tag:blogger.com,1999:blog-4535413749264243925.post1520301750286461481..comments2024-03-19T18:52:57.849+05:30Comments on उदंती.com: जीवन दर्शन- सुख : साधन, समाधान एवं स्वादudanti.comhttp://www.blogger.com/profile/16786341756206517615noreply@blogger.comBlogger27125tag:blogger.com,1999:blog-4535413749264243925.post-85892850810172335182021-08-12T18:55:58.594+05:302021-08-12T18:55:58.594+05:30माननीया, सही कहा आपने. कुछ देने का आनंद पाने के आन...माननीया, सही कहा आपने. कुछ देने का आनंद पाने के आनंद से कई गुना अधिक है. आप सुधी पाठिका होने के साथ सशक्त लेखिका भी हैं. सो हार्दिक आभार. सादरविजय जोशीhttps://www.blogger.com/profile/12404983250204309547noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4535413749264243925.post-45655564104241490892021-08-12T13:31:51.551+05:302021-08-12T13:31:51.551+05:30बहुत सारगर्भित आलेख ।शिक्षाप्रद,मर्मस्पर्शी ।अनुभू...बहुत सारगर्भित आलेख ।शिक्षाप्रद,मर्मस्पर्शी ।अनुभूतिपरक सुख का वर्णन 'जो गूंगे मीठे फल को रस अंतरगत ही भावत......."की तरह है जिसका स्वाद वही चख सकता है जो देने के आनन्द से परिचित है।<br />इस आलेख को पढ़कर विजयदान देथा की कहानी याद आ गई। हार्दिक साधुवाद ऐसे आनन्दायक अनुकरणीय आलेखों से परिचित करवाने हेतु।<br />सादर -माण्डवी सिंह भोपाल। 💐💐Mandwee Singhhttps://www.blogger.com/profile/18055909083980584367noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4535413749264243925.post-58464903228315530242021-08-10T12:47:11.642+05:302021-08-10T12:47:11.642+05:30प्रिय रजनी, सही कहा. "आर्ट ऑफ गिविंग" आर...प्रिय रजनी, सही कहा. "आर्ट ऑफ गिविंग" आर्ट आफ लिविंग से अधिक सुखद अनुभव है आनंददायक. सस्नेह.विजय जोशीhttps://www.blogger.com/profile/12404983250204309547noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4535413749264243925.post-7849108480228563862021-08-10T09:01:05.694+05:302021-08-10T09:01:05.694+05:30अति उत्तम। कुछ देकर तो देखिए, मन में परम् सुख व सं...अति उत्तम। कुछ देकर तो देखिए, मन में परम् सुख व संतोष का अनुभव होता है। लेख से प्राप्त सीख- कुछ पाना एक क्षणिक सुख है पर कुछ देना परम् संतोष व आनन्द। धन्यवाद सर।<br /><br />सादर-<br />रजनीकांत चौबेDil se Dilo takhttps://www.blogger.com/profile/04880514218237914814noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4535413749264243925.post-17915646980601611342021-08-10T08:24:39.041+05:302021-08-10T08:24:39.041+05:30हार्दिक धन्यवाद. साभारहार्दिक धन्यवाद. साभारविजय जोशीhttps://www.blogger.com/profile/12404983250204309547noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4535413749264243925.post-17244056597675375742021-08-09T19:00:27.617+05:302021-08-09T19:00:27.617+05:30धन्यवाद आदरणीय आपका सानिध्य स्वर्णिम है।धन्यवाद आदरणीय आपका सानिध्य स्वर्णिम है।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/10393977195946045919noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4535413749264243925.post-44028062430024653172021-08-09T18:48:10.726+05:302021-08-09T18:48:10.726+05:30ऊपरी सुख तो छलावा है. असली सुख तो अंतस में व्याप्त...ऊपरी सुख तो छलावा है. असली सुख तो अंतस में व्याप्त है. बस कोलंबसी मानसिकता की दरकार अनिवार्य आवश्यकता है. हार्दिक धन्यवाद.सादर.<br />(आपका नाम पता चल पाता तो आनंद आ जाता)विजय जोशीhttps://www.blogger.com/profile/12404983250204309547noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4535413749264243925.post-39152840730733924372021-08-09T18:44:47.857+05:302021-08-09T18:44:47.857+05:30आप तो स्वयं विद्वान साहित्यकार हैं, जो तत्व की तह ...आप तो स्वयं विद्वान साहित्यकार हैं, जो तत्व की तह में तुरंत उतर जाती हैं. और मनोबल बढ़ाती हैं सो अलग. हार्दिक आभार. सादरविजय जोशीhttps://www.blogger.com/profile/12404983250204309547noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4535413749264243925.post-18349516882563980522021-08-09T18:42:37.226+05:302021-08-09T18:42:37.226+05:30आदरणीय सिंह सा., यह आपका स्नेह ही है जो मुझे समझ औ...आदरणीय सिंह सा., यह आपका स्नेह ही है जो मुझे समझ और शक्ति दोनों देता है. यही स्नेह सदा बना रहे इसी कामना के साथ. हार्दिक आभार. सादरविजय जोशीhttps://www.blogger.com/profile/12404983250204309547noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4535413749264243925.post-17833324151859619192021-08-09T18:40:32.804+05:302021-08-09T18:40:32.804+05:30आ़ शिवजी, आप उदंती के नियमित सुधी पाठक हैं. अंदर झ...आ़ शिवजी, आप उदंती के नियमित सुधी पाठक हैं. अंदर झांकने से ही तो हमें डर लगता है. जिन खोजा तिन पाइंया, परंतु उसके लिये चाहिये इच्छा तथा साहस. आपकी पसंदगी के लिये हार्दिक आभार. सादरविजय जोशीhttps://www.blogger.com/profile/12404983250204309547noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4535413749264243925.post-61416695214312721122021-08-09T18:36:42.785+05:302021-08-09T18:36:42.785+05:30प्रिय विजेंद्र, यही तो मर्म, कर्म और धर्म है. सस्न...प्रिय विजेंद्र, यही तो मर्म, कर्म और धर्म है. सस्नेह विजय जोशीhttps://www.blogger.com/profile/12404983250204309547noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4535413749264243925.post-87022942321018200192021-08-09T18:35:23.605+05:302021-08-09T18:35:23.605+05:30हार्दिक आभार. आप तो उदंती की सुधी पाठक हैं. सादर हार्दिक आभार. आप तो उदंती की सुधी पाठक हैं. सादर विजय जोशीhttps://www.blogger.com/profile/12404983250204309547noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4535413749264243925.post-73580275971575598712021-08-09T14:44:04.101+05:302021-08-09T14:44:04.101+05:30हार्दिक आभार सादर हार्दिक आभार सादर विजय जोशीhttps://www.blogger.com/profile/12404983250204309547noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4535413749264243925.post-79351169407026441032021-08-08T12:32:57.647+05:302021-08-08T12:32:57.647+05:30प्रेरणादायी आलेख। मन को छू गया। प्रेरणादायी आलेख। मन को छू गया। Sudershan Ratnakarhttps://www.blogger.com/profile/04520376156997893785noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4535413749264243925.post-35694898863341299982021-08-08T11:00:56.576+05:302021-08-08T11:00:56.576+05:30दो दिन की है ज़िंदगी , और बहुत हैं काम
परहित में जी...दो दिन की है ज़िंदगी , और बहुत हैं काम<br />परहित में जीवन कटे, तभी मिले आराम<br /><br />पढ़ कर भी बहुत सुख मिलाVijendra Singh Bhadauriahttps://www.blogger.com/profile/16294657372999021388noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4535413749264243925.post-11446161776512931692021-08-08T10:20:49.749+05:302021-08-08T10:20:49.749+05:30बहुत सुंदर प्रेरक प्रसंग।निःसन्देह सुख बाहर नही अन...बहुत सुंदर प्रेरक प्रसंग।निःसन्देह सुख बाहर नही अन्तस् में है हम सब निरन्तर बाहर बाहर भागते रहते हैं,अन्तस् में जाने का प्रयास भी नहीं करते।सुंदर आलेख हेतु विजय जोशी जी को साधुवाद।शिवजी श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/11658195805454614870noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4535413749264243925.post-38823573399622921952021-08-08T08:51:59.729+05:302021-08-08T08:51:59.729+05:30आपने सत्य कहा कि सुख या संतोष मूलत: अंतस् की अवस्थ...आपने सत्य कहा कि सुख या संतोष मूलत: अंतस् की अवस्था है।ओटेडोला जी का उदाहरण तो अद्भुत है। जो सुख, सन्तोष व आनन्द परोपकार एवं परसेवा में है व कहीं भी नहीं है। अन्तर्मन को छूने वाला प्रेरक आलेख सृजित करना आदरणीय जोशी जी के लिए ही सम्भव है।ईश्वर आपको शतायु करे जिससे समाज को ऐसा ही उच्चकोटि का साहित्य प्राप्त होता रहे। साधुवाद।VB Singhhttps://www.blogger.com/profile/02821389120868308502noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4535413749264243925.post-3096459548197065362021-08-08T01:27:47.170+05:302021-08-08T01:27:47.170+05:30हम भोजन शरीर को चलाने के लिए करते है,पर आत्मिक संत...हम भोजन शरीर को चलाने के लिए करते है,पर आत्मिक संतुष्टि के लिए दर दर भटकते है और ताउम्र जतन भी बहुत करते है, पर जो सुख दूसरों को खुशियाँ देने में है,वह दूसरों से खुशियाँ छुडाने में नही, आत्मीयता की एक मुस्कान ,हीरे मोती से लदे जहाज की दौलत के आगेफीकी है। आदरणीय जोशी जी आपके प्रेरक प्रसंग संप्रेषणीय व प्रसारित योग्य है। धन्यवाद आपको। Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/10393977195946045919noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4535413749264243925.post-39873840073795169012021-08-07T19:11:47.080+05:302021-08-07T19:11:47.080+05:30अति सुन्दर लेख।सीधे दिल से दिल तक।वाह।अति सुन्दर लेख।सीधे दिल से दिल तक।वाह।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/16418898393166770176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4535413749264243925.post-36172562054778853762021-08-07T16:31:45.648+05:302021-08-07T16:31:45.648+05:30आदरणीय सही कहा आपने. हम सतह पर ही जीने के आदी हैं....आदरणीय सही कहा आपने. हम सतह पर ही जीने के आदी हैं. गहराई में उतरने से भयभीत भी रहते हैं कई बार. जिन खोजा तिन पाइयां किताबों में सिमट गया है. खैर अपनी साझा करते रहने का भी एक आनंद है. हार्दिक आभार सहित सादर विजय जोशीhttps://www.blogger.com/profile/12404983250204309547noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4535413749264243925.post-1243062674308780262021-08-07T16:27:44.716+05:302021-08-07T16:27:44.716+05:30ये तो आपकी सदाशयता है जो आप अच्छाई का अवलोकन किया ...ये तो आपकी सदाशयता है जो आप अच्छाई का अवलोकन किया करते हैं. बस ईश्वर सद्बुद्धि देता रहे. हार्दिक आभार सहित सादर विजय जोशीhttps://www.blogger.com/profile/12404983250204309547noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4535413749264243925.post-35991518569115007152021-08-07T15:28:40.966+05:302021-08-07T15:28:40.966+05:30सरल शब्दों में प्रेरक प्रसंगों द्वारा लोगों तक मान...सरल शब्दों में प्रेरक प्रसंगों द्वारा लोगों तक मानव मूल्यों को पहुंचाना जोशी जी की विशेषता है। निश्चय ही निष्काम जरूरतमंद लोगों की सहायता करना निर्मल आनंद देता है। जोशी जी प्रायः इससे रूबरू होते रहते हैं। साधुवाद!देवेन्द्र जोशीhttps://www.blogger.com/profile/08149613264889554924noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4535413749264243925.post-61781482414439232532021-08-07T13:39:07.542+05:302021-08-07T13:39:07.542+05:30प्रिय चंद्र, इतने मनोयोग से पढ़कर प्रतिक्रिया देने...प्रिय चंद्र, इतने मनोयोग से पढ़कर प्रतिक्रिया देने हेतु धन्यवाद बहुत ही छोटा शब्द है. स्नेह की पूंजी का कभी क्षरण नहीं होता सो वह बना रहे सदा, इसी कामना के साथ. सस्नेहविजय जोशीhttps://www.blogger.com/profile/12404983250204309547noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4535413749264243925.post-53599482051339080632021-08-07T13:36:17.093+05:302021-08-07T13:36:17.093+05:30प्रिय हेमंत, सेवा से बड़ा तो कोई सुख ही नहीं बशर्त...प्रिय हेमंत, सेवा से बड़ा तो कोई सुख ही नहीं बशर्ते स्वार्थ रहित हो. सस्नेह विजय जोशीhttps://www.blogger.com/profile/12404983250204309547noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4535413749264243925.post-36115980053346349802021-08-07T10:51:10.220+05:302021-08-07T10:51:10.220+05:30आदरणीय जोशी सर,
सादर अभिवादन। आलेख पढ़ कर एक दोहा य...आदरणीय जोशी सर,<br />सादर अभिवादन। आलेख पढ़ कर एक दोहा याद आ गया "झूठे सुख को सुख कहे मानत है मन मोद। जगत चबेना काल का कुछ मुख में कुछ गोद।" ओटडोल महोदय की कहानी इसी सत्य का जीवंत उदाहरण है।<br />इस सुंदर उदारहण को अत्यंत रोचक ढंग से प्रस्तुत करने के लिए आप साधुवाद के पात्र हैं।<br />सच है, जितने भी भौतिक सुख संसाधन है उनकी नश्वरता के अनुसार ही उनके सुख प्रदान करने की सीमा भी है। उस सीमा का बाद वे बोझ बन जाते हैं। <br />जीवन अर्थात जीवात्मा की यात्रा भौतिक यात्रा नहीं है। यही कारण है कि समस्त भौतिक उपलब्धियों के बावजूद वह संतुष्ट नहीं होता। उसे तो आत्मिक सुख से ही तृप्ति मिलती है। हां आत्मिक तृप्ति / आध्यात्मिक उन्नति तक पहुंचने तक उसे एक दीर्घ भौतिक यात्रा से गुजरना आवश्यक होता है। बिना भौतिक यात्रा के न तो वह भौतिकता के यथार्थ को समझ सकता है और न ही आत्मानंद को।<br />प्रेम चंद गुप्ताhttps://www.blogger.com/profile/15742482563660276490noreply@blogger.com