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Oct 1, 2022

अनकहीः उजाले का संकल्प...

-डॉ. रत्ना वर्मा

उजालों के त्योहार दीपावली की इस बार बहुत जोर-शोर के साथ मनाने की तैयारी चल रही है। भारत के सभी त्योहार इस बार कुछ अधिक ही उत्साह के साथ मनाए जा रहे हैं। दो साल के लॉकडाउन के बाद तो ऐसा होना ही था। लॉकडाउन ने जहाँ एक ओर हमारे सामाजिक, सांस्कृतिक और पारिवारिक रिश्तों को कुछ तोड़- सा दिया था, बहुतों ने बहुत कुछ अपना खोया था। वहीं उस दौरान हमें कुछ अच्छी बातें भी सीखने को भी मिली थीं, जिसे लॉकडाउन खत्म होते ही हम भुलाते जा रहे हैं। हमने पिछले दो सालों में अपनी जीवन शैली में अनेक बदलाव लाए थे - जैसे अपने पर्यावरण के प्रति दिखावे के लिए नहीं;  बल्कि सच में जागरूक हो गए थे, खान- पान को लेकर भी बहुत सावधानी बरतनी शुरू कर दी थी, और सबसे जरूरी रिश्तों की अहमियत को इस दौरान सबने बहुत ही करीब से महसूस किया था;  इसलिए रिश्तों के प्रति अधिक संवेदनशील हुए थे। आधुनिकता की ओर बढ़ रहे भारत जैसे देश में मानवता, सहयोग, संवेदनशीलता जैसी भावना विलुप्त होते जा रही थी। अनेक ऐसी कई अच्छी बातों के प्रति हम सचेत हुए और जीवन को अधिक गंभीरता से लेना शुरू किया।

इसी प्रकार इस वर्ष आजादी के अमृत महोत्सव पर 75 वर्ष की आजादी को भी पूरे देश ने बहुत जोर- शोर से मनाया। प्रत्येक देशवासी ने अपने घरों में झंडा फहराकर अपने देशभक्त होने का परिचय दिया। अनेक अभियान चलाए गए, संकल्प लिये गए। प्रधानमंत्री ने पंच प्रण लेकर 2047 तक देश को बहुत आगे ले जाने की बात कही।  उन्होंने आगामी 25 साल के कालखंड को ‘अमृत काल’ का नाम देकर अपनी आँखों के सामने इसे विकसित भारत बना कर पूरा करने की बात कही। इसी प्रकार जनता से एक संकल्प लेने के लिए प्रोत्साहित किया गया,  जो किसी भी रूप में हो सकती थी।  किसी ने बीमारों की सहायता का संकल्प लिया,  तो किसी ने अपने शहर अपने मोहल्ले या गली को साफ- सुथरा करने का संकल्प लिया।  किसी की पढ़ाई के लिए सहयोग हो, या फिर पुस्तकें प्रदान करना हो।  जैसे जब किसी ने कहा कि उसने अपने पास रखी सैकड़ों पुस्तकों को पुस्तक प्रेमियों को देने का संकल्प लिया, अपने घर के एक कोने को पुस्तकालय बना दिया या किताबें किसी पुस्तकालय को दे दिया। अच्छा काम करने के अनेक विकल्प हैं।

लेकिन इसे विडंबना नहीं तो और क्या कहेंगे कि जब पूरा देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा था,  तब देश में अनेक भ्रष्टाचार के मामले भी उजागर हो रहे थे। एक ओर तो पंच प्रण लेकर  2047 तक देश को विकसित भारत बनाने का सपना दिखाया जा रहा था, वहीं दूसरी ओर कुछ लोग आजादी के बाद से ही देश- सेवा के नाम पर देश का पैसा अपनी झोली में भरकर देश को खोखला करने की साजिश में लगे हुए थे। भला ऐसे में कैसे हम विकसित देश की कल्पना कर सकते हैं।  इस बार जिस तरह के भ्रष्टाचार के मामले उजागर हुए हैं, नोटों के बंडल और सोने की ईंटे जिस तादाद में बरामद हुई हैं, उन्हें देखकर तो यह दीवाली काली दीवाली के नाम से याद की जानी चाहिए।

अब जरा ताजी और शुद्ध हवा की बात करें। जब लॉकडाउन था तब पर्यावरणविदों ने कहा कि मात्र एक दिन के लॉकडाउन से जब पर्यावरण का स्तर इतना सुधर सकता है, तो यह लॉकडाउन तो सामान्य दिनों में भी पर्यावरण की शुद्धता के नाम पर प्रतिवर्ष की जानी चाहिए।

पर मनुष्य तो अपने स्वभाव को बदलना ही नहीं चाहता जैसे ही कोरोना के भय से मुक्त हुए पुरानी बाते भूल कर फिर वही पुरानी भेड़ चाल चलने लगते हैं। इस बार गणेश चतुर्थी के अवसर पर सारे नियम- कायदों को ताक में रखकर बड़ी से बड़ी गणेश प्रतिमा बनाने की अनुमति दे दी गई।  जाहिर है फिर देश भर के नदी तालाब गणेश प्रतिमाओं के विसर्जन के बाद प्रदूषित हो गए। जाहिर है ऐसे माहौल में इस बार दीपावली पर पटाखे फोड़ने की पाबंदी पर भी छूट मिलेगी और लोग उत्साह और उमंग के नाम पर बिजली के लट्टुओं से अपने घरों को और ज्यादा रोशन करेंगे और इतने पटाखे फोड़ेंगे कि पिछले दो सालों में प्रदूषण को कम करने का जो संकल्प हमने लॉकडाउन के दौरान लिया था, वह सब धरा का धरा रह जाएगा।

बेहतर कल के लिए प्रत्येक इंसान प्रयत्नशील रहता है। वह चाहता है उसका कल खुशियों से भरा-पूरा हो चाहे वह देश की बात हो समाज की बात हो या परिवार की। सब कोई खुशियों भरे माहौल की कामना करते हुए जीवन जीना चाहते हैं। बेहतर कल के लिए सपने देखना, उन्हें पूरा करना, सकारात्मक सोच रखना अच्छा है;  परंतु इन सब को पूरा करने के लिए प्रयत्न भी करना पड़ता है। बेहतर काम करने के लिए स्वच्छ वातावरण, बेहतर माहौल और रहने लायक सामाजिक आर्थिक सुरक्षा भी जरूरी है। सिर्फ प्रण कर लेने से कुछ नहीं होता। उन्हें पूरा करने के लिए प्रयास करना होता है।

ऐसे में क्या हमें गंभीरता से सोचना नहीं चाहिए कि काली दीवाली मनाने के बजाय स्वच्छता और प्रदूषण से मुक्त उजालों वाली दीपावली मनाएँ। क्यों न ऐसा संकल्प लें कि देश को कालाबाजारी, जमाखोरी, मुफ्तखोरी और काली कमाई करने वालों के चंगुल से मुक्त करके इस दीवाली हर घर की चौखट पर मिट्टी के पाँच दीये जलाकर दीवाली मनाएँ।

4 comments:

विजय जोशी said...

आदरणीया,
हमेशा की तरह इस बार भी आपने Food for Thought प्रदान कर दिया। मैंने तो आरम्भ से ही कहा है कि देश के सामने दो भयानक चुनौतियां हैं। पहली Patriotism और दूसरी Integrity. इसी के अभाव में हम यंत्रवत खड़े हैं।
- विदेशों में तो रिश्वत की पेशकश जेल भिजवा देती है और यहां तो एक जमाने में शिष्टाचार से आरंभ होकर व्यवहार की यात्रा तय करते यह अत्याचार तक आ पहुंचा है।
- अनोखी Law & Order व्यवस्था। पैसा ला और ऑर्डर ले जा।
- डिजिटल इंडिया में केंद्र स्तर पर समाप्त प्रायः। मेरा अपना ITR का refund सात दिन में आ गया, जो पहले दान दक्षिणा का मोहताज हुआ करता था।
- खैर बात की लंबाई को समेटने के यत्न के साथ आपको ज्वलंत विषय पर ज्वाला जाग्रत करने हेतु हार्दिक बधाई एवं आभार। सादर 🌷🙏🏽
- सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
- मेरी कोशिश है कि सूरत बदलनी चाहिए
(बतर्ज दुष्यंत)

nilambara.shailputri.in said...

प्रासंगिक और उत्कृष्ट विचार।

nilambara.shailputri.in said...

प्रासंगिक और उत्कृष्ट विचार।

Anonymous said...

ज्वलंत समस्याओं पर उम्दा विचार। बधाई