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Apr 1, 2022

आधुनिक बोध कथा- 4ः गधे की कीमत

 - सूरज प्रकाश 

एक था कुम्हार। उसके पास थे बहुत सारे गधे। वैसे तो कुम्हार का अपना पुश्तैनी धंधा था; लेकिन बदलते बाज़ार के तेवर देखते- देखते उसने कई तरह के धंधे अपना लिये थे। इस वजह से उसका कारोबार भी बढ़ रहा था और गधों की संख्या भी। कभी वह अपने गधों को ढुलाई के कामों में लगा देता, कभी दूसरे जरूरतमंद लोगों को अपने गधे भाड़े पर दे देता। कई बार तो काम धंधे से वापिस आते हुए वह अपने चुनिंदा और मजबूत गधों पर अशक्त और बीमार सवारियाँ भी बिठा लेता। इस तरह से उसका काम बहुत अच्छे से चल रहा था। वह अक्सर गधे खरीदता और बेचता भी रहता। उसके अच्छे दिन आ गए थे।

अब हुआ यह कि इस बार मेले में उसने जो गधे खरीदे, उनमें से एक गधा अव्वल दर्जे का हरामी निकला। हट्टा-कट्टा था, देखने में भी अच्छा था; लेकिन काम करने में महा आलसी और बेईमान। वह गधा हर बार कोई ऐसी जुगत भिड़ाता कि अर्थ का अनर्थ हो जाता और कुम्हार का नुकसान होता सो अलग। कभी सवारी को गिरा देता, कभी किसी भले आदमी पर दुलत्ती चला देता।

एक बार तो उसने ग़ज़ब ही कर दिया। कुम्हार को नमक की ढुलाई का बहुत बड़ा ठेका मिला। सब गधों पर नमक लाद दिया गया और चल पड़े मंजिल की तरफ। रास्ते में पड़ती थी एक छोटी- सी नदी। बाकी गधे तो आराम से नदी पार कर गए; लेकिन वह गधा जान बूझकर नदी के बीच बैठ गया। नतीजा ये हुआ कि पानी में बहुत सा नमक घुल गया और गधे की पीठ पर रखा वज़न बहुत कम हो गया। कुम्हार समझ गया कि गधे ने चाल चलकर अपना बोझ कम कर लिया है। आखिर वह भी गधे का बाप था। उसने गधे को सबक सिखाने की सोची। अगली लदान में उसने बाकी गधों की पर तो नमक लदवाया लेकिन इस गधे पर थोड़ा कम नमक लादकर ढेर सारी रुई लदवा दी।

गधा अपनी मस्ती में चला। जब नदी आयी तो पहले की तरह पानी में बैठ गया। लेकिन यह क्या। नमक तो घुल गया; लेकिन भीगने से रुई का वज़न बहुत बढ़ गया। गधा भी समझ गया कि कुम्हार ने आखिर बदला ले लिया।

दिन बीतते रहे। न गधा अपनी हरकतों से बाज आया न कुम्हार ने उसे सज़ा देने में कोई कसर छोड़ी।

आखिर कुम्हार ने तय किया कि वह इस नामुराद गधे को अगले पशु मेले में बेच देगा। उसने गधे की कीमत पाँच हजार रुपये तय की। अब किस्मत की मार, सारा काम धंधा छोड़कर वह कई-कई बार उस गधे को बेचने के लिए अलग-अलग पशु मेलों में जाता रहा; लेकिन गधे का कोई ग्राहक नहीं मिलना था, नहीं मिला।

एक बार सब लोग बहुत हैरान हुए, जब उन्होंने देखा कि उस गधे के गले में पाँच हजार के प्राइस टैग के बजाये पच्चीस हजार रुपये का टैग लगा हुआ था।

सबने पूछा – रे कुम्हार, बावरा हुआ है क्या। जो गधा इतने दिन से पाँच हजार में नहीं बिक रहा था, उसे आज तू पच्चीस हजार में बेचने चला है। ऐसा क्या नया जुड़ गया है गधे में कि तू पाँच गुना कीमत पर बेच रहा है।

कुम्हार ने ठंडी सांस भरते हुए कहा - इस गधे ने तो मेरी जान सांसत में डाल रखी है। इसकी वजह से मेरा सारा धंधा चौपट हुआ जा रहा है। अब कल की ही बात लो। मैं आँगन में सोया हुआ था। वसूली करके लाया था। बीस हजार रुपये के कड़क नोट मेरे सिरहाने अँगोछे में बँधे रखे थे। मेरी आँख लग गई और ये नामुराद अँगोछे समेत सारे नोट खा गया। अब मैं वह बीस हजार भी तो इसी को बेच कर वसूल करूँगा।

डिस्‍क्‍लेमर: इस बार डिस्‍क्‍लेमर थोड़ा अलग है। एक देश है। वहाँ बहुत सारे बैंक हैं। इन बैंकों के जरिये (या मिलीभगत से) समूची अर्थव्यवस्था को चट कर जाने वाले कुछ शातिर लोग हैं। बैंक उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते या बिगाड़ना नहीं चाहते। फिर उन बैंकों में अपनी मेहनत की कमाई रखने वाले मामूली लोग हैं। उन्हें बैंकों के जरिये ही दिन में बीस बार लेनदेन करना पड़ता है। मजबूरी है; क्योंकि वह देश कैश रहित लेनदेन में विश्वास रखता है। उस देश में बैंक इसी बात का पूरा फायदा उठा रहे हैं। नोट चबा जाने वालों पर तो उनका बस चलता नहीं, गरीब आदमी की पीठ पर रुई लादकर उसकी जान निकाले दे रहे हैं। एक गधे पर बस नहीं चला, तो दूसरी गधी के कान उमेठ दिये।

9930991424, kathaakar@gmail.com

5 comments:

  1. 😁😁 बहुत रोचक, निशाना सही है।

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  2. मनोरंजक

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  3. रोचक और सटीक

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