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Oct 1, 2022

पर्व- संस्कृतिः जस जंवारा - माँ दुर्गा का यशोगान

- डॉ. सुनीता वर्मा

इस चित्र में  जंवारा विसर्जन के लिए कतारबद्ध होकर जाती
 हुई महिलाओं को डॉ. सुनीता ने बड़ी खूबसूरती से उकेरा है
छत्तीसगढ़ के त्योहार प्रकृति के गहरे सानिध्य से उपजे उल्लास हैं। प्रकृति के निरंतर परिवर्तन की लय को हम लोग त्योहारों रूप में मनाते हैं। हमारे उत्सव के रूप भी प्रकृति द्वारा संचालित है । मातृशक्ति के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन का पर्व नवरात्र है,  जिसे वर्ष में दो बार मनाते हैं- चैत्र मास में और आश्विन मास में।

जस जँवारा माँ दुर्गा का यशोगान है जो नवरात्रि में देवी स्थापना से नौ दिनों तक देवी मंदिर प्रांगण में गाया जाता है छत्तीसगढ़ की ग्राम देवियाँ  महामाया, बम्लेश्वरी, दंतेश्वरी, मावली माता, शीतला माता का मंदिर माता देवाला कहलाता है। अखंड ज्योति कलश की स्थापना के साथ -साथ पहले दिन जंवारा बोया जाता है। नौ दिनों तक इसकी सेवा की जाती है, जिसकी अभिव्यक्ति ‘जस’ गीतों के माध्यम से की जाती है । और नवमी के दिन उसका विसर्जन होता है। जब विसर्जन करने जाते हैं तो महिलाएँ निम्न गीत गाती हुई आगे बढ़ती हैं-

तुम खेलव दुलखा

रन बन रन बन हो

का तोर लेवय रइँय बरम देव

का तोर ले गोरइंया

का लेवय तोर बन के रक्सा

रनबन रन बन हो ..

इसी प्रकार फूलों से देवी माँ की साज शृंगार करती हुई महिलाएँ गाती हैं-

‘माता फूल गजरा गूँथव हो मालिन के देहरी,

हो फूल गजरा।

काहेन फूल के गजरा काहेन फूल के हार,

काहेन फूल के माथ मकुटिया सोलहों सिंगार…

चंपा फूल के गजरा चमेली फूल के हार,

जसवंत फूल के माथ मकुटिया, सोलहों सिंगार…

माता फूल गजरा…।’

पारंपरिक रूप से गाए जाने वाले ‘जस’ गीतों में माता की महिमा, शृंगार, स्थानीय देवियों का वर्णन एवं धार्मिक प्रसंगों को जोड़कर गाया जाता है जिसमें नित नए प्रयोग हो रहे हैं।

माँ आदिशक्ति के प्रति असीम श्रद्धा को प्रदर्शित करता ‘जसगीत’ स्वर लहरियों एवं मांदर, ढोल, मंजीरा, चाँग जैसे वाद्यों के माध्यम से ओजपूर्ण  शौर्य से भरे संगीत में लोगों के मन में आध्यात्मिक अलौकिक ऊर्जा का भाव उमड़ पड़ता है। लोग ‘जस गीत’ की स्वर लहरियों में थिरकते  हुए बोल -बम, बोल -बम कहते हुए माता के प्रति अपनी श्रद्धा प्रदर्शित करते हैं।

 मातृ शक्ति देवी दुर्गा की सखियाँ देवी धनैया और देवी कोदय्या का ज़िक्र गान में आता है। धान और कोदो छत्तीसगढ़ के प्रमुख फ़सल की देवियाँ हैं । इन देवियों का कोई मंदिर नहीं होता ये खेत खलिहानों में, जस जँवारा गीतों के माध्यम से लोगों के हृदय में निवास करती है। ... लोक गीतों में देवी दुर्गा मूल मातृका के रूप में आती हैं और उन्हें बूढ़ी-माय कहा जाता है।

"लिमवा के डारा मं गड़ेला हिंडोंलवा,

लाखों आये, लाखों जाये कौन ह झूले कौन ह झुलाए?

कौन ह देखन आए? बूढ़ी माय झूले

कोदैया माय झुलाए धनैया देखन आये।"

"कौन माई पहिरे गजरा? कौन माई पहिरे हार?

कौन माई पहिरे माथ मटुकिया

सोला ओ सिंगार मैया फूल गजरा

धनैया पहिरे गजरा कोदैया पहिरे हार।

बुढ़ी माई पहिरे माथ मटुकिया

सोलाओं सिंगार मैया फूल गजरा।।

प्राचीन काल में जब चेचक एक महामारी के रूप में पूरे गाँव में फैल जाता था तब गाँवों में चेचक प्रभावित व्यक्ति के घरों में इसे गाया जाता था।

शाम को पुरुष एक जगह इकट्ठे हो कर  गाँव की सड़कों से गुज़रते हुए माता देवालय की ओर गाते बजाते जाते हैं रास्ते में लोग जुड़ते ही जाते हैं।

मंदिर- प्रांगण में बैठकर घंटों ‘जस गान’ चलता रहता है। प्रथम दिन देवी के आह्वान के गीत होते हैं । देवी सिंह पर चढ़कर आती है । ‘जस गीत’ भक्तिपरक, प्रश्नोत्तर के रूप में गीत के बोल होते हैं । सभी देवी- देवताओं का आह्वान करते हुए गाते हैं - पहली मय सुमरेंव हों मइया चंदा सूरज ला. दूसरे में सुमरेंव हो तो आकाश हो माई ….सुमरन करने एवं न्यौता देने का यह क्रम लंबा चलता है। आकाश, पाताल, दसो दिशाओं के ज्ञात -अज्ञात देवी देवताओं को याद किया जाता है । जो कोई देव छूट गया हो तो फिर सवाल जवाब का क्रम चलता है।

गीतों में स्थानीय प्रसंग जीवन और पौराणिक कथाएँ भी होती हैं। पाँचवे दिन देवी के शृंगार वाले गीत गाए जाते हैं। अष्टमी के दिन हवन पूजन के साथ दुर्गा सप्तशती के मंत्रों से सारा वातावरण भक्तिमय हो जाता है। नौंवे दिन प्रातः मंदिर से ज्योत जँवारा को सिर में उठाए महिलाएँ कतारबद्ध होकर निकलती हैं। गीत में मस्त नाचते गाते भक्तों का कारवां नदी पहुँचता है जहाँ ज्योत जँवारा को विसर्जित किया जाता है । सभी भक्त माता को प्रणाम कर अपने गाँव की सुख समृद्धि का वरदान माँगते हैं । ‘जस गीत’ में माता के विदाई का गीत गाते हुए वे लौट जाते हैं।

आवरण चित्र 

उदंती का आवरण पृष्ठ पर इस बार डॉ. सुनीता वर्मा ने छत्तीसगढ़ में मनाया जाने वाला प्रमुख पर्व जस जँवारा के परिदृश्य को अपनी तूलिका से उकेरा है तथा यहाँ प्रस्तुत उपर्युक्त आलेख में जस जँवारा के बारे में जानकारी भी दी है। डॉ. सुनीता वर्मा अपनी पेंटिंग्स के माध्यम से रंग और प्रकृति के साथ पारंपरिक दृश्य एवं लोकजीवन को एक नया रूप तो देती ही हैं, साथ ही छत्तीसगढ़ की बेटी होने के नाते वे अपनी लोक संस्कृति के भी बहुत करीब हैं यही वजह है कि उनके चित्रों में छत्तीसगढ़ का लोकजीवन झलकता है। चित्रकला के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुकी डॉ. सुनीता को छत्तीसगढ़ सरकार की अनुशंसा पर भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के तहत ललितकला अकादमी (राष्ट्रीय कला संस्थान) का जनरल काउंसिल मेंबर तथा चित्रकला और मूर्तिकला के लिए छत्तीसगढ़ शासन के संस्कृति परिषद में सदस्य मनोनीत किया गया है।

परिचयः जन्म: 1964, छत्तीसगढ़ राजनांदगाँव में,  शिक्षा : इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ से मास्टर ऑफ फाइन आर्ट्स में पी-एच.डी., पुरस्कार : मध्य दक्षिणी सांस्कृतिक केंद्र नागपुर में फोक एंड ट्राइबल पेंटिंग पुरस्कार। अखिल भारतीय चित्रकला एवं मूर्तिकला में कालिदास पुरस्कार तथा कई राज्य स्तरीय सम्मान, प्रदर्शनीः  रायपुर, भिलाई, भोपाल, जबलपुर, उज्जैन, इंदौर के साथ देश के सभी बड़े शहरों दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, केरल, कोलकाता, कोचीन, नागपुर आदि में चित्रकला प्रर्दशनी के साथ ही कई राष्ट्रीय कला -प्रदर्शनी प्रतियोगिता एवं चित्रशाला में भागीदारी।  सम्प्रतिः भिलाई छत्तीसगढ़ के दिल्ली पब्लिक स्कूल में आर्ट टीचर के रुप में कार्यरत उनका पता है- फ्लैट नं.-242, ब्लाक नं.-11, आर्किड अपार्टमेंट, तालपुरी, भिलाई (छत्तीसगढ़) , मो. 094064 22222       

1 comment:

Anonymous said...

आकर्षक आवरण एवं ज्ञानवर्धक आलेख के लिए बधाई। सुदर्शन रत्नाकर