- विजय जोशी ( पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल (म. प्र.)
उल्टा नाम जपत जग जाना
वाल्मीकि भये ब्रम्ह समाना
प्रार्थना
एक अद्भुत समाधान है क्षण संकट के हों या फिर अन्यथा। दरअसल बाहरी तौर पर जब हम
ईमानदारी पूर्वक ईश्वर की आराधना करते हैं तो आंतरिक तौर पर स्वयं से साक्षात्कार, आत्मा का अवलोकन। चिंता से सर्वथा मुक्त चिंतन। निर्मल मन
से मनन। पर इसके लिये चाहिये आत्मचिंतन की चाहत। और इसमें किसी आडंबर का स्थान
नहीं फिर भले ही वह हो शब्दों का या दिखावे का। ऐसी किसी भी चीज की कोई आवश्यकता
ही नहीं। प्रार्थना जितनी सरल, सहज उतनी ही सफल।
चर्च में हर दिन एक नन्हीं
बच्ची ईश्वर के सम्मुख खड़ी हो दोनों हाथ जोड़े बंद आँखों से कुछ शब्द बुदबुदाने
के पश्चात आँखें खोलकर ईश्वर से मुस्कान सहित विदा लिया करती थी। इस क्रम को
लगातार घटित होते देख पादरी के लिये अब यह कौतूहल का विषय था कि इतनी छोटी सी
बच्ची को प्रार्थना का भावार्थ और धर्म का ज्ञान भला कैसे हो सकता है।
सो एक दिन अपनी जिज्ञासा
को शांत करने के लिये वे समय पूर्व चर्च पहुँचे तथा बच्ची के प्रवेश करते ही पूछ
लिया – मेरी बच्ची मैं तुन्हें हर दिन यहाँ आकर आँखें बंद कर कुछ कहते हुए सुनता
हूँ। भला तुम क्या करती हो ईश्वर के समक्ष।
बच्ची ने कहा – फादर मैं
प्रार्थना करती हूँ।
पादरी ने संशय से पूछा –
तुम्हें कोई प्रार्थना याद भी है
नहीं फादर – बच्ची बोली
अब तक तो पादरी जो और
उत्सुक हो चुके थे बोले – तो फिर तुम आँखें बंद करके क्या करती हो
बच्ची ने
मासूमियत के साथ कहा – फादर मुझे तो कोई प्रार्थना याद नहीं है, किंतु चूंकि वर्णमाला के ए से लेकर ज़ेड तक सब शब्द याद हैं, सो मैं उन्हें ही पाँच बार दोहराती देती हूँ और फिर ईश्वर
से कहती हूँ कि हे ईश्वर मुझे तुम्हारी कोई प्रार्थना नहीं आती, परंतु यह भी ज्ञात है कि कोई भी प्रार्थना वर्णमाला के इन
शब्दों से बाहर नहीं हो सकती, इसलिये आप उन्हें खुद ही अपनी इच्छानुसार पुनर्व्यवस्थित कर
लीजिये। यही आपसे विनती है। और यह कहते हुए वह प्रसन्नतापूर्वक कूद फांद करती हुई
चर्च से बाहर चली गई।
पादरी यह सब सुनकर हक्का
बक्का खड़े रह गए और उस दिशा में लंबे समय तक नि:शब्द ताकते रहे जिस ओर वह बच्ची
गई थी। वे इतनी छोटी सी बच्ची की इतनी गूढ़ बात को सुनकर भावुकता के सागर में प्रवाहित
हो रहे थे। उनकी आँखें भर आईं थीं।
बात बहुत सरल है। हम भी जब
प्रार्थना रत होते हैं तो क्या हमारे मन में, हमारे शब्दों में ईश्वर के प्रति वह भाव समाहित होता है जो
उस बच्ची के मन में था। ईश्वर के प्रति शर्तहीन वह भाव जो उस ऊँचाई तक पहुँच सके।
याद कीजिये सप्तर्षियों ने जब वाल्मीकि को डाकू धर्म छोड़कर ईश्वर के प्रति
आत्मसमर्पण हेतु प्रेरित करते हुए राम नाम के जप के दीक्षा दी थी तो वाल्मीकि ने
भी अज्ञानतावश अनजाने में पूरी श्रद्धा सहित राम नाम का उल्टा उच्चारण करते हुए
जाप आरंभ कर दिया था और कालांतर में अपने श्रद्धा भाव की प्रतीक स्वरूप आज तक याद
किये जाते हैं।
वाल्मीकि के जाप से मिला
एक परिणाम
श्रद्धा होनी चाहिये चाहे
गलत उच्चारो नाम
सम्पर्क: 8/ सेक्टर-2, शांति
निकेतन (चेतक सेतु के पास), भोपाल-462023,
मो। 09826042641, E-mail- v।joshi415@gmail।com
प्रेरणा दायक कहानी सर ।
ReplyDeleteसादर प्रणाम सर आपको।
प्रिय चंद्र, हार्दिक धन्यवाद. सस्नेह
Deleteसुंदर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद
Deleteप्रेम के जगत में तो शायद शब्दों को थोड़ा लेन-देन हो जाए, मगर प्रार्थना के जगत में तो शब्द बिल्कुल ही व्यर्थ हो जाते हैं।🙏
ReplyDeleteसही कहा मौन की भाषा अधिक महत्वपूर्ण एवं मुखर होती है. हार्दिक धन्यवाद
Deleteछोटी सी बच्ची अवश्य ही दिव्य अवतार होगी जो बड़े बड़ों को श्रद्धा का अर्थ इतनी आसानी से समझा दिया। आशा है आपके इस दृष्टांत से आज भी कई लोग लाभान्वित होंगे।।आपका अभिनंदन।
ReplyDeleteआदरणीय, हार्दिक आभार. काश हम बालपन की संवेदनशीलता कायम रखने का जतन हर दौर में कर पाते तो जीवन बहुत सुंदर और सार्थक हो जाता. आपकी पसंदगी मेरा मनोबल बढ़ाने का काम करती है. सो सादर साभार.
Deleteआपने बालपन की सरलता एवं सहजता अब तक अच्छी तरह से संभाल कर रखी है।
Deleteप्रेरणा दायक लेख। बच्चे मन के सच्चे होते हैं, उनकी प्रवृत्तियों में जो भाव छिपा रहता है उसे समझने के लिए जोशी सर के जैसे हुदय का होना अतिआवश्यक है... सर इतनी अच्छे लेख के लिए अभिनंदन।
ReplyDeleteप्रिय मित्र, यदि नाम भी बता देते तो धन्यवाद देने का व्यक्तिगत रूप से धर्म निभा पाता. पसंदगी के लिये हार्दिक आभार
ReplyDeleteअति सुंदर लेख एवम पूर्णतः सत्य।
ReplyDeleteसर झुकाने से नमाजे( प्रार्थना ) अदा नही होती,
दिल झुकाना पड़ता है इबादत के लिए।
प्रिय सौरभ, इबादत की इबारत समझ में आ जाये तो जीवन सफल हो जाता है। सस्नेह
Deleteसाहेब ये शिक्षाप्रद घटना है । बहुत ही सरल तरीके से वर्णन किया है आपने। unconditional prayer. Regards and unconditional love to you. सादर चरण स्पर्श साहेब
ReplyDeleteप्रिय हेमंत, प्रार्थना सच्चे मन से हो तो कभी व्यर्थ नहीं जाती। सस्नेह
Deleteआदरणीय जोशी जी को सादर अभिवादन।
ReplyDeleteलेख पढ़कर विवेकानंद द्वारा कही हुई एक कहानी याद आ गई।
कुछ पादरी लोगों को प्रार्थना और प्रार्थना की सही पद्धति सिखाने के लिए निकले । एक टापू पर केवल तीन व्यक्ति रहते थे। वे नाव द्वारा उनके पास पहुंचे। उन्हें प्रार्थना और प्रार्थना करने की सही पद्धति सिखाई और लौट पड़े। थोड़ी दूर चले होंगे कि पीछे से "फादर जरा रुकना" की आवाज आई। उन्होंने पलट कर देखा तो वे तीनों व्यक्ति पानी पर दौड़ते हुए चले आ रहे थे। उन्होंने ने आश्चर्य से इस दृश्य को देखा और रुक गए। तब तक वे तीनों उनके पास पहुच गए, और हांफते हुए बोले " फादर हम आपकी सिखाई प्रार्थना भूल गए। एक बार फिर से बात दें।" पादरी गण आश्चर्य से उनको देखते रह गए और फिर बोले "आप लोग जो प्रार्थना करते हैं वही सही है। आप उसी को ही करते रहें।"
वास्तव में यह एक तकनीकी शिक्षा है। अहंकार एक ऐसा तत्व है जिससे कोई भी प्राणी स्वयं को पहचानता है। शिशु को अपनी पहचान नहीं होती क्योंकि उसमें अहंकार का भाव अभी विकसित नहीं हुआ रहता है। आयु के साथ इस अहंकार तत्व का विकास होता है। वयस्क होने तक अहंकार पर्याप्त विकसित हो जाता है। इसका सविस्तार विवरण मनोविज्ञान में प्राप्त होता है।
एक वयस्क व्यक्ति जब अहंकार का त्याग करता है तो वह पूर्ण विकसित, आध्यात्मिक, हो जाता है। यह एक साधना है जिसका सविस्तार वर्णन योग शास्त्र में प्राप्त होता है। अहंकार मुक्त व्यक्ति उचित-अनुचित, सही-गलत, अच्छा-बुरा आदि द्वन्दों से ऊपर उठ जाता है। और इस प्रकार उसका प्रत्येक कर्म निष्काम कर्म हो जाता है जिसका वर्णन श्रीमद्भागवत गीता में प्राप्त होता है।
अहंकार का परित्याग सहज नहीं है। क्योंकि इसके साथ हमारी पहचान जुड़ी है। और हम अपनी पहचान खोना नहीं चाहते। यही सांसारिकता है। अहंकार समाप्त होने के बाद संसार समाप्त हो जाता है। जिसे आदि जगद्गुरू शंकराचार्य ने "एकोहम द्वितीयोनास्ति" सूत्र में बताया है।
आपका आलेख पढ़ कर बहुत सी बातें याद आ गई। आप धन्य है। आपकी लेखनी धन्य है।
बहुत बहुत साधुवाद।
आदरणीय गुप्ताजी,
Deleteआप तो सचमुच बहुत विद्वान हैं। यह मुझे ही नहीं साहित्य जगत में सबको ज्ञात है। पादरी का धैर्य और संवाद सचमुच बहुत श्रद्धास्पद है। एक नई बात पता चली।
धर्म कोई रूढ़िवाद नहीं है, अपितु मन की श्रद्धा का भाव जो केवल भक्ति ही नहीं बल्कि जीवन के हर क्षेत्र के लिये प्रासंगिक है। यहां अहंकार का कोई स्थान नहीं।
आप इतने मनोयोग से पढ़ते ही नहीं वरन अपनी बात भी साझा करते हैं, यह केवल प्रशंसनीय ही नहीं बल्कि अनुकरणीय है। सो सादर साभार अंतर्मन से आभार।
आदरणीय,
Deleteधर्म को लेकर इतनी भ्रांतियां फैल गई हैं कि अब क्या कहूं। श्रीमद्भागवत गीता, जो हमारी संस्कृति का प्रमुख ग्रंथ होने के साथ साथ विश्व का सर्वश्रेष्ठ सिद्धांत ग्रंथ है। इसके माध्यम से यहीं, हमारे ही देश में, कृष्ण घोषणा करते हैं " सर्व धर्मान परित्यज्य, मामेकं शरणम व्रज। अहम त्वां सर्व पापेभ्य मोक्षयिष्यामि मा सूच।" लेकिन हमें इससे कोई लेना देना ही नहीं। हमें तो आडम्बर पसन्द हैं। क्या कहा जाय।
जो भी हो सुप्त चेतना को जगाने को जो सार्थक और सकारात्मक प्रयास आप कर रहे हैं। देख कर मन प्रफुल्लित हो जाता है। और विचार व्यक्त करने से स्वयं को रोक नहीं पाता।
वाचालता के लिये क्षमा पार्थी हूं।
ईश्वर केवल आपकी मन की गति और श्रद्धा के अनुसार ही फल देते हैं। मन चंगा तो कठौती में गंगा बाली कबीर दास जी की कहावत चरितार्थ होती है।
ReplyDeleteमन का ईश्वर से मेल ही तो सर्वोपरि है। हार्दिक धन्यवाद
Deleteबहुत ही अच्छी सी सीख ईश्वर सिर्फ श्रद्धा देखते हैं श्रद्धालु उनको जैसे भी याद करें उनकी इच्छा पूरी होती है
ReplyDeleteप्रिय भाई किशोर, महत्व तो भाव का है, रूढ़िवाद का नहीं। हार्दिक आभार
Deleteबहूत सुंदर और गहरा चिन्ता।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय। साभार
ReplyDeleteश्रद्धा सर्वोपरि है
ReplyDeleteबात तो बिल्कुल सर्वोपरि है। सादर
Deleteअद्भुत उदाहरण सर👌
ReplyDeleteनिश्छल मन, श्रद्धा व प्रेम का अनुपम उदाहरण। ईश्वर इसी भाव को तो चाहता है, सोने के आभूषण व छप्पन भोग उस तक भले न पहुंचे, ये प्रेमाभाव आवश्यक रूप से पहुंचेगा। बधाई सर 💐💐
सादर अभिवादन सहित-
रजनीकांत चौबे
ईश्वर और क्या चाहे, पर यहां भी तो इंसान बेईमानी कर जाता है उससे जिसने बनाया. सस्नेह
Deleteमन से भावपूर्ण की गयी प्रार्थना ईश्वर के चरणों तक ही नही हृदय तक अवश्य पहुँचती है।
ReplyDeleteसुनीता यादव
बिल्कुल सही कहा. हार्दिक धन्यवाद
DeleteVery good article and explains in simple way about prayer and it's significance
ReplyDeletePrayer is a bridge between us and God. Thanks very much
DeleteVery nice article. Profound message in simple words.
ReplyDeleteSo nice of you. Thanks very much
Deleteबहुत ही सुंदर सीख बच्चे ने बड़ी मासूमियत से अपनी भावना व्यक्त की है काश हम सब भी इतने सरल व सहज बन सके
ReplyDeleteहार्दिक आभार भाई किशोर।
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