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Mar 1, 2023

यात्रा वृत्तान्तः स्मृतियों में बैंगलोर जैसे बाग- बगीचों के झुरमुट में झाँकना...

 - विनोद साव

अपनी स्मृतियों में बैंगलोर को खंगालना वैसे ही है जैसे बाग-बगीचों के झुरमुट में उसे झाँकना। हम यहाँ तीसरी बार आए थे, पहली बार 1982 में 18 दिनों की सम्पूर्ण दक्षिण भारत यात्रा में एक विशेष बस से आए थे। रात हमारे टूरिस्ट एजेंट ने हमें एक साफ-सुथरे गुरुद्वारे में रुकवा दिया था। गुरुद्वारा प्रबंधक ने कहा था कि “यहाँ दाढ़ी बनाना मना है।”

रात हम यहाँ सो गए थे। जब मॉर्निंग वॉक के लिए बाहर निकले तब हम इस अनूठे शहर को देखते रह गए थे जैसे हम किसी शहर में नहीं किसी सुन्दर उपवन में विचरण कर रहे हों। हर घर और उनकी दीवारें सुन्दर- सुन्दर फूलों, बेल-बूटों से ढकी हुई थी। उनके मकान मकानों की तरह नहीं किसी हरियाली से सजे आधुनिक रिसोर्ट या कॉटेज की तरह लगते। ऐसे लगता जैसे हम किसी शहर में नहीं किसी विशाल उद्यान में चले जा रहे हों जिसके मार्ग चौराहे सब फूलों-फ़व्वारों से भरे हुए हैं। तब जाना कि ऐसे ही नहीं इस शहर को ‘गार्डन सीटी’ कहा गया है। यहाँ वनस्पति उद्यानों का विशाल बगीचा ‘लालबाग’ है। बाहर ठेलों में इस बाग के फल फूल बिकते हैं। चालीस साल पहले तब एक रुपये बोतल में अंगूर के मीठे ताजे रस मिल गए थे। जब पीने बैठे तब कई बोतलें खाली हो गईं।

अपने शीतल सदाबहार मौसम और हर किस्म की सुविधाओं के कारण सेवानिवृति के बाद रहने बसने के लिए यह हमेशा उपयुक्त शहर रहा है इसलिए इसे पेंशनर्स पैराडाइज़ कहते हैं। यहाँ के बाजारों और शहरी इलाकों के मकान देश के अन्य हिस्सों के मुकाबले कहीं अधिक सुन्दर और कलात्मक हैं। अब भले ही यह ऑटोमोबाइल प्रदूषण के कारण कम शीतल होता जा रहा है जैसे पुणे पहले हो चुका है। ट्रैफिक जाम एक बड़ी समस्या हो गई है। अब हम लोग व्हाइटफील्ड में रुकते हैं। इस इलाके का  नाम यूरोपीय और एंग्लो इंडियन एसोसिएशन के संस्थापक डी.एस. व्हाइट के नाम पर है। यह आई.टी.हब है और यहाँ रियल एस्टेट का बड़ा कारोबार है।

तब बैंगलोर के सिनेमाहॉल बड़े भव्य और खूबसूरत थे। बैंगलोर के इतिहासकार सुरेश मूना कहते हैं - ‘कभी यहाँ डेढ़-सौ सिनेमाहाल थे। हमने वहाँ के सबसे भव्य टाकीज ‘राज-राजेश्वरी’ को देखा था जहाँ एशिया का पहला 70- एम एम पर्दा लगा था। दिलीपकुमार-अमिताभ बच्चन दो दिग्गज अभिनेताओं के शक्ति प्रदर्शन से भरी फिल्म ‘शक्ति’ हमने देखी। हम फिल्म ‘कुली’ की बहुचर्चित अमिताभी दुर्घटना के बाद पहुँचे थे। बैंगलोर रेलवे स्टेशन में ‘कुली’ की शूटिंग हुई थी। जिसके बाद इंदिरा गाँधी भी उस घायल हीरो को देखने बैंगलोर के अस्पताल आ पहुँची थीं। तब हाथ जोड़ते हुए उन्होंने कागज में लिखकर इंदिराजी को दिया “आई कान्ट स्पीक” तब इंदिरा जी ने उनके माथे को अपने स्नेहसिक्त हाथों से छूते हुए कहा था “बट आई कैन स्पीक माय चाइल्ड।”

उस समय बैंगलोर का गाइड हमें घुमाते हुए बोल उठा था “लेडिज एंड जेंटलमैन.. बैंगलोर सिटी का पापुलेशन 35 लाख है, जैसे अमिताभ का एक फिल्म के लिए रेट 35 लाख है।”

हम घूमते हुए एक तीस मंजिली इमारत में पहुँच गए थे जिसके 29वें और 30वे माले पर अमज़द खान का “टॉप कॉपी’ रेस्तराँ था।

इस बार भी हम यशवंतपुर से पहले एलंका स्टेशन में उतरकर जब व्हाइटफील्ड जा रहे थे, तब रास्ते में एक मूर्तिकार कन्नड़ फिल्मों के दिवंगत सुपरस्टार डॉ. राजकुमार और उनके बेटे की मूर्ति बना रहे थे। उन्हें किसी सार्वजनिक स्थल में स्थापित करने के लिए। यहाँ फिल्मों के अभिनेता समाजसेवाओं से जुड़े रहे और इसलिए राजनीति में उन्होंने सफलता पाई।

बैंगलोर बम्बई की तरह का दूसरा शहर है। यहाँ एक बॉम्बे ग्रांट रोड भी है। इस शहर ने बम्बई (मुंबई) की तरह डिजिटल और सॉफ्टवेयर उद्योग, फैशन, सिनेमा और क्रिकेट में बड़ी रुचि ली और बैंगलोर को देश का ऐसा रोजगारपरक केंद्र बना दिया है कि इधर युवाओं की दौड़ देखते बनती है। नौजवान मानते हैं - “यह एक ऐसा शहर जहाँ मस्ती भरी छुट्टियों के लिए सारी सुविधाएँ मौजूद हैं। इसके प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ आधुनिक जीवन शैली का मिलन दुर्लभ है।” यद्यपि बैंगलोर की भीड़ को देखने से वह ग्लैमर दिखाई नहीं देता जो मुंबई-पुणे या दक्षिण के दूसरे बड़े शहरों में दिखाई देता है। आम कन्नड़  भद्रजन, सीधे सरल व बनाव-शृंगार से दूर दिखाई देते हैं लेकिन उनका शहर बैंगलोर तो पूरी तरह चकाचक और खूबसूरत है। उन्नति की दौड़ में कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद को पीछे छोड़ रहा है।

जब यह मैसूर राज्य था तब यहाँ के मुख्य सचिव वैज्ञानिक विश्वेश्वरैया थे उन्होंने इस शहर में ऐसी वैज्ञानिक चेतना भर दी कि हर नए विज्ञान और अन्वेषण की दृष्टि से यह नगर अपने विकास और उन्नति को तय कर रहा है। देश की अग्रणी सूचना प्रौद्योगिकी (IT) निर्यातक के रूप में अपनी भूमिका के कारण बैंगलोर को व्यापक रूप से भारत की सिलिकॉन-वैली या भारत की आई टी राजधानी के रूप में माना जाता है।

विश्वेश्वरैया ने वैज्ञानिक सिद्धांतों को लेकर एक म्यूजियम बनाया था  जिसे चार दशकों पहले जब देखा था इसमें चार खंड थे। प्रत्येक खंड में प्रदर्शित चीजों के सामने एक स्विच लगा था और उनका नाम एक पट्टिका पर अंकित किया गया था। स्विच दबाने पर मशीन का हर भाग काम करने लगता। इसके बिजली वाले खंड में एक गुड़िया थी। जो नाचती रहती थे और जब कोई उसे पकड़ने की कोशिश करता था वह गायब हो जाती थी। एक बेसिन में पानी का टैब लगा था जिसमें एक छेद से रोशनी पड़ती थी। रोशनी को हाथ से रोक देने पर पानी आने लगता था। बच्चों से लेकर बड़ों-बूढ़ों तक की रुचि की बहुत-सी चीजें यहाँ गिनीं नहीं जा सकती थीं, जिनके आकर्षण और काम अद्वितीय थे। सिनेमा, मशीन, टेलीफोन, टेलीग्राफ, कोयले की खानें, कागज बनाने के ढंग, दूरबीनें, माइक्रोस्कोप सब यहाँ प्रदर्शित थे। आज यह वैज्ञानिकता बैंगलोर में लोगों के जीवन में कदम कदम पर है और उद्योग-कारोबारों में एकदम हाइटेक है।

पिछले समय हम इसके एयरपोर्ट से रायपुर गए थे। इसका केम्पेगौड़ा हवाई अड्डा भारत का तीसरा सबसे व्यस्त हवाई अड्डा है।  विजयनगर साम्राज्य के सामन्त केम्पेगौडा ने इस क्षेत्र में मिट्टी से बने क़िले का निर्माण कर बेंगलुरु शहर की नींव डाली थी। फिर हैदरअली और टीपू सुल्तान ने लकड़ी का महल बनवाया। टीपू के एक समर पैलेस को हमने चामराजपेट में देखा।

इस बार राजधानी एक्सप्रेस से नागपुर निकले तो बैंगलोर के के.एस.आर.रेलवे स्टेशन से हमने ट्रेन पकड़ी। KSR- क्रांतिवीर संगोल्ली रायन्ना एक बहादुर देशभक्त स्वतंत्रता सेनानी थे जिनके नाम से रेलवे स्टेशन है। स्वाधीनता संग्राम के समय दुश्मनों ने उन्हें बरगद के पेड़ में लटकाकर मारा गया था।

बैंगलोर का शिक्षा और विज्ञान इनके धर्म आश्रमों को दिशा देता है। जहाँ इनके गुरु स्वामी महाराज कल्याणकारी सेवाओं में जुटे हुए हैं। उत्तर भारत के आश्रम गुरुओं की तरह नहीं जो अपनी करनी से जेल में जा बैठे हैं और आजीवन कारावास भुगत रहे हैं। यहाँ के ज्यादतर आश्रम स्कूल, अस्पताल की स्थापना के साथ कौशल कुटीर केन्द्रों में रोजगारपरक प्रशिक्षण दे रहे हैं। यह शहर केवल सूचना तकनीक ही निर्यात नहीं करता बल्कि भोजन खिलाने में भी टेक्नोलॉजी का सहारा ले रहा है।

हम इंदिरा नगर बैंगलोर के एक ऐसे रेस्तराँ में आ बैठे हैं जहाँ खाना रोबोट परोस रहे हैं। यहां पाँच रोबोट और तीन खिलौना ट्रेन है जिसमें ग्राहकों के आदेश के हिसाब से खाना परोसा जाता है। बैठक व्यवस्था के बीचोंबीच ट्रैक है जिसमें रोबोट चलते हैं। कभी कभी इसके पाँचों रोबोट एक के पीछे एक निकलते हैं। कभी कोई अपने ग्राहक को अकेला परोसने आ जाता है। यहाँ महिलाओं के साथ बच्चे बड़े उत्साह से आते हैं। वे खाना लेकर खड़े रोबोट के साथ अपनी सेल्फी लेते हैं। ये रोबोट महिलाओं की पोशाक में हैं। हमने थाई क्विजिन का आइटम ऑर्डर किया था जिसे लेकर आने वाली रोबोट का नाम ‘किटी’ था। रेस्तरां में बैठे हुए लोग उसे वैव करते हुए पुकार उठे थे ‘हाय किटी’।

सम्पर्कः मुक्तनगर, दुर्ग, मो। 9009884014

1 comment:

शिवजी श्रीवास्तव said...

सुंदर वृत्तान्त