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Oct 1, 2022

सामयिकः कार्पोरेट गिफ्ट में छिपी सम्बंध प्रगाढ़ करने की कला

- डॉ. महेश परिमल

दीपावली के इस त्योहार पर कार्पोरेट कंपनियों के गिफ्ट की खूब चर्चा होती है। इस उपहार से सम्बंधों को सुदृढ़ एवं प्रगाढ़ करने में मदद मिलती है। लोग पिछली भूलों को याद न करते हुए सम्बंधों को एक नया आयाम देने की कोशिश करते हैं। हर कंपनी गिफ्ट के लिए एक विशेष बजट तैयार करती है। बड़ी-बड़ी कंपनियों के डायरेक्टर अपने व्यावसायिक संबंधों को बनाए रखने के लिए स्वयं ही उन्हें अपने हाथों से गिफ्ट देते हैं।

त्योहार के समय मुँह मीठा करना एक परंपरा है; इसलिए पहले गिफ्ट में मिठाइयाँ हुआ करती थीं, उसके बाद सूखे मेवों की परंपरा शुरू हुई। अब इलेक्ट्रॉनिक्स चीजें देने की सिलसिला शुरू हुआ है। गिफ्ट के हर पैकेट से सम्बंधों की नई शुरुआत ही नहीं, बल्कि सम्बंधों को सुधारने और उसे मजबूती देने का संदेश होता है। अब गिफ्ट देना बिजनेस का एक आवश्यक अंग हो गया है। आज हर व्यापारी यह अच्छी तरह से जानता है कि समय ऐसा भी आता है, जब धूल भी बिक जाती है। इस दिशा में गिफ्ट जो काम करते हैं, उससे सम्बंधों की मजबूती को एक नई विकसित राह मिल जाती है। इससे उनके बिजनेस को एक नई ऊँचाई भी मिल जाती है। गिफ्ट का यह सिलसिला दीपावली से लेकर नए साल तक चलता रहेगा। लोग आपस में परस्पर गिफ्ट देकर मेलजोल बढ़ाने का जरिया तलाशते हैं। यह एक अवसर है, जिससे लोग सम्बंधों की नई राह बनाते हैं।

कार्पोरेट गिफ्ट कंपनी की इम्प्रेशन बनाता है। इससे व्यापारियों से अच्छे सम्बंध उजागर होते हैं। कई कंपनियाँ अपने प्रतिनिधियों को गिफ्ट लेकर भेजती हैं, तो कई बिजनेसमेन स्वयं ही गिफ्ट अपने हाथों से देते हैं। उपहार के इस लेन-देन में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होता। उपहार का चयन करने के लिए बाकायदा एक कमेटी भी बनाई जाती है। काफी विचार-विमर्श के बाद उपहार तय होता है। इसमें यह तय किया जाता है कि समय के अनुसार आज कौन-सा उपहार लोगों को प्रभावित कर सकता है। इस प्रक्रिया को ‘ब्रेन स्टार्मिंग’ कहते हैं। जिसमें उपहार की उपयोगिता पर काफी बहस होती है। 

दीपावली पर उपहार के बतौर पहले मिठाइयों का चलन था। उसके बाद लोग ड्राइफ्रूट्स देने लगे। अब बड़ी-बड़ी कंपनियाँ मिठाई और ड्राइफ्रूट्स से एक कदम आगे बढ़कर इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम देने लगे हैं। उदाहरण के लिए हेड फोन या फिर लक्ष्मीजी की छोटी-सी प्रतिमा आकर्षक पेकिंग के साथ दिए जाने लगे हैं। उपहार के इस लेन-देन में दोनों पक्षों को खुशी होती है। दोनों पक्ष एक-दूसरे के लिए सद्भावना व्यक्त करते हैं। दोनों ही एक-दूसरे को अपनी गुड बुक में स्थान देते हैं। गिफ्ट के बारे में हार्वर्ड बिजनेस के रिव्यू में लिखा गया है कि बिजनेस के लिए सम्पर्क में आने वाले सभी लोगों की एक सूची बनाई जाती है। जिन्हें भी एक छोटा-सा ही सही उपहार मिलता है, तो उसकी खुशी बढ़ जाती है। यह उपहार उनके मस्तिष्क में अंकित हो जाता है। उससे अच्छे विचारों का प्रवाह शुरू हो जाता है। आश्चर्य इस बात का है कि गिफ्ट लेने से कोई इंकार भी नहीं करता।

कार्पोरेट गिफ्ट की एक खासियत यह होती है कि वह दो प्रकार के गिफ्ट तैयार करती है। जिसमें साधारण लोग, जिनकी कंपनी को बहुत ही कम आवश्यकता होती है और दूसरे वह विशिष्ट लोग, जिनके साथ कंपनी के व्यावसायिक सम्बंध होते हैं। ऐसे लोगों के लिए कंपनी कुछ महँगे गिफ्ट तैयार करती है। इन उपहारों के पीछे धंधे को एक नई ऊँचाई देने की भावना छिपी होती है। आज के जमाने में उपहार को हम रिश्वत का परिष्कृत रूप भी कह सकते हैं। जिसे उपहार दिया जा रहा है,

वह कुछ देर के लिए उपकृत हो ही जाता है। उपहार देने वाले को वह हमेशा याद रखता है। उपहार देने वाले के लिए वह अतिरिक्त समय भी देता है। बाद में यही उपहार अपने काम को सिद्ध करने में सहायक भी होता है। अपना काम साधन की दिशा में उपहार देना पहला कदम माना जाता है। गिफ्ट देना आज लोग अपनी शान समझते हैं। इसे देकर तो राहत मिलती ही है, पर लेने वाला भी राहत ही महसूस करता है। आज यह परंपरा समाज के लिए बहुत ही आवश्यक अंग बन गई है।

पुलिस विभाग के अधिकारियों एवं नेताओं के यहाँ कार्पोरेट कंपनी के इतने अधिक गिफ्ट पहुँचते हैं कि उसे ले जाने के लिए विशेष प्रकार के वाहन की व्यवस्था करनी होती है। कई बार इनके घर पहुँचने वाली मिठाइयाँ इतने दिनों तक रह जाती हैं कि उसमें फंगस लग जाती है। वे उसका इस्तेमाल ही नहीं कर पाते हैं। दूसरी ओर कई लोग ऐसे भी होते हैं, जो अपने उपहारों को अपने से छोटे या जरूरतमंदों के बीच बाँटकर खुशियाँ प्राप्त करते हैं। यह सच है कि उपहार सम्बंधों को मजबूत बनाने का काम करते हैं। उपहारों से कटुता कम होती है। एक अच्छी भावना का संचार होता है। अच्छे सम्बंधों की राह खुलती है। मेल-मिलाप बढ़ाने का एक अवसर मिलता है। उपहार से ही पता चल जाता है कि सामने वाले की क्या मंशा है, उसके विचार कैसे हैं? उपहार प्राप्त करने वाला और उपहार देने वाला दोनों ही खुश होते हैं। कंपनी का मालिक या डायरेक्टर अपने हाथों से यदि कर्मचारी को उपहार देता है, तो कर्मचारी स्वयं को धन्य समझता है। ऐसे में यदि उपहार मामूली है, तो व्यक्ति भी मामूली बन जाता है। यहाँ अच्छी भावना काम नहीं आती। अमीर आदमी यदि सस्ता उपहार दे, तो यह उसकी अमीरी पर एक तमाचा साबित होती है। पर गरीब यदि महँगा उपहार दे, तो लोग उसकी नीयत पर शक करने लगते हैं।  यही है उपहार के पीछे का गणित।

2 comments:

ऋता शेखर 'मधु' said...

सुन्दर प्रभावी सार्थक आलेख !

Anonymous said...

सुंदर सार्थक आलेख। हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर