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Aug 1, 2022

आजादी का अमृत महोत्सवः नारी शक्ति का पुण्य स्मरण

- अनिमा दास  ( कटक)

पराधीन भारतवर्ष को यदि वीर पुरुषों की आवश्यकता थी, तो निडर एवं निस्वार्थ स्त्रियों की भी आवश्यकता थी। केवल घर संसार बसाकर जीवन व्यतीत करना एक स्त्री का धर्म नहीं होता है; यह प्रमाणित किया है कई महिला स्वाधीनता संग्रामियों ने। देशभर में जब महात्मा गांधी जी के आह्वान से पुरुषों ने प्राण का बलिदान दे रहे थे, तभी कई महिलाएँ स्वयं को इस यज्ञ में समिधा बनाकर होम कर रहीं थीं। हमें सदैव इन नारी आंदोलनकारियों का श्रद्धा से स्मरण करना चाहिए। ऐसे ही ओड़िशा में भी कई नारियों ने स्वाधीन भारत के स्वप्न में स्वयं के स्वप्नों को सम्मिलित किया।

1. रमादेवी चौधरी
रमादेवी चौधरी, ओड़िआ की सर्वप्रथम स्वतंत्रता संग्राम की सेनानी थीं। ओड़िशा के सत्यभामापुर जैसे एक छोटे से गाँव में उनका जन्म 1899 में हुआ था। उनको शैशव काल में उत्तम शिक्षा प्राप्त नहीं हो सकी। 15 वर्ष के आयु में उनका विवाह गोपबंधु चौधरी से हुआ। 1921 में दोनों अपने दाम्पत्य जीवन की चिंता न करते हुए गांधीजी के स्वतंत्रता संग्राम में सम्मिलित हुए। गाँव-गाँव में जाकर प्रत्येक महिला को इस युद्ध में सहयोग देने हेतु उत्साहित करती रही रमादेवी। सन् 1921 में गांधीजी के असहयोग आंदोलन में योगदान देकर वह आगे बढ़ती रही। 1930 में नमक सत्याग्रह में उन्होंने सहर्ष सहभागिता की एवं ओड़िशा में इस सत्याग्रह को सफल भी किया। वह एवं उनके कई सहयोगियों को अंग्रेजो ने 1930 में कारावास का दण्ड भी दिया। रमादेवी, कई बार अपनी महिला सहयोगियों जैसे-सरला देवी एवं मालती चौधरी, के साथ जेल गई।

हरिजनों एवं अन्य पिछले वर्गों के लिए अति सक्रियता से रमादेवी लड़ती रही। भारत छोड़ो आंदोलन में पति गोपबंधु चौधरी एवं उनके परिवार समेत कई लोग 1942 में बंदी बनाए गए। कस्तूरबा गांधी की मृत्यु के पश्चात् रमादेवी को महात्मा गांधीजी ने ओड़िशा के कस्तूरबा ट्रस्ट का प्रतिनिधित्व प्रदान किया। जुलाई 22, 1985 में उनका देहावसान हुआ। रमादेवी चौधरी के नाम पर भुवनेश्वर में रामदेवी यूनिवर्सिटी भी है।

2. अन्नपूर्णा महाराणा

अन्नपूर्णा महाराणा जो कि 'चुनी अपा' नाम से विख्यात थीं। इनका जन्म 1917 में हुआ था एवं ओड़िशा में चल रहे स्वतंत्रता संग्राम में वह ओड़िशा की प्रतिष्ठित 'वानर-सेना' की सदस्या थीं। स्वतंत्र भारत वर्ष गठन करने के संघर्ष में समर्पित कई बालकों का यह समूह था। अन्नपूर्णा, गोपबंधु दास से इतनी प्रभावित थी कि समाज के पिछड़े वर्गों की सेवा में जीवन समर्पित कर दिया था। ब्रिटिश सरकार के द्वारा प्रथम बार वर्ष 1930 में उन्हें कारावास दिया गया; क्योंकि नमक सत्याग्रह में उनकी अत्यंत सक्रिय भूमिका थी। जीवनभर अन्नपूर्णा जी समाज को दरिद्रता, अंधविश्वास एवं निरक्षरता से मुक्त करने में प्राण पण से कार्य करती रही। 31 दिसम्बर, 2012 को, उनके कटक स्थित गृह में उनका देहवसान हुआ।

3. मालती चौधरी

ओड़िशा की अन्येक पुत्री, स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना मालती चौधरी का जन्म 26 जुलाई 1904 को हुआ था।

1934 में मालती चौधरी ने महात्मा गांधीजी की सुसंगठित पदयात्रा में योगदान देकर ओड़िशा में इसे सफल बनाया था। वर्ष 1946 में, ओड़िशा के अंगुल में उन्होंने बाजीराऊत छात्रावास एवं वर्ष 1948 में उत्कल नवजीवन मंडल का गठन किया था। बाजीराऊत छात्रावास स्वतंत्रता सेनानियों, हरिजनों, आदिवासियों तथा अन्य पिछड़े वर्गों के बच्चों की शिक्षा-प्राप्ति के उद्देश्य से बनाया गया था। एक शृंखलित समाज गढ़ने में उपयुक्त शिक्षा का दान करने के साथ ही उन्होंने आचार्य विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में भी सक्रिय योगदान किया। गांधीजी स्नेह से उन्हें 'तूफानी' नाम से बुलाते थे। वर्ष 1921, 1936, 1942 में मालती चौधरी को कई बार बंदी बना कर कारागार में डाला गया।

स्वतंत्रता संग्राम की इस नारी योद्धा की मृत्यु 15 मार्च 1998 को हुई।

ओड़िशा की इन देशभक्त, देश के लिए समर्पित एवं देशप्रेम की निष्ठा में रत महिलाओं को कोटि-कोटि नमन।

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3 comments:

Sonneteer Anima Das said...
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भीकम सिंह said...

आजादी के अमृत महोत्सव के परिप्रेक्ष्य में ओडिशा की महिला स्वतंत्रता सेनानियों की संक्षिप्त ही सही किन्तु महत्वपूर्ण जानकारी देने के लिए अनिमा दास जी का हार्दिक धन्यवाद ।रमादेवी चौधरी, अन्नपूर्णा महाराणा, मालती चौधरी अमर रहे और अनिमा दास जिन्दाबाद ।

Sonneteer Anima Das said...

जी सर सादर धन्यवाद 🌹🙏😊