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Nov 1, 2022

कविताः जो दिखते नहीं

 - प्रगति गुप्ता

क्यों कभी-कभी

कुछ शब्द ही

साँसों को बाँध

लयबद्ध कर देते है.....

क्यों कभी-कभी

कुछ स्पर्श जीने के

मायने बदल देते है.....

क्यों कभी-कभी कुछ स्मृतियाँ

जीने की वज़ह बन जाती है.....

यह सिर्फ-

एहसासों से जुड़ी बातें है

जो कभी असल में जुड़कर

या कभी अदृश्य साथी बन

साथ-साथ चला करती है...

टूटते है जब भी

मन से जुड़े तार

तब यही शब्द स्मृतियाँ बनकर

स्पर्श हमें करते है....

तभी तो

शब्द, स्मृतियाँ और स्पर्श

अक्सर एहसास बनकर

न दिखकर भी

आस-पास महसूस हुआ करते है...

सम्पर्कः  58, सरदार क्लब स्कीम, जोधपुर -342001,

मो. 09460248348,  07425834878

2 comments:

Anonymous said...

बहुत शुक्रिया रत्ना जी🙏

Neelam Vyas said...

बहुत बढ़िया जी