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Jul 1, 2022

उदंती.com, जुलाई- 2022

वर्ष - 14, अंक - 11

हज़ार बर्क़ गिरे लाख आँधियाँ उट्ठें

वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं

                          - साहिर लुधियानवी

इस अंक में

अनकहीः क्या हम भ्रष्टाचार रोक पाएँगे... -डॉ. रत्ना वर्मा

समाजः अमेरिका में बंदूक संस्कृति के दुष्परिणाम - प्रमोद भार्गव

आधुनिक बोध कथा- 7ः  तेरी बारी - सूरज  प्रकाश

रहन- सहनः वृद्धावस्था में देखभाल का संकट - जुबैर सिद्दिकी

हाइबनः सर्कस का शेर - भीकम सिंह

 विनोद साव से बातचीत  व्यंग्य हिन्दी साहित्य का एक नवोन्मेष है- राजशेखर चौबे

ग़ज़लः सोचा नहीं - धर्मेन्द्र गुप्त

यादेंः जीवन के सफर में राही, मिलते हैं बिछड़ जाने को... - वीणा विज ‘उदित’

मालवी लोककथाः तीन प्रश्न - चंद्रशेखर दुबे

कहानीः माँ से मायका - डॉ. रंजना जायसवाल

क्षणिकाएँः मेरे कमरे की खिड़की - प्रीति अग्रवाल

व्यंग्यः पद्मश्री और मैं - यशवन्त कोठारी

कविताः परिंदा -स्वाति शर्मा 

लघुकथाः एक रिश्ता यह भी - डॉ. उमेश महादोषी

लघुकथाः नेताजी गाँव में - विजयानंद विजय

कविताः अक्सर याद आता है गाँव - लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव

चोकाः मन्नत के जो धागे - रश्मि विभा त्रिपाठी

किताबेंः धन्य हैं लोकतंत्र के धकियारे! - मुकेश राठौर

प्रेरकः जितनी लम्बी चादर, उतने ही पैर पसारें - निशांत

जीवन दर्शनः क्षितिज पर ऊँटों की आहट - विजय जोशी

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