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Aug 1, 2021

लघुकथा- आसमान

  - हरभगवान चावला

     गाँव की ग़रीबी से भागकर वह लड़का शहर के एक ढाबे में काम करने लगा था। खाना परोसते, बर्तन धोते रात के ग्यारह-बारह बज जाते। ढाबे के साथ जुड़ा एक कमरा था। उसी कमरे में वह और उसका लंगड़ा मालिक सो जाते। एक रात मालिक की नींद खुली तो उसने देखा कि लड़का कमरे में नहीं था। कहाँ चला गया लड़का- उसने सोचा। वह उसे देखने बाहर निकला। लड़का आसपास दिखाई नहीं दिया। ज़्यादा दूर वह जा नहीं पाया। कमरे में वापस आकर वह रोने लगा। दरअसल वह उस पर इतना आश्रित हो गया था कि अब उसके बिना रह पाना उसे बहुत मुश्किल लगता था। बाक़ी बची रात में वह सो नहीं पाया। बस बिसूरता रहा और लड़के की सलामती की दुआ करता रहा। सूरज अभी निकला नहीं था कि लड़का लौट आया। मालिक के भीतर ख़ुशी और क्रोध एक साथ उमड़े। उसने उसका कुर्ता पकड़ कर झिंझोड़ दिया, ‘कहाँ चला गया था तू इस लंगड़े को छोड़कर? क्या कसूर किया मैंने?’

          ‘मैं आपको छोड़कर भला कहाँ जाऊँगा?’

          ‘फिर क्या कर रहा था रात भर?’

          ‘आसमान देख रहा था।

          ‘क्या?’

          ‘वाह क्या चाँदनी थी! मुझे नहीं मालूम था कि ये पूरे चाँद की रात है। दो साल से मैंने आसमान ही नहीं देखा था। लड़का अपने काम में लग गया था और मालिक उज़बक की तरह उसे देखता जा रहा था।

5 comments:

  1. अच्छी लघुकथा

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  2. बेहतरीन। कभी कभी कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कहती है लघुकथा। बधाई चावला जी।

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  3. वाह,बहुत सुंदर लघुकथा।मालिक,मालिक होने के बाद भी गुलाम है,वह लड़के पर आश्रित है लड़का नौकर होकर भी निर्द्वन्द्व है।बधाई हरभगवान चावला जी।

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  4. बहुत सुंदर।

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  5. बढ़िया लघुकथा

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