मुखड़ा हुआ अबीर लाज से
अंकुर फूटे आस के।
जंगल में भी रंग बरसे हैं
दहके फूल पलाश के..
मादकता में डाल आम की
झुककर हुई विभोर है।
बाँचे मादक भोर है..
खुशबू गाती गीत प्यार के
भौंरों की गुंजार है।
सरसों ने भी ली अँगड़ाई
पोर-पोर में प्यार है..
मौसम पर मादकता छाई
किसको अपना होश है।
धरती डूबी है मस्ती में
फागुन का यह जोश है..
सम्पर्कः rdkamboj@gmail.com
वाह,फागुन की मस्ती में आनन्द बिखेरती प्रकृति के वैभव और उल्लास को चित्रित करती सुंदर रचना।नमन आदरणीय काम्बोज जी को।
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ReplyDeleteबहुत प्यारी रचना , एक एक पंक्ति मनमोहक
ReplyDeleteफाल्गुन की बहकती झालर में झूलती कविता में रंगीन समां बांधा है आपने। बधाई हो
ReplyDeleteवाह!एक चित्र, रंगों का संग, मस्ती और मकरंद की महक,,,,,सभी कुछ एक रंगीन समां में बंधा है। सजीवता कविता की विशेषता है। बधाई हो ।
ReplyDeleteवाहह!!!🌹सर अत्यंत सुंदर मोहक वर्णन फागुन का.... वाहह... 💐💐🌹🌹🙏
ReplyDeleteफागुन का बहुत खूबसूरत मनमोहक चित्रण। बहुत बधाई।
ReplyDeleteलाजवाब बसंती बयार का झौंका
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteआप सबकी उत्साहवर्धक टिप्पणियों के लिए कृतज्ञ हूँ।
ReplyDeleteसुंदर एवं चित्र उकेरती अभिव्यक्ति।
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