निजी
क्षेत्रों में, विशेषकर आईटी कंपनियों में पिछले महीनों में
बड़ी संख्या में युवाओं की नौकरियाँ प्रभावित हुई हैं। यह स्थिति चिंतनीय भी है और
सच्चाई भी। तकनीक के तेज़ बदलाव ने कई ऐसे काम कम कर दिए,
जिन्हें मशीनें तेज़ और कम कीमत में कर सकती हैं। जब बड़ी कंपनियाँ मशीनों को
इंसानों की जगह लगाने लगती हैं, तो यह एक सामाजिक संकट का भी
आरंभ होता है। ऐसे में एक बड़ा सवाल उठता है- जो युवा अभी
प्रभावित हो रहे हैं, उनका क्या होगा?
आधुनिकता और तकनीक का समर्थन करने वालों का तर्क
यह होता है कि यह सब विकास का संकेत है, आगे इससे नई नौकरियाँ आएँगी; लेकिन यह भी सच्चाई है
कि आज जिन युवाओं की नौकरी छीनी जा रही है, वे इस तरह के
तर्क को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। कोई
उनकी वेदना नहीं समझता, आज नौकरी से जो बाहर हो रहे हैं- जिनके परिवार उनकी आय पर निर्भर हैं, जिन्होंने घर के लिए, शिक्षा के लिए ऋण लेकर रखा है, जिनपर और न जाने कितनी
जिम्मेदारियाँ हैं, उनको अचानक जब ‘नौकरी के लायक नहीं हो’ कहकर बाहर कर दिया जाएगा, तब सोचिए- उनपर क्या बीतेगी। यह उनके लिए हताशा,
अविश्वास और आर्थिक असुरक्षा का दौर होगा, जो समाज में अपराध और नशे जैसी अनेक
प्रकार की विसंगतियों को जन्म देगा। यह
स्थिति आने वाली पीढ़ी के आत्मविश्वास को भी कमजोर करेगी। निजी क्षेत्र को यह
समझना होगा कि मनुष्य की मेहनत देश की
आर्थिक उन्नति में बहुत बड़ी भूमिका निभाती हैं। तकनीक की यह
रफ्तार समाज की तैयारी से कहीं अधिक तेज चाल से चल रही है, जो चिंतनीय है।
मुझे याद है, जब कम्प्यूटर
का आगमन हुआ था, तब
हम समाचार- पत्र में काम करने वाले लोग कलम और कागज पर ही
काम करने के आदी थे; परंतु हमें इस नई तकनीक को सीखने का समय दिया
गया; बल्कि कहना चाहिए काम करते हुए ही हमें उसकी ट्रेनिंग
दी गई और हमने इस नई तकनीक को सीखा। आज देखिए पूरी दक्षता से समाचार- जगत् में नई तकनीक से काम हो रहा है। शुरू में
दिक्कतें आईं थीं; पर बाद में सबने स्वीकारा और सीखा। यह बात अलग है कि जो लोग इस नई तकनीक को अपना नहीं पाए, वे सब पिछड़ गए। आप यह भी देख ही रहे हैं कि कम्प्यूटर ने किस तरह शिक्षा
से लेकर नौकरी, व्यवसाय सब में अपनी जगह बना ली है। यह तो तय है कि नई तकनीक को सीखना ही होगा; पर बिना सिखाए ही किसी को नौकरी से निकाल
देना, उनको बेरोजगार कर देना, तो सही नहीं कहा जा सकता है।
आज सामने आए इस गंभीर रोजगार के संकट को देखते
हुए ही संभवतः सरकार ने 2026–27 से कक्षा 3 से ही AI का पाठ्यक्रम शुरू करने की घोषणा की है; ताकि आने वाली पीढ़ी शुरू से ही समय की ज़रूरतों के अनुरूप तैयार हो सके।
यह भविष्य की दृष्टि से अच्छा कदम हो सकता है। यह फैसला यह भी दर्शाता है कि अब AI
कोई अलग तकनीक नहीं, बल्कि रोज़मर्रा के जीवन
का ही हिस्सा बनने जा रही है।
यह तो सर्वविदित है कि इस नई तकनीक को आने से
रोका नहीं जा सकता, ठीक वैसे ही जैसे कंप्यूटर के आगमन पर हुआ था; परंतु AI के सपने दिखाने वालों को यह समझना होगा कि
समाज केवल तकनीक से नहीं चलता, भावनाओं, सुरक्षा, सम्मान और स्थिरता से भी चलता है।
जब लोग देख रहे हैं कि मशीनें उनकी जगह ले रही हैं, कंपनियाँ उन्हें आऊटडेटेड घोषित कर रही हैं और सरकार हर समस्या का समाधान
नई तकनीक में ढूँढ रही है, तो असुरक्षा तो बढ़ेगी ही। विकास का रास्ता तकनीक हो
सकता है; पर देश के लोग पहले आते हैं। इसलिए ध्यान रखना होगा
कि मशीनें सुविधा तो दें; लेकिन इंसानों का महत्त्व कम न हो। तकनीक विकास की
गति तय करे; लेकिन समाज उसकी दिशा तय करे।
एक आधुनिक राष्ट्र अपनी दिशा केवल मशीनों के आधार पर तय नहीं करता। राष्ट्र उस रास्ते को चुनता है, जिसमें मानव सुरक्षा, सामाजिक स्थिरता और आर्थिक तरक्की साथ- साथ चलें। यदि परिवर्तन को संवेदनशीलता से नहीं सँभाला गया तो, इसका असर सिर्फ रोजगार पर नहीं, पूरी सामाजिक व्यवस्था पर पड़ेगा। तकनीक को अपनाना समय की ज़रूरत है, पर समाज को अनदेखा करके तरक्की करना कतई उचित नहीं है।


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