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Mar 1, 2022

कविता- बेटी एकः रूप अनेक

  - चक्रधर शुक्ल

1.

बेटी

घर में

आशा की किरण बनी,

नवरात्र में

देवी शरण में

जगमग ज्योति जली !

2.

बेटी

माँ-बाप का

बुढ़ापे में

सहारा बनी,

जीवन की बगिया खिली !

3.

बेटी

नीलगगन में

उड़ान भर रही,

अपने पैरों

खड़ी  हो रही  !

4.

बेटी

दोनों परिवार का संबल

दोनों को सँभाले,

कल के लिए

कोई काम नहीं टाले !

5.

बेटी

माँ, पत्नी, भाभी, बहन का

रोल ही नहीं निभाती,

ज़िन्दगी की नाट्यशाला को

हकीकत  बनाती !

सम्पर्कः एल आई जी-1 सिंगल स्टोरी, बर्रा -6 कानपुर- 2080, मो. 9455511337, chakradharshukl78@gmail।com

1 comment:

उमेश महादोषी said...

सुंदर क्षणिकाएँ।