tag:blogger.com,1999:blog-4535413749264243925.post5701077559990421176..comments2024-03-17T09:36:41.468+05:30Comments on उदंती.com: ग्रामीण अर्थव्यवस्थाudanti.comhttp://www.blogger.com/profile/16786341756206517615noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-4535413749264243925.post-23396836704680384682013-04-24T10:52:19.895+05:302013-04-24T10:52:19.895+05:30‘भारत- निर्माण’ ‘अतुल्य- भारत’ तथा ‘इंडिया विज़न- २...‘भारत- निर्माण’ ‘अतुल्य- भारत’ तथा ‘इंडिया विज़न- २०२०’ जैसे आकर्षक और लोकलुभावन नारों के बीच आज हमें २१वीं सदी में आये एक दशक से ज्यादा हो चुका है | क्या वाकई हम अपने आप को उपरोक्त आदर्शवादी और आशावादी सपने को वास्तविक धरातल पर पाते है ??<br />कहा जाता है की मनुष्य स्वयं अपने भाग्य का निर्माता होता है | इतिहास साक्षी है हमारे ‘भाग्य निर्माण’ का और ‘भारत निर्माण’ का | भारत गावों का देश, जहाँ क़रीब ६ लाख गावं और गावों का भाग्य निर्माता, भारतीय ग्रामीण किसान | हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ कृषि तथा उसकी मजबूती का मूलाधार ग्रामीण कृषक | आज नयी सदी के भारत का ब्रिटिश नीति ‘इंडिया’ अपने भाग्य निर्माता का मूल्याकन नहीं करना चाहता ........और करे भी क्यों ?..........क्योंकि गुलाम मानसिकता वाले राष्ट्र का मूल्यांकन करे कौन ??<br />आज जब हम अपनी प्राचीन गौरवशाली सांस्कृतिक परम्परा का सिंहावलोकन करे तो पाते है कि इस सांस्कृतिक समृध्दि के पीछे एक मजबूत आर्थिक- सामजिक अवसंरचना (Infrastructure) का कितना महत्वपूर्ण योगदान रहा है | तभी हम संसार की प्राचीनतम सजीव सभ्यता एवं संस्कृतियों में से है |<br />वर्तमान परिदृश्य में हमारी समाजगत जटिलता के मूल में, सांस्कृतिक समन्वय एवं ग्रामीण सामाजिक अधोसंरचना तथा एक राष्ट्र की अवधारणा की केन्द्रीय भूमिका से कोई इनकार नहीं कर सकता है | फिर भी आज सबसे ज्यादा उपेक्षित और तिरस्कृत यही पक्ष ”भारत” है | हमारी दिव्आयामी मानसिकता तथा उससे उपजी दिव् राष्ट्र की अवधारणा ......जिसमे पहला पक्ष ‘भारत’ और दूसरा पक्ष ‘इन्डिया’ |<br />आज हमारे सामने की द्वन्द की स्थिति है, जिसमे यही दोनों पक्ष आमने सामने है और उसमे भी ‘इन्डिया’ का पक्ष ‘भारत’ पर हावी है |<br />निष्कर्ष सिर्फ इतना ही नहीं होगा की इंडिया सिर्फ एक Economic Hub के रूप में विकसित होता एक बड़ा अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार है ........बल्कि निष्कर्ष ये भी होगा कि भारत गरीबी भुखमरी और गुलामी की तरफ बढ़ रहा है | आज यह गुलामी हमारी मानसिक और बौद्धिक गुलामी का प्रतीक बन रही है|<br />आज हमारे हाँथों में मोबाइल फ़ोन तो है पर श्रम करने की ताकत नहीं, विकसित बनने की चाह तो है मगर चेतना दृढ़ संकल्पित नहीं, आज भारत साक्षरता प्रतिशत में तो वद्धि कर रहा है पर सुशिक्षित समाज की अवकल्पना से मीलो दूर है .......क्या यही है २१वीं सदी का भारत ?अमित वर्माhttps://www.blogger.com/profile/16531680315669801282noreply@blogger.com