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Oct 5, 2020

दो कविताएँ

 -प्रीति अग्रवाल ( कनाडा)

 1. ज़िद्दी

अनजाना शहर
मंज़िलें लापता
ख़्वाहिशें जि़द्दी -
दर -दर घुमाएँ,
रास्ते भुलाएँ,
हमें हराएँ,
बड़ा थकाएँ,
अपनों की याद में
खूब रुलाएँ....।
काश! कोई आए -
हाथ बढ़ाए,
हमको समेटे,
प्यार जताए,
बिन माँगे दे माफ़ी,
मज़बूती से थामे,
हमें साथ अपने
वापस ले जाए !!!

2. मील का पत्थर

मील के पत्थर से
रहा न गया
रुआँसा था कल तक
आज रो ही पड़ा...!
-एक तू ही अकेली
है ठहरी यहाँ
बाक़ी किसी को
है  फ़ुर्सत कहाँ..!
भागे फिरते हैं पागल- से
बस भीड़ में
जाना किसको, किधर,
ये खबर है कहाँ..!
जो मेरा ही जश्न
न मनाएँगे वो
पछतावे के सिवा
कुछ न पाएँगे वो..!
मैं तो थक गया
तू ही समझा जऱा-
हर लम्हा है मंजि़ल
अरे नासमझ,
ये न लौटेगा फिर
इसे ज़ाया न कर।

10 comments:

  1. मनुष्य के स्वप्न,उसकी महत्त्वाकांक्षाएँ उसे स्वजनों से दूर ले जाती हैं,एक अंधी दौड़ में भागता हुआ मनुष्य जब थकता है तब उसकी भावाकुलता उसे व्यथित करती है,उसे स्वजनों की स्मृतियाँ व्यथित करती हैं,इसी भाव को प्रीति अग्रवाल ने बहुत सहज रूप में दोनो कविताओं में व्यक्त किया है।जिद्दी में जहाँ व्यथा है,मील का पत्थर में एक सकारात्मक संदेश है कि हर क्षण भागभाग करने वाले को अंत मे पश्चाताप ही मिलता है।सार्थक कविताओं हेतु बधाई प्रीति जी।

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    1. आदरणीय आपने अपना बहुमूल्य समय लगाकर इतनी सुंदर और विस्तृत टिप्पणी दी, आपको हार्दिक नमन एवम आभार!!

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    2. सुंदर कविता

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    3. अपराजिता जी आपकी सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद!

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  2. Replies
    1. जी आपका हृदय तल से आभार!!

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  3. प्रीति आपकी दोनों ही कवितायें प्रवास की व्यथा का वर्णन करती हैं सुन्दर भाव | हार्दिक बधाई |

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    1. सविता जी आपका स्नेह सदा ही सुखमय, हार्दिक धन्यवाद!!

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  4. यायावरी अंतस की सुंदर बानगी

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    1. आपके प्रोत्सान भरे सुंदर शब्दों के लिए आभार आदरणीय जोशी जी!

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