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Feb 1, 2022

जीवन दर्शन - पौराणिक की प्रासंगिकता

 -विजय जोशी (पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल (म. प्र.)

बाहर की तू माटी फाँके

भीतर मनवा क्यों ना झाँके  

आधुनिक जन पौराणिक को पुरातन मानते हुए भले ही अस्वीकार करें, पर इसकी प्रासंगिकता को नकार पाना दुरूह है.  मूल बात तो यह है कि इनके तत्कालीन सृजनकर्ताओं के मनोभाव  को तब के परिप्रेक्ष्य में देखते हुए सामयिक, सार्थक संदेश को आचरण में अंगीकार कर न केवल  जीवन जिया जा सकता है, अपितु उसे सफलता के शिखर तक पहुँचाया भी जा सकता है।  कुरुक्षेत्र घटित महाभारत युद्ध का वर्णन मात्र पौराणिक या धार्मिक ग्रंथ न होकर एक संपूर्ण जीवन संहिता है, जिसे एक अलग दृष्टिकोण से इस प्रसंग के माध्यम से भी समझा जा सकता है।

महाभारत युद्ध की समाप्ति के पश्चात वीर विहिन रक्त से रंजित धरा पर जब संजय पहुँचे तो उनका मन स्वजनों के मध्य घटित इस युद्ध के परिणाम और निरर्थता के मद्देनज़र ग्लानि से भर उठा। वे चिंतन तथा चिंतायुक्त मन:स्थिति के साथ धरती पर बेसुध होकर बैठ गए, और तभी उनका सामना एक वयोवृद्ध  पुरुष से हुआ जिसने कहा – हे संजय क्या सोच रहे हो- तुम लाख प्रयत्न के बाद भी घटित इस सत्य को कभी नहीं जान पाओगे।

 संजय ने पूछा – ऐसा क्यों, क्या आप बता पाएँगे।

वृद्ध ने कहा – अवश्य, जीवन में पाँच पांडव तो प्रतीक हैं पाँच इंद्रियों के :

1.  दृष्टि / Sight, 2. श्रवण / Hearing, 3. गंध / Smell, 4.  स्वाद / Taste, 5/ स्पर्श / Touch

और कौरव प्रतीक  हैं उन दोष, विकार या प्रवृत्ति के जो आपकी इंद्रियों पर हावी होकर, प्रतिदिन आक्रमण कर उसे कुंद बनाने का उपक्रम करती हैं, जिनसे लड़ने का माद्दा आपके अंदर समाहित है पर उसे जीवंत रखने का उत्तरदायित्व भी आप ही को निभाना है।  

संजय ने सहमति में सिर हिलाया तथा आगे पूछा – और कृष्ण?

कृष्ण तो अंतरात्मा की आवाज हैं, जिसका अनुसरण यदि आप कर सकें तो चिंता की कोई बात ही नहीं।

अब तक उत्सुक हो चुके संजय ने फिर प्रश्न किया –  तो फिर द्रोणाचार्य, भीष्म क्या हैं ?

वृद्ध ने अपनी बात जारी रखी – ऐसे वरिष्ठ जन जो उत्तम न होकर भी स्वयं को सर्वगुण संपन्न समझते रहे। दोषपूर्ण आचरण के स्तंभ।

अब तक की व्याख्या से अभिभूत हो चुके संजय ने अगला सवाल पूछा – और कर्ण ?

वृद्ध ने उत्तर दिया – कर्ण आपकी इंद्रियों का भाई है। ऐसी इच्छाएँ या लालसा जो आपके साथ सदा खड़ी रहती हैं।  आपको मार्ग से विचलित करने के लिये बनीं हैं तथा आप गलत होते हुए भी स्वयं को सही समझते रहते हैं।

अंदर से आंदोलित संजय ने मौन रहते हुए सहमति में सिर हिलाया। महाभारत के सारे घटनाक्रम के तार इस नवीनतम सत्य से जोड़ते हुए कहीं दूर विचारों में खो गए। और जब चेतना लौटी तो देखा वे वृद्ध जा चुके थे जीवन के वास्तविक दर्शन का दिग्दर्शन कराते हुए।  यह तथ्य सत्य है कि महाभारत वास्तविकता से समाहित एक अपूर्व  ग्रंथ है पर उसकी एक अलग व्याख्या  उपरोक्त संदर्भ में पात्रों के परिप्रेक्ष्य में सारगर्भित सार्थकता से परिपूर्ण है। एक अद्भुत संदेशवाहक जो दैनिक जीवन के लिये भी अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। कृष्ण  ने गीता में इसी गूढ़ तत्व को समझाने का यत्न किया है, बशर्ते हमारी मानसिकता और जिज्ञासा उस सूत्र को समझकर जीवन में उतार सके।

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज

अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच:

सम्पर्क: 8/ सेक्टर-2, शांति निकेतन (चेतक सेतु के पास), भोपाल-462023,
 मो. 09826042641, E-mail- v.joshi415@gmail.com

44 comments:

  1. This is indeed an interesting way to interpret Mahabharat....
    Vandana Vohra

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  2. Thanks very very much. You are a real passionate reader and morale booster. Regards

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  3. आपने बहुत ही सरल व स्पष्ट शब्दों में समझाया है । सादर नमस्कार व चरण स्पर्श।

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    1. प्रिय हेमंत, हार्दिक धन्यवाद। सस्नेह

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  4. आपकी भाषा बड़े ही सरलता से दिल को छू जाती है।
    आपको सादर प्रणाम।

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    1. प्रिय चन्द्र, हार्दिक धन्यवाद। सस्नेह

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  5. अत्यंत सुंदर

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    1. हार्दिक धन्यवाद महोदय

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  6. महाभारत को एक अलग रंग में देखना एवं पात्रो की मानव इंद्रियों अद्भुत तुलना प्रसंग सहित शानदार व्याख्या के लिए हार्दिक बधाई सर 💐💐💐💐🙏🏼🙏🏼

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    1. प्रिय रजनीकांत, यह सोच और कर्म के समायोजन का विनम्र प्रयास है. सस्नेह

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  7. अत्यंत सुंदर Sir

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  8. महाभारत युद्ध में शामिल प्रत्येक योद्धा पराक्रमी राजाओ की लड़ाई थी। लड़ाई से पूर्व पांडव मात्र पांच गांव माग रहें थे। परंतु स्वार्थ हट और अहंकार के आगे घुटने टेक दिए। आखिर युद्ध हुआ और परिणाम सामने आए।

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    1. यह सोच, संस्कार और मूल्यों के संरक्षण का विनम्र प्रयास है. हार्दिक धन्यवाद

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  9. HIRANAND ANANDANI04 February

    अति सुन्दर लाजवाब आपकी शैली अद्भुत ह्रदय से नमन

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    1. आप तो आचरण से निष्काम कर्मी हैं पूरी तरह से. हार्दिक आभार. सादर

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  10. सर 🙏🙏 जीवन दर्शन का अद्भुत ज्ञान निहित है, इस लेख मे बहुत सुन्दर l

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  11. Sir explained nicely in simple way.

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    1. प्रिय भाई मुकेश, हार्दिक आभार.

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  12. इस तरह से कभी महाभारत को देखा ही नहीं! बहुत ही अच्छी तरह से बात समझा दी है सर इस लेख में आपने!

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    1. प्रिय विजेंद्र, हार्दिक धन्यवाद. सस्नेह

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  13. हमारे पौराणिक आख्यानों की यही विशेषता है कि वे किसी भी देश काल और परिस्थिति में न केवल अपनी प्रासंगिकता सिद्ध करती हैं वरन उपादेयता भी।
    वेदो को को अवतरित ग्रंथ इसी संदर्भ में कहा गया है कि ये इतने सूक्ष्म और व्यापक हैं कि आप इनकी अनेकों व्याख्या प्रस्तुत कर सकते हैं। फिर भी कुछ न कुछ शेष रह जाता है। यही बात पौराणिक आख्यानों के सम्बंध में भी है।
    जो स्थूल मति से कथानक मात्र ग्रहण कर पाते हैं वे इसकी सूक्ष्मता से परिचित नहीं हो पाते और इसे अप्रासंगिक अथवा धर्म आदि से जोड़ कर देखते हैं।
    आपने महाभारत की सूक्ष्मता का दिग्दर्शन कराया है यह अत्यंत सराहनीय और सार्थक कार्य है।
    बहुत बधाई और साधुवाद।

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    1. आदरणीय गुप्ताजी,
      आप तो शास्त्रों के अध्ययन के विशारद हैं। अपने आप में सम्पूर्ण। दरअसल हमने धर्म ग्रन्थों को सतही तौर पर पढ़ा है। गहराई में उतर सार्थक संदेश को आचरण में उतारने का गंभीर प्रयास किया ही नहीं गया। नई पीढ़ी को विरासत तो तब सौंपते जब खुद जान पाते। तथाकथित धर्म गुरुओं ने भी कोई प्रयास नहीं किया। राजनेताओं की तो बात ही छोड़िये, सारा किया धराया ही उनका है।
      खैर देर आयद, दुरुस्त आयद। दुर्घटना से देर भली।
      हमेशा की तरह पढ़कर आपने आगे की दिशा भी दिखाई। सो हार्दिक आभार। सादर

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  14. Wonderfully explained ... Its unique & awesome and an eye opener sir...

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  15. प्रिय ओम, हार्दिक धन्यवाद. सस्नेह

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  16. आदरणीय जोशी सर,
    हार्दिक आभार सहित अभिवादन
    आपके आलेख को पढ़कर सदा सर्वदा की तरह मन प्रफुल्लित हुआ।आपकी लेखनी का अंदाज सबसे निराला है। मेरे जैसा जड़ मति भी आत्मज्ञान का दर्शन और पौराणिक पृष्ठभूमि से जीवन दर्शन प्राप्त कर लेता है।पंचतंत्र की कहानियों जैसी रोचकता और प्रासंगिकता आलेख पठन की उत्कंठा को बढ़ा देती है।मुझे तो नई जानकारी मिली महाभारत के पात्रों के आधार पर।ऐसे प्रेरणादायक आलेखों से लाभान्वित कराने के लिए सादर धन्यवाद।
    माण्डवी सिंह भोपाल।

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    1. आदरणीया, आपकी तो बात ही अलग है। खुद विदुषी होकर भी दूसरों का उत्साह वर्धन करती हैं। हार्दिक आभार।

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  17. अतिसुंदर चित्रण हमारे ग्रथ और पुराण जीवन की सही शिक्षा देते है आपका प्रयास प्रेणना दायक है

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    1. हार्दिक आभार मान्यवर

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  18. महाभारत के पात्रों की सरल शब्दों में बहुत ही सुंदर और प्रेरक व्याख्या। इसमें सीखने के लिए बहुत कुछ है। हार्दिक बधाई सर!
    आप अपने प्रेरक शब्दों से व्यक्ति और समाज को बेहतर बनाने में इसी प्रकार योगदान करते रहें। हमारी हार्दिक शुभकामनाएं!

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    1. आदरणीया, भेल के कॉरपोरेट कार्यालय दे बहैसियत हिंदी प्रभारी आपने तो पूरे भारत में भेल का नाम रोशन किया है। हार्दिक आभार सहित सादर

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  19. महाभारत के पात्रों का संदर्भ लेते हुए जीवन दर्शन का यह रूप एकदम नया है इस तरह के शिक्षा पर लेखों के लिए आपका साधुवाद और धन्यवाद

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    1. भाई किशोर, आपने तो अपना जीवन इन्हीं सिद्धांतो पर जिया है। हार्दिक आभार। सादर

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  20. बहुत सारगर्भित लेखन! बधाई!

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    1. आ. अरुण भाई, आप तो आदर्श हैं हमारे। सो हार्दिक आभार सहित सादर

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  21. महाभारत की आज के परिप्रेक्ष्य में की गई सुंदर एवम सारगर्भित व्याख्या ....

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    1. हार्दिक आभार। सादर

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  22. पुरुषोत्तम तिवारी 'साहित्यार्थी' भोपाल
    भगवान श्री कृष्ण के मुखारविन्द से जीवन दर्शन का सार तत्व मनुष्य के भौतिक आचरण के लिए अनुकरणीय और आध्यात्मिक कल्याण के लिए महामंत्र दिया गया, यह भी महाभारत का एक अंश है. सनातन धर्म के समस्त ग्रन्थ वैज्ञानिक सम्मत हैं. मनुष्य को केवल उस वैज्ञानिक दृष्टि को समझना होगा.
    दृष्टान्त के साथ लेख बहुत जीवनोपयोगी है. सर हार्दिक बधाई.

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    1. आ. तिवारी जी, आप सदैव तार्किक और सारगर्भित सोच के वाहक हैं. हार्दिक आभार सहित सादर

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  23. बहुत ही सहज,सरल अंदाज़ में आपने समझाया।अति सुंदर लेख।प्रेरणादायी लेख।युवा पीढ़ी को ज़रूर पढ़ना चाहिए।

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    1. लिखा तो मूलतः युवा पीढ़ी के लिये ही है. हार्दिक आभार.

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  24. पढकर अच्छा लगा । नई व्याख्या सोचने को मिली ।धन्यवाद

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  25. आदरणीय, हार्दिक आभार. सादर

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