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Sep 15, 2019

रच ली मैंने फिर नई कविता ( शिक्षक दिवस पर )

चित्रः प्रीति अग्रवाल
रच ली मैंने फिर नई कविता 

-कमला निखुर्पा


हाथों में थमा

सृजन की लेखनी

नेह सियाही 

भर यूँ छिटकाई


उठी लहर 

भीगा-भीगा अंतर

तिरते शब्द

उड़े क्षितिज तक 


मिलन हुआ

धरा से गगन का

रच ली मैंने

फिर नई कविता


निकल पड़ी

अनजानी राह पे

मिलते रहे

पथ में  साथी संगी


कोई हठीली

अलबेली सहेली

हवा वासंती 

बदरी सावन की


टप्प से गिरे

सिहरा के डराए

भिगो के माने

रिमझिम की झड़ी 


राह में मिली 

नटकेली कोयल 

छिप के छेड़े

कूक हूक जगाए


बागों में मिली

तितली महारानी

फूलों का हार

पाकर इतराई 


गुंजार करे 

भाट भँवर -टोली

सृजन राह

अनुपम पहेली


नई -सी भोर

निशा नई नवेली 

नवल रवि

चंद्रिका-सी सहेली


मुड़के देखूँ

दूर क्षितिज पार 

तुम्हें ही पाऊँ

गहन गुरु–वाणी


थामे कलम

नेह भर सियाही

बूँदे छिटकी

सुधियों की सरिता 

उमगी बह आई।

प्राचार्या केन्द्रीय विद्यालय, पिथौरागढ़- उत्तराखण्ड

1 comment:

  1. अत्यंत सुंदर कमलाजी, कितनी बार पढ़ ली, पर जी है कि भर ही नहीं रहा! सही कहा आपने "सृजन राह,अनुपम पहेली..."

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