जब
मैं था तब हरि नहीं, अब हरि
है मैं नाहि
सब
अंधियारा मिटी, जब
दीपक देखा माहि
ईश्वर
जीवन का एक अनिवार्य अंग है भले वह आकार रूपी हो या निराकार रूपी। यहाँ हम ईश्वर
के अस्तित्व, उसके होने या न होने की बहस में पड़ने के
बजाय मानव जीवन में उसकी अनिवार्यता की बात कर रहे हैं। नास्तिक भी भले ही ईश्वर
के अस्तित्व को नकारे, लेकिन वे भी यह तो स्वीकारने से
इनकार नहीं कर सकते कि उनके अपने निजी जीवन में भले ही वे पूजा उपासना के उस
स्वरूप को न प्राप्त कर सके जो सर्वमान्य है, पर उन्हें
भी कठिनाई के क्षणों में एक मनोवैज्ञानिक सहारे की आवश्यकता अनुभव होती है।
बात
और आगे बढ़ाएँ तो पाएंगे कि जीवन में एक न एक खूंटे की जरूरत रहती है। जैसे पशु
सारे दिन चरकर संध्या समय फिर खूँटे पर लौट आते हैं खुद ब खुद बँध जाने के लिये।
यह खूँटा ही उनके मन में सुरक्षा की भावना उपजाता है। बच्चे के लिए उसकी माँ का
आँचल ही उसका खूँटा है, जिसमें मुँह ढाँककर वह संसार की
सारी दुश्चिंता से सुरक्षा पा लेता है। हरेक का अपना एक खूँटा होता है जो उसे
मनोवैज्ञानिक रूप से सुरक्षित रखता है और हर कठिनाई या दुख के पल में उसे उसकी याद
पूरी शिद्दत से आने लगती है। हरेक का आश्रय स्थली या आसरा यही है। यही बात तो संत
कबीर ने भी कही है – उड़ी जहाज को पंछी पुनि जहाज पे
आए।
अब
इसको थोड़ा और आगे बढ़ाएँ तो पाएँगे कि जीवन का जो स्थायी खूँटा है वह ईश्वर ही
है। हर मुश्किल के पल में वह अदृश्य होते हुए भी सदा हमारे साथ खड़ा रहता है। याद कीजिए
कठिनाई के क्षणों में हम जब प्रार्थना करते हैं, तो कितनी
शांति तथा साहस प्राप्त होता है। हमारा परिवेश,
वातावरण मात्र जीवन का भौतिक पक्ष है तथा जितनी आवश्यकता भौतिक संसाधनों की होती
है उतनी ही या उससे अधिक मनोवैज्ञानिक सहारे की। साहस शरीर से अधिक मन का होता है
और इसके लिये आत्मा की मजबूती अनिवार्य है।
प्रगतिशीलता
का चोला ओढ़कर भले ही आप ईश्वर को नकार दें, पर हजारों
के विश्वास की थाती को नकारना तो उचित नहीं। इस संदर्भ में गाइड फिल्म के राजू का
छोटा सा वाक्य मुझे आज भी अपील करता है। जब उस पर साधु उपाधि थोपकर अनशन पर बैठा
दिया गया, तब एक पत्रकार द्वारा उसे ईश्वर पर विश्वास
के संदर्भ में पूछे जाने पर देवानन्द ने कहा था - मैं नहीं जानता ईश्वर है या
नहीं। लेकिन उस पर इतने लोगों का विश्वास है और इनके
विश्वास में ही मेरा विश्वास है। यह विश्वास ही हमारी थाती है।
एक
नवयुवक का विवाह हुआ, वह अपनी दुल्हन को लेकर समुद्री
जहाज से यात्रा पर निकला। कुछ ही दिन बाद समुद्र में तूफान आ गया, जहाज काफी पुराना था, सो तूफान के वेग के आगे
डगमगाने लगा। सब यात्रियों में भय व्याप्त हो गया। लगने लगा कि जहाज अब डूबा,
तब डूबा। मौत का मंजर सामने आने लगा तो
सबकी आँखों में खौफ व्याप्त हो गया। उस सबसे बेखबर वह नवयुवक सहज बैठा हुआ था।
उसकी नई नवेली पत्नी जीवन के सफर की शुरुआत में ही ऐसा संकट देखकर घबराने लगी और
थर-थर काँपने लगी।
उसने अपने पति से पूछा - जहाज डूबने वाला है, मौत
सामने खड़ी है और आप शांत चित्त कैसे बैठे हो।
उसका पति हँस
पड़ा उसने अपनी म्यान में से तलवार निकाली और अपनी पत्नी के गले पर रख दी। उसकी
पत्नी हँसने लगी, नवयुवक कहने लगा - तुम्हारी गर्दन पर
मैं नंगी तलवार रखे हुए हूँ और फिर भी तुम हँस रही हो।
उसकी
पत्नी ने कहा - मुझे तुमसे प्रेम है, तो तुम्हारी तलवार
से भय मालूम नहीं होता।
नवयुवक
ने कहा - मुझे भगवान से प्रेम है, इसलिए तूफान से या
मौत से भय मालूम नहीं होता। सच है जहाँ प्रेम है वहाँ भय की कोई संभावना नहीं है।
मनुष्य के व्यक्तित्व के केन्द्र पर हजारों सालों से भय का अधिकार छाया हुआ है। भय
चूँकि नकारात्मक स्थिति है, इसलिए यह मनुष्य के
व्यक्तित्व को भी नकारात्मक बना देता है। जो मनुष्य इस स्थिति से उबरकर अपना
व्यक्तित्व निखारता है, वही जगत में अपनी विशिष्ट पहचान
बनाने में कामयाब होता है।
इसलिए आप ईश्वर पर विश्वास अवश्य रखें एवं और यदि उसके अस्तित्व पर ही
आपको यकीन न हो, तो भी उसे जो भी नाम देना चाहे, उसे उसी रूप में स्वीकारें। आखिरकर जीवन की जंग में अंदर के साहस तथा आत्म
विश्वास की आवश्यकता तो होगी ही और उसके लिये कोई न कोई आसरा आपको ढूँढना ही होगा।
जब आप प्रार्थना में रत होते हैं, तब वह उस तक पहुँच ही
रही है, यह तो किसी ने नहीं देखा, पर उन क्षणों में आपका तन, मन दोनों स्थिर होते
हैं। बैचेनी कम होने लगती है तथा धैर्य आपके सोच को बलवान बनाकर आपको आत्म विश्वास
प्रदान करते हुए परिस्थिति से सामना करने हेतु मानसिक रूप से तैयार करता है। और
यही है वह संबल, आसरा, आश्रय
या खूँटा। जिस नाम से भी आप पुकारना चाहें उसके लिए आप स्वतंत्र हैं, लेकिन एक न एक ऐसे मानसिक सहारे की खोज अवश्य करें। इससे आपको गहन दुख के
क्षणों में गहन शांति का अनुभव होगा।
सलीका
ही नहीं उसे महसूस करने का
जो कहता है कि खुदा है तो दिखाई
देना ज़रूरी है
सम्पर्क: 8/ सेक्टर-2, शांति निकेतन (चेतक सेतु के पास), भोपाल-462023, मो. 09826042641, E-mail- v।joshi415@gmail।com
Faith n patience are the key.
ReplyDeleteJoshi saab your thoughtful presentations are a source of great inspiration....
Thanks and regards please.
DeleteNice thoughts.....
ReplyDeleteThanks very very much
DeleteVery true. We all need an anchor in our lives
ReplyDeleteVandana Vohra
Thanks Vandana for your passionate reading and observation.
Deleteशानदार सर जी ।
ReplyDeleteप्रिय चंद्र, सस्नेह
Deleteबहुत सुंदर बात है। अगर मैं होता तो क्या होता । अगर मैं न होता तो क्या होता। मुझको को बनाया होनी ने ना होता तो क्या होता।
ReplyDeleteकितनी सुंदर बात कही आपने। हार्दिक आभार
DeleteVery nice story
ReplyDeleteअदृश्य शक्ति ही हमें सब कार्य करवाती है। उदाहरण के लिए मानव शरीर की संरचना ऐसी रची है कि आज तक कोई वैज्ञानिक इसको समझ पाया है। इससे यह सिद्ध होता है कि ये अदृश्य शक्ति ही ईश्वर है और इससे निस्वार्थ प्रेम ही मनुष्य को समय समय पर प्रेरित करता है। धन्यवाद साहेब। अप्रतीम
ReplyDeleteVery nice article sir.
ReplyDeleteSo nice of you Dear Shri Mukesh. Thanks very much
Deleteआनन्द आ गया सर, खूंटा बड़ा ही सटीक उपमेय है। गले से लगा है तो सुरक्षा बोध और गले से इतर तो पीड़ा। और अगर नहीं हो तो भय। अर्थात हर हाल में खूंटा चाहिए। इस बात से कोई अंतर नहीं पड़ता कि आप नास्तिक है अथवा आस्तिक।
ReplyDeleteइस प्रश्न का भी कोई अर्थ नहीं कि ईश्वर होता है या नहीं। हमारा होना ही ईश्वर का होना है। कृष्ण बिहारी नूर का एक शेर है
आग है, पानी है, मिट्टी है, हवा है मुझमे।
और ये मानना पड़ता है खुदा है मुझमें।
असल चीज तो है प्रेम। जो बड़े ही सुंदर और सटीक ढंग से नवविवाहित जोड़े द्वारा व्याख्यायित किया गया है। विन्दु कवि कहते हैं "है प्रेम जगत में सार और कुछ सार नहीं है।"
रही बात मन और मनोविज्ञान की तो भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं " मनः एव मनुष्याणां कारण बंधन मोक्षयो"।
सो अध्यात्म के हर पक्ष को अपने बड़े सुगठित और सन्तुलित रूप में प्रस्तुत किया है।
बहुत बधाई।
खूंटा शब्द थोड़ा देहाती लगा था लिखते समय पर सच समाहित भी लगा। सो लिख दिया। ईश्वर तो एक विश्वास एवं कृतज्ञता ज्ञापन का सेतु है। आपसी प्रेम सौहार्द ही शाश्वत है। आपके प्रति हार्दिक आभार। सादर
Deleteअद्भुत। बिल्कुल सौ टका सत्य। ईश्वर पर विश्वास होने से काम होने से पहले का जरूरी हौसला अवश्य मिल जाता है। मुश्किल में ईश्वर की प्रार्थना ही हमारी सारथी होती है। उनके भरोसे ही हम उस समय को गुजार लेते हैं अन्यथा दुख का आवेग कहीं भी ले जा सकता है।
ReplyDeleteप्रसंग उदाहरण सहित बताना आपके लेखनी की कला है जो आम जनमानस के मन को स्पर्श करती है। पुनः बधाई आदरणीय💐💐💐
सादर-
रजनीकांत चौबे
सच कहा प्रिय रजनीकांत, सही कहा। हौसले का पर्याय ही तो है ईश्वर। तुम्हें पसंद आया तो लगा लिखना सफल हो गया। सस्नेह
Deleteआपका बड़प्पन है सर, आपका स्नेह मिलना सौभाग्य है😊
Deleteअद्भुत क्षमता ईश्वर भक्ति जगाने की Joshiji में
ReplyDeleteExcellent presentation of ideas
भोगा हुआ यथार्थ
जय श्रीरामजी
डॉ श्रीकृष्ण अग्रवाल, Gwalior
प्रिय बंधु, लिखना समय गुजारने का साधन है। आपकी पसंदगी सम्बल बनती है। सादरआभार।
Deleteबहुत ही अद्भुत और सत्यता के दर्शन से परिपूर्ण आलेख है हम कुछ भी कहें, सोचें परंतु एक महान अदृश्य शक्ति जरूर विद्यमान है जिसने इस प्रकृति और ब्रह्मांड की इतनी व्यवस्थित रचना की और इस सृष्टि को अत्यंत ही
ReplyDeleteअद्भुत और व्यवस्थित तरीके से चला रही है जिसे हम जो भी चाहें नाम दें। इसलिए विश्वास के साथ हमें उस शक्ति की प्रार्थना में बहुत शांति और सुरक्षा महसूस होती है।
बहुत सुंदर आलेख, हार्दिक अभिनंदन।
अपने अहंकार के वशीभूत हम कई बार ईश्वर के अस्तित्व को ही नकार देते हैं. विश्वास ही तो अद्भुत शक्ति है. सस्नेह
DeleteFaith in God is supreme. Excellent article.
ReplyDeleteघर मनुष्य का सुरक्षित आश्रय है, पर उससे भी आगे खूँटे का उपमान मन का सुरक्षित आश्रय है,बंधन भी सुखद होता है,यह इस लेख में नवदम्पति के प्रेम में छिपा है, सच है जहाँ विश्वास हो वहाँ भय नही उपजता,बस यही विश्वास जीने का आधार बन जाता है। सुंदरतम विचार ,अनुकरणीय शब्दावली।
ReplyDeleteसुनीता यादव
खूंटा शब्द देहाती लगता है पर मुझे सार्थक और सामयिक लगता है. प्रेम प्राणी मात्र इसीमें ही सार है. हार्दिक धन्यवाद
Deleteअति उत्तम सर जी करता भी वही है करवाता भी वही है हम चाहे जो उसे नाम दें
ReplyDeleteसही बात. हार्दिक आभार भाई किशोर. सादर
DeleteThanks very much
ReplyDeleteनास्तिक हो या आस्तिक हर मनुष्य के मन में किसी न किसी रुप में ईश्वर अवश्य ही मौजूद है। सभी गतिविधियों का श्रोत भी वही है तथा आत्मबल भी वहीं से आता है। श्रद्धा रखने से आत्मबल बढ़ता ही है।आपका लेख कईं लोगों को इस सत्य से अवगत करायेगा ऐसी आशा है। आपका साधुवाद।
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने. ईश्वर तो सबसे बड़ा संबल है जीवन का. हार्दिक आभार. सादर
Deleteपुरुषोत्तम तिवारी 'साहित्यार्थी'
ReplyDeleteसर, भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है कि मामेकम् शरणं व्रज. यह उसी खूंटे की ओर का संकेत है. अनाथ वही तो है जिसका कोई नाथ नहीं है. नास्तिकता तो एक ढ़ोंग है. भय और सहारे की कामना तो उसके भी मन में रहती है. इस सुन्दर लेख के लिए बधाई.
बिल्कुल सही सोचा आपने। आस्तिकता का भी अपना सुख है। कृतज्ञता ज्ञापन पुरुष का सबसे बड़ा गुण है। हार्दिक आभार।
DeleteSir, You are an inspiration for us. .Really hats off to you sir
ReplyDeleteप्रिय ओम, कोरोना काल में तुम प्राण रक्षक बनकर उभरे. यह हम सबके लिये गर्व की बात है. सस्नेह
Deleteसाहस शरीर से अधिक मन का होता है और इसके लिये आत्मा की मजबूती अनिवार्य है।
ReplyDelete१०० प्रतिशत सच
प्रिय विजेंद्र, हार्दिक धन्यवाद
ReplyDeleteBilkul sahi hai sir ji
ReplyDeleteहार्दिक आभार
ReplyDeleteExtraordinary
ReplyDeleteThanks very very much
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