उदंती.com

May 22, 2013

बरगद की छाँव

बरगद की छाँव
- विजय अरोड़ा
1
हमने अगवा कर लिए उनकी आँखों के सपने
और अब खुद नींद को तरसते हैं।
2
जीवन की कमीज़ में इतनी सलवटें हैं
की रिश्तों की गरम प्रेस भी इन्हें
नहीं निकाल पाती
क्योंकि
प्रेस में एहसास का कोयला
अभी भी ठंडा है
अगर
कुछ चिंगारियाँ निकलें गर्माहट की
तो उम्मींद बन सकती है।
3
मैं जीवन से
जीवन मुझसे
अठखेलियाँ करता रहा।
हम खूब लुका छुपी का खेल खेले।
मैं जब जब छुपता रहा अपनी धरातल की सच्चाइयों से
तब-तब जिंदगी मुझे पीठ पर
ठप्पा कर के चली गई
और
मैं हार गया।
4
हम रिश्ते बनाते हैं
घरौंदों की तरह
और
जब कोई घर कर जाता है
तो बेघर कर देते हैं
औंधों की तरह।
5
मैं
तब संबंधों की रेत पर भरभरा कर गिर पड़ता हूँ
जब मेरे हाथ से विश्वास का डंडा छूट जाता है।
6
शब्द थरथराते हैं
आत्मविश्वास के पुल पर
जबकि
वाक्यों की गाडिय़ाँ आराम से गुज़र जाती हैं।
7
बूढ़े बरगद की छाँव तले हम खूब बैठे सुस्ताये
खुशियाँ बाँटी, ग़म साझा किये, खूब हँसे और हँसाए
ठंडी हवाओं के झोकों ने सहलाया दुलारा
नदियाँ जब-जब करती कल-कल हमने भी ठहाके लगाये
सर्दियाँ बीतीं, पतझर आया
उड़ गए पंछी, अपने घरौंदे कहीं और बनाये
बूढ़ा बरगद ताकता रहा
कई मुसाफिर आये, सुस्ताये पर न ठहरे, न ठहराये
कहाँ जाए बूढ़ा बरगद छोड़ के अपनी काया
न अब फूल आते न पत्तियाँ
ठूंठ बन कर रह गया है
न दाना न पानी, काश
कोई सुनता बूढ़े बरगद की कहानी।
--------
लेखक अपने बारे में: मैं, विजय अरोड़ा ये नहीं की किसी की देखा-देखि लिखना शुरू किया हो। पर अन्दर की छटपटाहट या कुलबुलाहट बाहर आने को बेताब थी। सलीके से उन्हें  शब्दों का जामा पहनाने का प्रयास भर करता हूँ। बनते -बिगड़ते रिश्तों को बहूत नज़दीक और शिद्दत से महसूस किया है इसीलिए अधिकतर कविताओं  में रिश्तों शब्द का प्रयोग अधिक हुआ है। वो शायद मेरी मज़बूरी भी हो सकती है।

संपर्क: मकान नम्बर: 1105/2, सेक्टर-16, फरीदाबाद

4 comments:

  1. bahut achhi kavitayein hain aroda ji ki ...bdhai ...!!

    ReplyDelete
  2. Bargad aschhi kavita hai Pasan aayi

    Pushpa mehra

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर....
    मन को छू गए आपके बोल......

    ReplyDelete