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Dec 1, 2021

तीन कविताएँ : बच्चों और बड़ों के घर

- हरभगवान चावला

1.

बच्चे छोटे-छोटे घर बनाते हैं 

उन घरों में होती है 

रिश्तेदारों, पड़ोसियों,दोस्तों 

और राहगीरों के लिए भी जगह 

बड़े बहुत बड़े घर बनाते हैं 

उन घरों में स्वयं उनके लिए भी 

पर्याप्त जगह नहीं होती ।

2.

मिट्टी और तृण-तिनकों से बने 

बच्चों के घरों में 

ख़ूब सारे दरवाज़े होते हैं 

और खिड़कियाँ

कि कोई कहीं से भी 

अंदर-बाहर आ-जा सके 

निर्बाध 

बड़ों के बनाए घर 

घर नहीं, क़िले होते हैं ।

3.

बड़ों के बनाए घरों में 

मौजूद रहती हैं सारी सुविधाएँ

नहाने-धोने, खाने-पीने

बैठने-सोने, पढ़ने-लिखने के लिए 

उपलब्ध रहती हैं जगहें 

पूजा पाठ के लिए 

बना होता है मंदिर 

बच्चों को इनमें से 

किसी की ज़रूरत नहीं होती 

वे अपने घरों में 

धुआँ निकालने के लिए 

एक बड़ा सुराख रखते हैं बस ।

3 comments:

  1. वाह ! बहुत ही सुंदर एवं सारगर्भित

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  2. बहुत सुंदर कविताएँ

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  3. वाहह... कितनी सारगर्भित एवं यथार्थ रचनाएँ हैं वाहह 💐🙏

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