(पूर्व ग्रुप
महाप्रबंधक, भेल , भोपाल)
शास्त्रों के अनुसार धर्म की परिभाषा है- धारयति इति धर्मं अर्थात् जीवन में जो भी धारण करने योग्य है वही धर्म है। हम सब ने बाल्यकाल से
यही तो सुना है कि सत्यं वद यानी सदा सच बोलना, प्राणिमात्र पर दया करना, किसी को धोखा न देना
इत्यादि इत्यादि हमारा धर्म है। लेकिन धर्म रूपी इस साफ्टवेयर का परित्याग कर
लोगों ने उसे हार्डवेयर अर्थात अनुष्ठानों, परपम्पराओं व
संकीर्ण सोच के दायरे में सिमटा दिया। वस्तुत: धर्म तो एक जीवन संहिता है। सुचारु,
स्वस्थ तथा सामयिक जीवन जीने की यात्रा का अचूक मंत्र। यह तो हुई
एक बात।
दूसरी यह कि
धर्म कोई भी हो सब में संदेश एक ही है। सार्थक परहितकारी जीवन जीते हुए अंतत:
परमात्मा से मिलन, जो एक है और परम पिता कहलाता है। याद रखिए ईश्वर एक और केवल एक है एवं
जीवन यात्रा का अंतिम सोपान है। उपासना, पूजा, आराधना कैसी भी हो सकती है साकार, निराकार या
अन्य कुछ पर उद्देश्य एक ही है। जहाँ अन्य धर्मों में
ईश्वर की परिकल्पना हेतु सख़्त आदेश या नियमावली है,
वहीं हिन्दू धर्म में इसे लचीला रखते हुए बकलम संत डोंगरेजी जीव
की भिन्न भिन्न अभिरुचि के दृष्टिगत परमात्मा अनेक
स्वरूपों में प्रकट है, किन्तु जिस तरह हर प्रवाहमान नदी
का गंतव्य समुद्र ही है, उसी तर्ज पर इसमें भी एको ब्रह्मो द्वितीयो नास्ति का उद्घोष किया गया है।
तीसरी
बात भारतीय दर्शन में स्त्री पुरुष के सम्मिलित स्वरूप को एक इकाई माना गया है और
इस तरह प्रकृति में निरंतरता या सृजन के क्रम को सुनिश्चित किया गया है। वस्तुत:
नारी प्रथम पूज्या है, फिर भले ही वह मृत्युलोक हो या देवलोक। यही कारण
है कि ज्ञान की देवी सरस्वती तो संपत्ति और अर्जन की देवी लक्ष्मी की पूजा का प्रावधान किया गया है क्रमशः बसंत पंचमी तथा दिवाली
पर।
सो इस पवन वेला में
निवेदन है कि हम सब इस वर्ष दिवाली के अवसर पर संग्रह के भाव को परे रखते हुए उसे
समाज हित में साझा करने तथा पुण्य प्राप्ति हेतु तथा इस लोक के साथ ही
साथ परलोक सँवारने के लिए माँ लक्ष्मी को भगवान विष्णु
सहित पधारने का निमंत्रण दे,
जीवन को सार्थक बनाने का उपक्रम पूरे मनोयोग से करें।
चलते चलते : और अब अंत में एक छोटी सी बात
निर्मल मनोरंजन हेतु। एक बार लक्ष्मीजी का वाहन उनसे नाराज़ हो गया और आज्ञा लेकर बोला कि आप तो सब जगह पूजी जातीं हैं, लेकिन लोग मेरे नाम का उपहास करते हैं। मेरा मज़ाक उड़ाते हैं। बात सही
थी, सो लक्ष्मी को जमी भी और उन्होंने तुरंत वरदान दिया
कि आज के बाद तुम्हारी पूजा सर्वप्रथम होगी तथा उसके बाद ही मैं पूजा स्वीकार करूँगी। मित्रों हम सबने देखा है कि दीपावली त्योहार
हमेशा करवा चौथ के बाद ही आता है। है न मजेदार। यह बात समझ में तो आ ही
गई होगी।
यह
तो हुई एक हल्की- फुल्की बात, किन्तु इसमें भी समाई है एक सीख समस्त पति समुदाय के लिए। यह सर्वविदित तथ्य है कि हिन्दू दर्शन में स्त्री को गृह लक्ष्मी का
दर्ज़ा दिया गया है, जो परिवार
में माँ, पत्नी, बहन, बेटी सहित अनेक रूपों में सबकी सेवा सदैव पूरे समर्पण से कामनारहित
होकर करती है। अत: इसके परिप्रेक्ष्य में पूरे स्नेह, दुलार
और सम्मान की अधिकारी है। और
हम सबका कर्तव्य है उसके मान सम्मान की गरिमा को कायम रखने का, उसमें निरंतर
अभिवृद्धि का कृतज्ञता के भाव के साथ। भला कहिये भारत छोड़ पूरे संसार में और कहाँ स्त्री स्वरूपा मातृ रुपेण, शक्ति रूपेण माँ दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों में आराधना, वर्ष में दो बार नौ दिनों तक
वर्षों से निरंतर पूरी श्रद्धा एवं समर्पण के साथ की जाती रही है।
जग के मरुथल में जीवन की,
नारी ज्वलंत अभिलाषा है।
ममता की त्याग तपस्या की,
यह श्रद्धा की परिभाषा है।
सम्पर्क: 8/ सेक्टर-2, शांति निकेतन (चेतक सेतु के पास), भोपाल-462023, मो. 09826042641, E-mail- v.joshi415@gmail.com
उपयोगी एवं रोचक आलेख
ReplyDeleteमाननीय सुदर्शनजी, हार्दिक आभार।
Deleteजोशी जी
ReplyDeleteसाधुवाद।
ऐक स्पष्ट लेख. व उत्साःह वर्धक ।
अनुकरणीय जी
.......विनोद.शुक्ल
ट
जोशी जी
ReplyDeleteसाधुवाद।
ऐक स्पष्ट लेख. व उत्साःह वर्धक ।
अनुकरणीय जी
.......विनोद.शुक्ल
ट
विनोद भाई, जय हो. निर्मल निःस्वार्थ प्रयास कभी व्यर्थ नहीं जाते देख लिया ना. आपका योगदान अमर रहेगा यहां सदा के लिये.लखनऊ की फिज़ां कैसी है इन दिनों. हार्दिक धन्यवाद
DeleteLucknow is sweet and vibrant and a place full of action and initiative.
ReplyDeleteDiwali kee Rounak gazab.
We are happy bhai jee
विनोद भाई, आपका स्नेह अद्भुत है। सादर
Deleteयत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः इसे चरितार्थ करता हुआ लेख। जोशी जी को साधुवाद।
ReplyDeleteनिशिकान्त जी, आप वास्तव में सच्चे आभार के अधिकारी हैं, जो इतने मनोयोग से पढ़ते हैं और हर आलेख पर सदा सद्भाव दर्शाया है। इस दौर में आप जैसे पाठक अत्यल्प हैं।
Deleteयह लेख नारी जगत को समर्पित है। हार्दिक आभार। सादर
अद्भुत आलेख
ReplyDeleteभारतीय जीवन दर्शन में धर्म की जीवन संहिता के समावेश की सुंदर व्याख्या
हार्दिक अभिनन्दन
मधुलिका शर्मा
बहन मधु, पुरुष केवल एक इकाई है, जबकि नारी परिवार को समर्पित एक संस्था और उन्हींको समर्पित विचार है यह आलेख। मेरा मनोबल बनाये रखने के लिए सादर साधुवाद।
Deleteसुंदर लेख। हमारी भारतीय संस्कृति का निचोड़ है यह। और संभवत यही कारण है कि हम भारतीय अत्यंत ही शांतिप्रिय एवं पसंद लोगों में आते हैं।
ReplyDeleteआ. जनार्दनजी, अनेक संस्थाओं के प्रमुख का जनार्दन स्वरूप कर्तव्य निभाते हुए आप कोरोना काल में अनेकों की सहायता के साधक रहे हैं। यथा नाम तथा गुण। सो सादर धन्यवाद
Deleteबहुत सुंदर सूचनाप्रद और प्रेरक आलेख है।
ReplyDeleteआपको और परिजनों को हमारी हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
माननीय, हार्दिक धन्यवाद। वैसे स्वयं का नाम भी साझा किया होता तो बहुत प्रसन्नता होती। सो कृपया अब साझा करने का कष्ट करें। सादर
Deleteदीपोत्सव प्रकाश पर्व पर लक्ष्मी पूजन से संदर्भित महत्वपूर्ण जानकारी, यह भी कि, भारतीय संस्कृति में कोई भी पूजा अनुष्ठान एक साथ पति-पत्नी के सफल नहीं माना जाता, इसके समर्थन में श्रीराम की रामेश्वर पूजा के समय माँ सीता का प्रतीकात्मक स्वरूप का दृष्टांत स्मरणीय है।
ReplyDeleteधनतेरस एवं दीप पर्व की आपको सपरिवार बधाई
आदरणीय अग्रज, प्रणाम
भाई सुरेश, बहुत ही सुन्दर व्याख्या विष्णु लक्ष्मी की सामूहिक पूजन के सन्दर्भ में। यही तो धर्म की भावना है। आशा है सकुशल होंगे जबलपुर में। भोपाल प्रवास की सुचना अवश्य दें। हार्दिक धन्यवाद
Deleteआदरणीय भाई साहब,
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक लेखनशैली और ज्ञान से ओतप्रोत व्याख्यान पर आपको साधुवाद, भगवान से प्रार्थना करता हूँ आप ऐसे ही हमारा ज्ञान हमेशा बढ़ाते रहे, आपका आशीर्वाद और स्नेह हमेशा हम सभी पर बना रहे, अंत मे बस इतना ही कहूंगा कि आप हमारे प्ररणा स्त्रोत हैं और आपके भाई होने पर हमें गर्व हैं। भगवान से आपकी दीर्घ आयु , स्वास्थ्य एवं मंगलकामनाओं की प्रार्थनाओ के साथ आपको अनेकानेक चरणस्पर्श एवं नमन।
प्रिय बंधु, अपनों का स्नेह जीवन में सर्वाधिक शक्ति का प्रायोजक बनता है। धन्यवाद बहुत ही छोटा शब्द है आभार के एहसास को उकेर पाने का। यही स्नेह सदा मेरा संबल बना रहे इसी कामना के साथ। सस्नेह
ReplyDeleteसर,उत्कृष्ट लेखन की हार्दिक बधाई. मैंने श्री विष्णु भगवान की आराधना किया था लेकिन माता लक्ष्मी की ही आरती का गान किया.
ReplyDeleteपुरुषोत्तम तिवारी भोपाल
ReplyDeleteमाननीय पुरुषों में उत्तम तिवारीजी, चलो आपने श्री गणेश किया इस परंपरा का. हमारा आरती क्रम है लक्ष्मी जी, फिर जय जगदीश हरे तथा समापन जय शिव ओंकारा. हार्दिक धन्यवाद. सादर
ReplyDeleteNice sir laxmi kasturba
ReplyDeleteNice sir laxmi kasturba
ReplyDeleteThanks very much Laxmi, You are a very nice girl. Ad i/c TMT Centre at kasturba hospital You are sincerely taking care of cardiac cases. So deserve the Best. Thanks again.
Deleteसादर अभिवादन।देर से विचार अभिव्यक्ति के लिए क्षमा याचना।परन्तु सत्य तो यह है कि दीपावली से लेकर आज देव उठने की ग्यारस तक ये आलेख मेरे मानस पटल पर सदैव चित्रित रहा ।माँ लक्ष्मी और भगवान विष्णु की जोड़ी संग।पुरुष और प्रकृति को अलग कर कोई पूजा भला कैसे पूर्ण एवम चिरस्थायी हो सकती है।बहुत प्रासंगिक अनुकरणीय और सारगर्भित जानकारी प्रदान करने हेतु आपको कोटिशः साधुवाद।लक्ष्मी की कामना में हम सृष्टि
ReplyDeleteके सृजनकर्ता को भूल जाते हैं ।इस बात का तो कभी ख्याल ही नहीं आया। दीपावली हो या कुछ और उत्सव जीवन जीने का यथार्थ मार्गदर्शन आपके आलेखों की पहचान है।फलदार वृक्ष की तरह सदैव सरल एवं सामाजिक परोपकार में संलग्न आपके व्यक्तित्व की छाप आपके रोचक आलेखों में दृष्टिगोचर होता है।पुनः हार्दिक आभार।नए और उत्कृष्ट आलेखों के इंतजार में-----//
माण्डवी सिंह ,भोपाल ।
आदरणीया मांडवी जी,
ReplyDeleteआप सुधि पाठक हैं। आपके ईमानदारी पूर्ण पठन का मैं आरम्भ से कायल हूं। आपके उदार ह्रदय तथा सरलता ने सदा से मुझे लेखकीय जीवन को ज्वलंत रख पाने की प्रेरणा दी है। आप खुद भी तो प्रतिष्ठित लेखिका हैं। पूरी तरह परहितकारी, अपने शिक्षक जीवन तथा पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए तमाम समय के संकट के बावजूद हम जैसों को न केवल पढ़ती हैं, बल्कि पढ़कर अपने विचार साझा करते हुए उत्साह में अभिवृद्धि भी करती हैं। यही भाव बना रहे। सादर