कमला निखुर्पा
1
मैं
तो ये चाहूँ
बूँद
बन बरसूं
मोती
न बनूँ
पपीहा कोई पुकारे
प्यास
मैं बुझा पाऊँ।
2
चाहत
मेरी
कस्तूरी
सुगंध सी
छुप
के रहूँ
महकाऊँ
जो यादें
खोजें
जग हिरन
।
3
पावन तुम
वैदिक
ऋचाओं सी
जीवन
यज्ञ
समिधा
बन जली
पूर्णाहुति
दे चली ।
4.
लो
आई हवा
लेके
तेरा संदेशा
रोये
जो तुम
भीगा
मेरा आँचल
गुमसुम
मौसम ।
पावन तुम
ReplyDeleteवैदिक ऋचाओं सी
सभी ताँका बहुत सुंदर हैं। बधाई
बून्द बन बरसूं
ReplyDeleteमोती न बनूँ
कितनी सुंदर चाहत ! पावन भाव लिए सभी ताँका बहुत सुंदर। बधाई रत्ना जी 💐