जीवन में आगमन से पूर्व एवं पश्चात दो आयाम ऐसे हैं जो आदमी के जीवन की दशा और दिशा दोनों निर्धारित करते हैं। इनमें से पहला है विरासत जिसे आप संस्कार या मूल्यों की थाती कह सकते हैं तथा दूसरा है आपकी मानसिकता जो आपके आचरण का आधार है। पहला ईश्वर प्रदत्त है जबकि दूसरा आपके अपने हाथ में है और इसका आपकी पद, प्रतिष्ठा, पैसे से कोई लेना देना नहीं। यह आवरण के अंदर अंतस की खोज का सफरनामा है। इसके साकार स्वरूप को स्वीकार कर संस्था हितार्थ उपयोग का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत होता है टाटा समूह के सोच में जो इस प्रकार है :
26/11 को ताज होटल में घटित आतंकी हमले के दौरान कर्मचारियों ने कर्तव्य का जो उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया उसकी सराहना हावर्ड विश्वविद्यालय तक में एक केस स्टडी रूप में समाहित की गई यह जानने के लिए कि क्यों टाटा कर्मचारियों ने डरकर भाग जाने के बजाय कार्यस्थल पर ही रहकर अतिथियों की रक्षा करने के लिये अपनी जान तक की बाजी लगा दी। उन्हें सुरक्षित बाहर निकालने के जोखिमयुक्त काम को बखूबी अंजाम दिया। यह वह पहेली थी जिसे मनोवैज्ञानिक तक समझ पाने में असफल थे। और अंतत: जो निष्कर्ष निकले वे इस प्रकार थे।
- ताज
समूह ने बड़े शहरों से अपने कर्मचारी चुनने के बजाय उन छोटे- छोटे शहरों पर ध्यान
केन्द्रित किया जहाँ पर पारंपरिक संस्कृति आज भी दृढ़तापूर्वज सहेजी गई है।
- भर्ती
के पश्चात उन्होंने नवागत नौजवान कर्मचारियों को यह पाठ पढ़ाया कि कंपनी के मात्र
कर्मचारी बनाने के बजाय वे कंपनी के सामने अपने अतिथियों के सांकृतिक राजदूत, शुभचिंतक तथा हितचिंतक बनाकर पेश हों।
और इस
तरह मूल्य परक प्रशिक्षण का ही प्रभाव यह रहा कि टाटा समूह आज सारे संसार के सामने
एक मिसाल बनाकर खड़ा है जहाँ होटलिंग एक प्रोफेशन या व्यवसाय न होकर एक मिशन अर्थात
विचार के पर्याय की भांति स्थापित है। यह सोच पूरे संसार के सामने पर्यटन उद्योग
के लिये सीखकर अनुपालन के लिए अब तक का सबसे बड़ा उदाहरण है।
सम्पर्क: 8/ सेक्टर-2, शांति
निकेतन (चेतक सेतु के पास), भोपाल-462023, मो. 09826042641, E-mail- v.joshi415@gmail.com
आदरणीय विजय जी, एक बहुत अच्छा लेख। जीवन के मूल्यवान आदर्शों एवं सुसंस्कृति से अवगत कराने के लिए सहृदय धन्यवाद।
ReplyDeleteभाई विनय, आप विद्वान तथा मर्मज्ञ पाठक होने के साथ ही साथ मेरे हितचिंतक भी हैं. सो हार्दिक धन्यवाद सहित. सस्नेह
ReplyDeleteप्रणाम, आशीर्वाद सदा बना रहे।
Deleteकिसी भी व्यक्ति द्वारा संस्कार और मानव मूल्य सिर्फ किताबी ज्ञान से ही अर्जित नहीं हो सकते हैं. पारिवारिक वातावरण महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. टाटा समूह बेहतर तरीके से जानता है कि छोटे-छोटे शहरों और गांव से निकले हुए विद्यार्थी सांस्कृतिक और जीवन मूल्यों के प्रति ज्यादा समर्पित होंते हैं. टाटा संस्कृति को समर्पित एक बेहतरीन लेख. आदरणीय जोशी सर आप अपनी लेखनी से इसी तरह हम पाठकों का मार्गदर्शन करते रहें.
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपके मनोबल वृद्धि योगदान के लिये. वैसे नाम का उल्लेख कर सकें तो मुझे हार्दिक प्रसन्नता होगी. यह तो बिखरे मोती चुन पाने का विनम्र प्रयास है. सादर
Deleteआदरणीय विजय जोशी साहेब हमेशा की तरह ये लिख भी अति महत्वपूर्ण विषय पर केंद्रित है। टाटा समूह आज देश का अग्रणी ही नही अपितु संस्कृति और संस्कारों से पहचाना जाता है। धन्यवाद जोशी साहेब आप के लेखन के ऊपर कुछ भी लिखना ये अतिश्योक्ति होगी। सप्रेम सादर प्रणाम व चरण स्पर्श साहेब। Sir you are and shall always be an inspiration to me and for many who are connected to you. Regards& love to my father figure friend.
ReplyDeleteहेमंत भाई, आपकी खूबी ही है जो साधारण को असाधारण बनाने की शक्ति रखती है. आप मेरे हमसफर हमराही हैं. यही स्नेह बना रहे. हार्दिक धन्यवाद. सादर
Deleteआपके लेखों में महान सीखें समाहित होती हैं। कृपया ऐसे ही हमारे मार्गदर्शक बने रहें 🙏🙏
ReplyDeleteप्रिय भाई निशीथ, सीख तो सुधी पाठक की नज़रों में समाहित होती है जो आप में भरपूर है. इसी तरह जुड़े रहे तो यात्रा की पतवार थामे रहूंगा. हार्दिक धन्यवाद. सादर
ReplyDeleteआपका बड़प्पन है जो हम जैसे साधारण पाठकों को सराहते हैं 🙏
Deleteभाई निशीथ, आपके सम्मान में समर्पित :
Delete- जो आपसे झुक कर मिला होगा
- उसका कद आपसे ऊंचा रहा होगा
आपका कद तो आदमकद हैं. मिसाल हैं. सादर
आदरणीय जोशी जी,
ReplyDeleteभारतीय संस्कृति एवं मूल्य परंपरा को रेखांकित करते हुए इस आलेख, जो कि एक सत्य घटना पर आधारित है, के लिए आपको सादर प्रणाम निवेदित करता हूं। भारतीय संस्कृति एवं मूल्य परंपरा पर लिखने वाले विरल हैं। आप उस दायित्व का निर्वहन अत्यंत सजगता से कर रहे हैं। साधुवाद।
"अतिथिदेवो भव" हमारी वैदिक काल से चली आ रही परम्परा है। मध्यकाल में इसमें भारी गिरावट आई जिसका कारण आर्थिक और राजनीतिक रहा। आधुनिक काल में भौतिकता वाद इसके ह्रास का एक प्रमुख कारण है। ऐसे में जो भी संस्थान अथवा समूह इसे सम्हाल रहे हैं, निश्चय ही वे सराहना के पात्र हैं। परंतु, सबसे दुखद अवस्था साहित्य और साहित्यकारों का है। मार्क्सवादी विचारधारा और प्रगतिशील साहित्य के दुराग्रह ने भारतीय मूल्य परंपरा को रुढ़िवादी और कट्टरपंथी घोषित कर उससे किनारा कर लिया।
इतिहास लेखन में भी यही स्थिति है। कुल मिलाकर स्थिति प्रतिकूल है। ऐसे में यह आलेख एक ताजी हवा का झोंका है।
एक बार पुनः आपको बहुत बहुत साधुवाद।
आदरणीय गुप्ता जी, बिल्कुल सत्य. लेकिन जो बात हमारे संस्कार संस्कृति में है उसका अनुपालन हमसे कई गुना अधिक तो पारसी समुदाय कर रहा है. विडंबना है. काश हम कुछ सीख ले सकें.
Deleteआप तो स्वयं बहुत विद्वान हैं. धन्यवाद छोटा शब्द होगा. एहसास संभवतया व्यक्त कर सके आभार. सो सादर साभार अंतर्मन से आपका आभार.
सर, विडम्बना तो है। और बहुत बड़ी बिडम्बना है। लेकिन हमें इसका सामना धैर्य और साहस के साथ करना होगा। हमारी संस्कृति नष्ट नहीं हुई है मात्र विकृति आयी है। हम पारसी या ऐसे अन्य समुदायों के आभारी हैं जिनका उदाहरण प्रस्तुत करके हम अपनी बात शक्तिशाली ढंग से रख सकते हैं। और यही काम आपने किया है। आगे भी करते रहना है। और हो सके तो इस विचारधारा के अन्य साहित्यिक बंधुओं की सहायता भी लेनी है। मैं इस अभियान में आपके साथ हूं।
Deleteसादर
प्रेम
आदरणीय, आपका स्नेह ही मेरी शक्ति है. सो हार्दिक आभार सहित सादर
Deleteरतन टाटा अपने आप में संस्कारों का इंस्टिट्यूशन है। उनका कर्मचारियों को भर्ती करने का यह नायाब तरीका दूसरे लोग भी सीखें तो शायद एक बेहतर माहौल बनेगा जिसका आनंद सभी ले सकेंगे। सुंदर लेखन के लिए बधाई।
ReplyDeleteश्री विजय जोशी जी, इसमें कोई शक नहीं की टाटा जी एक असाधारण व्यक्तिव के मालिक हैं। उनके कर्तव्यपरायणता, मानवता और आदर्शों के पाठ ने, जो उन्हों ने हम सब को दिए, उस होटल कांड में न जाने कितने प्राणों को बचाया। उनके राष्ट्र निर्माण में भी सराहनीय कार्यों को हम नहीं भुला सकते।
ReplyDeleteआप का बहुत बहुत धन्यवाद
बिल्कुल सही कहा आपने. आदर्श हैं. अनुकरणीयहैं के. अपने नाम का उल्लेख कर सकें तो मुझे हार्दिक प्रसन्नता होगी. यह तो बिखरे मोती चुन पाने का विनम्र प्रयास है. सादर
Deleteअति सुंदर लेख।टाटा समूह हर क्षेत्र में अपना अमूल्य योगदान प्रदान कर रही है।के संस्थाएं अपना ध्यान केवल टॉपर्स पर केंद्रित करती है वहीँ टाटा समूह संस्कारो को एहमियत देती है।भारत के अनमोल रतन"रतन टाटा जी" को कोटि कोटि नमन।हमेशा की तरह,प्रेरणादायी लेख।जय हो।
ReplyDeleteआदरणीय जनार्दनजी, बिल्कुल सही कहा आपने. अद्भुत है.पारसी समुदाय. देशभक्ति व ईमानदारी का पर्याय. हार्दिक आभार सहित. सादर
ReplyDeleteअनिल भाई, बहुत मनोयोग से पढ़कर उत्साह बढ़ाते हैं. सो हार्दिक धन्यवाद सहित.सादर
ReplyDeleteसंस्कार व संस्कृति एक दिन में न आ सकते हैं, न ही खरीदे जा सकते हैं। न ही आप इनका लम्बे समय तक ढोंग कर सकते हैं। पारिवारिक माहौल, शिक्षा एवं परिवेश से ये गुण व्यक्ति में आते हैं। टाटा समूह ने अच्छी सीख दी, उन्होंने परख करने का अद्वितीय तरीका अपनाया। भारतीय संस्कृति को व भारत को सरवोपरि रखते हैं ये। आपने उदाहरण सहित बहुत बारीकी व सरलता से हम सबको यह समझाया। इस लेख के लिए बधाई एवं धन्यवाद आदरणीय सर☺️
ReplyDelete--
रजनीकांत चौबे
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Deleteप्रिय रजनी, संस्कार की थाती के साथ ही तो हमारा आगमन होता है जिसे सहेज संवार कर आगत पीढ़ी को सौंपना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है. इसके अभाव में सब शून्य है. टाटा की सीख सर्वोपरि है. सस्नेह
Deleteशानदार सर जी ।
ReplyDeleteसादर प्रणाम
प्रिय चंद्र, जय हो. सस्नेह
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा सर आपने।
ReplyDeleteपुरुषोत्तम तिवारी साहित्यार्थी
ReplyDeleteसर, संस्कार युक्त वैभव से विभूति अर्थात् महान व्यक्तित्व का निर्माण होता है. भूत के विरासत को हम अपने अच्छी मानसिकता से बदल कर अपना वर्तमान गौरवशाली और स्तुत्य बना सकते हैं. टाटा समूह में कार्य संस्कृति दूसरे कारपोरेट घरानों से अलग है, जो कि प्रशंसनीय है. बहुत सुन्दर लेख, हार्दिक बधाई.
तिवारी जी, अद्भुत हैं आप. सदा पढ़ते हैं और जुड़े रहते हैं. विरासत से ही संवरता है वर्तमान. हार्दिक धन्यवाद सादर
Deleteभारतीय संस्कारों का समावेश टाटा समूह में है। और हमेशा से भारत को इनसे मदद मिलती रही है। रतन टाटा जी की देशभक्ति व कर्मठता को प्रणाम, एक सार्थक लेख हेतु आपका बहुत बहुत साधुवाद आदरणीय जोशी जी।।
ReplyDeleteसुनीता यादव भोपाल
सही कहा आपने. ऐसे व्यक्तित्व ही हमारे आदर्श हैं, भले ही हम चलें या न चलें. संस्कार का संसार हैं ये. हार्दिक धन्यवाद
Deleteसंस्कारों का संवहन भी आवश्यक है,जो आपके करकमलों द्वारा हो रहा है, हृदय से आभार आदरणीय जोशी जी
DeleteI really respect Tata Group in every aspect. It comes forward and serve the country whenever required.
ReplyDeleteGreat sir
Thank you for elaborating these important facts. I see this article as a tribute to Tata Group.
Dear Vijendra, so nice of You. Hope You are doing fine on software development front. Thanks
Deleteभारतीय संस्कृति में बड़ों का सम्मान अच्छे आचरण का एक अहं हिस्सा माना गया है। टाटा ने इसे महत्व दे कर अपने स्वयं के संस्कार का परिचय दिया है। सेवा उद्योग में इसका बहुत महत्व है। आपने इस पक्ष को उजागर कर समाज में जागृति पैदा करने का सराहनीय प्रयास किया है। साधुवाद!
ReplyDeleteआदरणीय, पारसी तो हैं ही पारस से. पूरी तरह ईमानदार, देशभक्त और सिद्धांतों के समर्पित. काश हम कुछ सीख सकें समुदाय से. हार्दिक आभार सहित सादर
DeleteBahut badiya sir ji
ReplyDeleteBilkul sahi tata ne hsmesha desh ka man rakha hai
Aur aage bhi rakhega
मित्र, हार्दिक आभार सहित सादर
ReplyDeleteRatan tata quote ")सौ साल बाद, मैं टाटा ग्रुप को जितना वो अब है उससे कहीं बड़ा देखना चाहता हूँ। इससे भी ज़रूरी बात, मैं आशा करता हूँ कि ग्रुप को भारत में बेस्ट माना जाए.. जिस तरीके से हम ऑपरेट करते हैं उसमे बेस्ट, जो प्रोडक्ट्स हम देते हैं उसमे बेस्ट, और हमारे वैल्यू सिस्टम्स और एथिक्स में बेस्ट। इतना कहने के बाद, मैं आशा करता हूँ कि सौ साल बाद हम अपने पंख भारत से कहीं दूर तक फैला पायेंगे।" One of the best u have covered
ReplyDeleteभाई अमूल्य, टाटा की तो बात ही अद्भुत है. ये हमारे रोल मॉडल होते तो कब के भाग्य संवर जाते हमारे. अफसोस हमने नाकारा लोगों को चुना नुमाइंदगी के लिये
Delete- जिन्हें हम चुनते हैं
- वो कहां हमारी सुनते हैं
हार्दिक धन्यवाद. सस्नेह
टाटा संस्कृति महान है समय समय पर रतन टाटाजी ने देश के लिए अनुकरणीय योगदान दिया है, अपने कर्मचारियों को चुनने में वह भारतीय संस्कृति को कितना महत्व देते हैं यह आपके सार्थक लेख से स्पष्ट है इसलिए टाटा संस्थान उत्कृष्ट देशभक्ति और संस्कारो की महान प्रेरणादाई मिसाल प्रस्तुत करते हैं। एक आदर्श महान भारतीय की महानता को रेखांकित करते हुए एक बार फिर से आपने अत्यंत प्रेरणादायक और सुंदर लेख प्रस्तुत किया है। सादर अभिवादन।
ReplyDeleteमधु बेन, टाटा व्यावसायिक संगठन नहीं बल्कि परिवार स्वरूप है. यही इसकी सफलता का राज़ है. पढ़ने के बाद मिली प्रतिक्रियाएं मेरे दिये में लौ बनाये रखने का प्रयोजन सदृश्य हैं सो हार्दिक धन्यवाद. सस्नेह
ReplyDeleteसंस्कृति और संस्कार की बुनियाद पर जिस संस्था की पहचान है,जो कॅरोना काल के विपरीत परिस्थितियों में भी अपने कर्मचारियों में उत्साह और जीवंतता बनाये रखे,जीवन मूल्यों को कमजोर नहीं होने दिया ,ऐसे टाटा समूह पर ऐसा उत्तम आलेख लिखकर आपने टाटा समूह के सम्मान में चार चांद लगा दिए हैं।इस प्रकार के प्रेरणादायी आलेख मार्गदर्शक होते हैं।कर्म के संस्कार से संस्कारित आप सदैव ऐसे ही शानदार और सारगर्भित आलेख से पाठकों को लाभान्वित करते रहिए हार्दिक आभार।सादर प्रणाम, जय हो।💐💐💐💐💐💐
ReplyDeleteप्रियवर, आपकी ऐसी सुविचारित वाणी ही मेरा संबल है सदा से। आपने नाम का उल्लेख नहीं किया, सो उसे जानने की उत्सुकता अवश्य है। बहरहाल हार्दिक आभार सहित। सादर
Deleteटाटा संस्कृति को समर्पित एक बढ़िया आलेख।
ReplyDeleteआपको उदंती की शुभ एवं हित चिंतक सुधी पाठक होने का गौरव प्राप्त है। हार्दिक आभार। सादर
DeleteVery nice story
DeleteSo nice of you Madam for inspiring me. Kind regards
Deleteबहुत सुंदर कहानी सर टाटा समूह को आपकी तरफ से उन के द्वारा किए गये कार्यों का आकलन कर बेहतरीन तोहफा
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