई
वर्क है और न ही शाप। आइए हम पहली मंजिल से काम शुरू करें यह कहते हुए वे चल दिए,
जो यह होटल का लांड्री सेक्शन था। मसाई ने खिड़की से बाहर की ओर
देखकर कहा : सुंदर दृश्य। यहाँ लांड्री क्यों। इसे बेसमेंट में शिफ्ट किया जा सकता
है तथा यह कमरा गेस्ट निवास। सब अवाक् रह गए कि यह उन्हें क्यों नहीं सूझा। मैनेजर
ने कहा मैं नोट कर लेता हूँ ताकि रिपोर्ट में जोड़ा जा सके। - क्षमा करें इसमें
रिपोर्ट जैसा कुछ नहीं। इसे अभी ही किया जाना है।
- अभी
- मैनेजर अचकचा गया।
- हाँ, बिलकुल अभी।
कुछ ही घंटों में और यह कहते हुए मसाई ने आगे कहा – हम लंच पूर्व जब मिलें तब तक
यह कक्ष कालीन, पर्दों, फर्नीचर,
बेड सहित सुसज्जित तो कर देंगे न आप। सबने सहमति में सिर हिला
दिया।
- अब अगला गंतव्य था पेंट्री, जहाँ प्रवेश स्थल पर ही दो बड़े सिंक थे, धोई
जानेवाली प्लेटों से लबालब। मसाई ने जैकेट उतारी और उन्हें धोना शुरू कर दिया।
- यह आप क्या कर रहे हैं - मैनेजर ने कहा
- देखा नहीं मैं प्लेट धो रहा हूँ
- इसके लिए तो स्टाफ है यहाँ
- मसाई तब बोले - सिंक धोने के लिए है तथा बगल
में रखे स्टेंड उन्हें रखने हेतु। अत: इन्हें वहीं जाना चाहिए और यह कहते हुए पूछा
- आपके यहाँ कितनी कुल प्लेट हैं?
- बहुत
सारी। आवश्यकता से काफी अधिक।
- और तब मसाई ने समझाया शब्द ‘मुडा’ अर्थात्
देरी तथा अनावश्यक व्यय - मेरी वर्कशाप भी यही है कि दोनों से बचा जाए। यदि आप जरूरत
से अधिक रखेंगे, तो उन्हें धोने में देरी लगेगी, अत: अनावश्यक प्लेट तुरंत हटा दें।
- हाँ इसे रिपोर्ट में जोड़ लेते हैं।
- नहीं, समय बर्बादी
की आवश्यकता नहीं। हम सब मिलकर अभी अनावश्यक प्लेट पैक करके, अन्य टाटा संस्थान जहाँ, जरूरत हो अभी भेजेंगे।
और
फिर वर्कशाप के समापन पर उन्होंने एक कहानी सुनाई - एक अमेरिकन और जापानी एक जंगल
में अकस्मात् मिले, जहाँ पास ही कहीं उन्हें एक शेर
की दहाड़ सुनाई दी। दोनों ने दौड़ना आरंभ किया, किन्तु जापानी
ने पहले बैठकर अपने जूते निकालकर फीते बाँधे।
अमेरिकन बोला- क्या कर रहे हो। हमें तो दूरी
स्थित अपने वाहनों के पास जल्दी से जल्दी पहुँचना है।
जापानी
ने कहा- मैं तो केवल यह सुनिश्चित कर रहा हूँ कि तुमसे दौड़ में आगे रहूँ। और यह
कहते हुए मसाई ने अपना संदर्भ स्पष्ट किया - इस दौर में प्रतिस्पर्धा इतनी अधिक है
कि हर एक को दूसरे से आगे रहना है, भले ही दो
कदम। आपके देश पर प्रकृति मेहरबान है। आप अपने विनिर्माण खर्च में कमी करते हुए
यदि गुणवत्तापूर्ण उत्पाद दे सकें, तो कई अन्य देशों से आगे
होंगे।
बात
समाप्त हुई। जीवन में हर पल एक अवसर है। कभी देरी नहीं होती। दुर्घटना से देर भली।
आइए हम सब अपने जीवन से ‘मुडा’ हटा दें, इसी पल से तथा
खुद के साथ ही साथ देश को भी प्रगति के मार्ग पर अग्रसर होने का अपना धर्म पूरा
करे। कहा ही गया है :
काल करे
सो आज कर,
आज करे सो अब।
पल में प्रलय होएगा बहुरि करेगा कब।
सम्पर्क: 8/ सेक्टर-2, शांति निकेतन (चेतक सेतु के पास), भोपाल-462023, मो. 09826042641, v.joshi415@gmail.com
यह सही है कि जो सुधार हो सकता है उसे तुरंत ही क्यों न अमल में लाया जाए। यह वह। व्यक्ति अपने स्वयं को सुधार के लिए भी लागू कर ले तो समाज का काया पलट हो सकता है। इसके लिए किसी भी प्रकार के पूर्वाग्रह से मुक्त होना जरूरी है।
ReplyDeleteयह सही है कि जो सुधार हो सकता है उसे तुरंत ही क्यों न अमल में लाया जाए। यदि व्यक्ति अपने स्वयं को सुधार के लिए भी लागू कर ले तो का काया पलट हो सकता है। इसके लिए किसी भी प्रकार के पूर्वाग्रह से मुक्त होना जरूरी है।
ReplyDeleteआदरणीय,
ReplyDeleteशाश्वत सत्य कहा आपने। हम सुधरेंगे जग सुधरेगा। पर कितनों ने पालन किया। सब स्व विद्वान तो बने बैठे हैं : पर उपदेस कुशल बहुतेरे। सो सुधार की संभावना बची ही कहां।
सदा की तरह आज भी आप मेरे मनोबल में अभिवृद्धि के सर्वप्रथम पुरोधा हैं। सो सादर साभार अंतर्मन से आभार।
सही है जोशी साहेब । जापानियों का एक नियम है किसी भी काम को तुरुन्त करना और समय पर करना (just do it and just in time ) इसलिए आज जापानी एक विकसित देश है।। जोशी साहेब को धन्यवाद की समय समय पर इस तरह के लेख से हमें ज्ञान हासिल होता है।
ReplyDeleteप्रिय हेमंत, हर बार की तरह जुड़ने के लिये आभार। पुत्री विवाह प्रसंग हेतु मेरी हार्दिक बधाई। सस्नेह
Deleteमसाई साहब का 5 M का सिद्धांत बहुत ही महत्वपूर्ण है अगर इसको सही तरीके से लागू किया जाए तो औद्योगिक जगत में एक क्रांति आ सकती है धन्यवाद सर यह सब याद दिलाने के लिए
Deleteभाई किशोर, आपने तो स्वयं जापानी सिद्धांतों पर बहुत कार्य किया है भेल में,जो आज तक मेरे ज़ेहन में है। हार्दिक आभार। सादर
Deleteआदरणीय सर,
ReplyDeleteबिल्कुल सही संदेश दिया गया है लेख में, हमे भी इसे जीवन में आत्मसात करना चाहिए, तथा साथ ही आप भी धन्यवाद के पात्र है की आपने इतनी महत्वपूर्ण सीख को इतने सरल शब्दों में हम सब तक पहुंचाया।
प्रिय बंधु, जापान तो प्रबंधन के क्षेत्र में अनुकरण हेतु सर्वोत्तम उदाहरण है। अगली बार अपना नाम भी अवश्य लिखियेगा। हार्दिक धन्यवाद।
Deleteअद्भुत...अमल में लाया जाने वाला सन्दर्भ। ऐसा निचोड़ कहीं और पढ़ने नहीं मिलता। सर को साधुवाद।
ReplyDeleteबहुत सुंदर, सही और महत्वपूर्ण संदेश देता आलेख हार्दिक बधाई आपको सुधार के लिए समय की प्रतीक्षा क्यों , तुरंत क्यों नहीं? बूँद-बूँद से सागर भरता है। हर व्यक्ति सुधार का प्रयास करें तो उसके योगदान से समाज और देश का सुधार यकीनन होगा।
ReplyDeleteबहुत सुंदर और सारगर्भित बात कही आपने. यही एकमात्र हल है स्वयं तथा समाज, देश को प्रगति के पथ पर अग्रसर कर पाने का. आप सुधी पाठक हैं यह मुझे मालूम है. उदंती के प्रति आपका स्नेह सराहना के योग्य है. हार्दिक आभार सहित सादर
Deleteयोगेश भाई, गोकुल ऊर्फ़ भास्कर भोपाल पुनः आगमन पर हार्दिक बधाई। भेंट होती रहेगी सुबह की सैर पर। सादर
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपके प्रेरक योगदान हेतु। सादर
ReplyDeleteअद्भुत एवं प्रेरक प्रसंग..
ReplyDeleteजापानी - कोइ काम छोटा नहीं होता
भारतीय - कोई व्यक्ति छोटा नहीं होता
बधाई सर 💐💐🙏🏼
रजनीकांत चौबे
बिल्कुल सही कहा है. सस्नेह
Deleteएक बार एक प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग ले रहा था। जिसमे यह बताया जा रहा था कि वर्क शाप में उत्पाद की गति को सरल रेखा में रखा जाय तो समय की बचत के साथ साथ उत्पादकता में भी वृध्दि होती है। इसी कार्यक्रम में यह भी बताया गया कि गुणवत्ता के जो स्थापित मानदंड हैं उससे अधिक गुणवत्ता सुनिश्चित करना (over quality) भी दोषपूर्ण व्यवस्था है।
ReplyDeleteगुणवत्ता और कार्यशीलता एक चारित्रिक गुण है जो जापानियों में स्वभावतः पाई जाती है। यह प्रसंसनीय भी है और अनुकरणीय भी।
प्रबंधन में संसाधनों का सम्पूर्ण एवं सटीक उपयोग (resourse optimization) भी महत्वपूर्ण है जिसका सटीक उदाहरण प्लेटों एवं लांड्री के माध्यम से दिया गया।
यह उदाहरण केवल व्यावसायिक संस्थानों के लिए ही नहीं व्यक्तिगत जीवन के लिए भी बहुत उपयोगी है। बहुत लोग थाली में भोजन की कुछ मात्रा छोड़ देते हैं। यह भी संसाधन का दुरुपयोग ही है।
अत्यंत सारगर्भित एवं उपयोगी आलेख के लिए साधुवाद।
आदरणीय,
Deleteबिल्कुल सही कहा आपने. विज्ञान के कई सूत्र व्यक्तिगत जीवन में भी प्रासंगिक हैं. जापान की जीवन पद्धति सर्वोपरि उदाहरण है इस मायने में. 6 Sigma, JIT, Kaizen, 5S, TQM आदि केवल कुछ उदाहरण मात्र हैं.
आप सदैव मनोयोग से पढ़कर तार्किक तरीके से विचार साझा करने का कष्ट करते हैं. सो सादर साभार अंतर्मन से आभार.
Dear जोशी जी, I have taught TQM subject in which many rechniques,like JIT,Kaizen,etc.
ReplyDeleteare unique. Japanese are unique in many respects. शब्द कम हैं विशेषताओं के बारे में लिखने के लिये
I have first hand experience about these people, as I had a chance to be in this country for a short period . हमें इनसे बहुत कुछ सीखना चाहिये
Professor S K AGRAWAL GWALIOR
जोशी जी को साधुवाद, धन्यवाद,आभार, जय श्रीरामजी
प्रोफेसर अग्रवाल सही कहा आपने. हमने भेल में कई जापानी पद्धतियों को अपनाया है. यही कारण है कि संस्था कठिन दौर में भी प्रगति कर सकी. कागज पर उकेरने का विनम्र प्रयास करने का यत्न किया है मैंने भी.
ReplyDeleteहार्दिक आभार. सादर
सादर प्रणाम आदरणीय सर्
ReplyDeleteकिस्सागोई के माध्यम से प्रबंधन की सर्वोत्तम शिक्षा आपकी रचनाधर्मिता का अद्वितीय सार है।काश!पाठ्यक्रम की मोटी मोटी नीरस पुस्तकों में ऐसे प्रसंगों का समावेश हो जाय तो कार्य और व्यवहार दोनों में विद्यार्थी अव्वल रहे।
आपकी लेखनी की रोचकता औऱ मौलिकता दोनों अद्भुत है।इतनी सरल भाषा मे सारगर्भित जीवनोपयोगी आलेख को पढ़कर मेरे जैसा विद्यार्थी पाठक बहुत कुछ सीखता है।कोटिशः साधुवाद।
माण्डवी सिंह भोपाल।💐💐💐💐
कम लिखे पढ़े होने का भी अपना सुख है. किस्सागोई जरूरी हो जाता है रुचि बनाये रखने के परिप्रेक्ष्य में. हार्दिक आभार सहित सादर
ReplyDeleteआपकी शिक्षा अद्भुत है
ReplyDeleteसादर प्रणाम गुरुजी।
हार्दिक धन्यवाद
DeleteWorth emulating.....
ReplyDeleteVandana
Instant implementation is need of the hour.Thanks sir for posting such a useful article.
ReplyDeleteDear Mukesh, Thanks very much. How is the climate of Tamilnadu. Here it's very hot. Please take care.
ReplyDeleteम'मुड़ा'के विपरीत काम टालने की प्रवृत्ति (काम चोरी) हमारे नौकरशाही में कूट-कूट कर भरी है। जिससे ज्यादातर सरकारी परियोजनाएं Time overrun / Cost overrun से ग्रसित होती है। आपका यह लेख अत्यंत सामायिक है।
ReplyDeleteआदरणीय, बिल्कुल सही कहा आपने. जापानियों के सर्वथा विपरीत हम हिंदुस्तानी तो कामचोरी के पर्याय हैं. यदि ऐसा न होता तो देश अब तक कहां से कहां पहुंच गया होता.
ReplyDeleteआशा करें किसी न किसी दिन बुद्धि जाग्रत होगी हमारी.
सादर साभार अंतर्मन से आभार सहित
बहुत ही सुंदर, सारगर्भित और सही मार्गदर्शन देने वाला आलेख है, आप हमेशा एक नई चेतना लिए हैं।
ReplyDeleteजापानी कई मामलों में अद्भुत, कर्मठ और अनुशासित हैं, इसीलिए वे प्रगति के सोपान पर आज बहुत ऊपर हैं।
सादर अभिवादन।
प्रिय मधु बेन, जापान वालों की तुलना में तो हम कुछ भी नहीं हैं. बेहद देश भक्त, कर्मठ एवं ईमानदार कौम.काश हम उनसे कुछ सीख पाते. सस्नेह
ReplyDeleteBahut hi saral shabdon main piroya Gaya jiwan Ka ati mahatwapoorn sutra.
ReplyDeleteSo nice of You. Please mention Your name also next time. Thanks very very much.
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