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Sep 1, 2022

ग़ज़लः रोज बहाने


  - विज्ञान  व्रत

1.

उनकी    यादों    के    तहख़ाने

यानी   कुछ   नायाब    ख़ज़ाने

अब  वो  किसकी  बात  सुनेंगे

ख़ुद   ही   जाऊँगा    समझाने

रोज़   जहाँ   मिलते  थे   दोनों

अब   हैं   वो  मशहूर   ठिकाने

उनकी   कुछ   मजबूरी    होगी

रोज़    बहाने       रोज़    बहाने

अब  उनमें   ही   रहता   हूँ   मैं

मुझको  रक्खें   ठीक - ठिकाने

कल तक  मेरा  हिस्सा   थे  जो

        आज   हुए    हैं     वो     बेगाने       

 2.

जब    उन्हें    महसूसता     हूँ

रब     उन्हें     महसूसता    हूँ

मैं   रहा   अहसास    जिनका

अब    उन्हें    महसूसता    हूँ

अब  किसी  को  क्या  बताऊँ

कब    उन्हें     महसूसता    हूँ

आज  जो  हस्सास   हूँ    कुछ

तब    उन्हें     महसूसता     हूँ

आज   अपनी    ज़िन्दगी   का

ढब    उन्हें     महसूसता     हूँ

सम्पर्कः एन - 138 , सैक्टर - 25 ,  नोएडा - 201301, मो. 09810224571

3 comments:

साधना said...

बेहद गहरी महसूसता.... सुंदर प्रस्तुति।

भीकम सिंह said...

बेहतरीन ।

शिवजी श्रीवास्तव said...

यादों को सहेजती प्रेम की सुंदर गज़लें।