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Mar 1, 2022

व्यंग्य- ऑनलाइन कार्यक्रम के लिए ऑफलाइन हिदायतें


  -जवाहर चौधरी

  कविता कैसी भी हो चलेगी, लेकिन कुरता साफ, स्तरी किया हुआ होना चाहिए। पिछली बार आपके कुरते पर पान की पीक गिरी दिख रही थी। दाढ़ी रखते हैं ! अच्छी बात हो सकती है, लोग कहते हैं कि कवियों को रखना चाहिए, लेकिन ठीक से सेट करवा लीजिएगा। वो क्या है स्क्रीन पर तो आदमी को जेंटल-मेन लगना चाहिए। परफ्यूम या डियो लगाने की कोई जरुरत नहीं है। नीचे आपने पायजामा पहना हो या पतलून, या फिर लुंगी या कुछ भी नहीं, इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन ध्यान रहे कार्यक्रम ऑन लाइन होगा और आपको अपने चेहरे के आलावा कुछ भी दिखाने का प्रयास नहीं करना है। पीछे बैगराउंड आप अपनी पसंद का रख सकते हैं, किताबों की अलमारी हो, तो आपके लिए अच्छा है। आपके पास डॉगी हो तो उसे पास में नहीं बैठाएँ। पिछली दफा एक साहित्यकार लगातार अपने डॉगी से नोजी लड़ाते रहे और लोग समझ नहीं पाए कि कौन किसका मुँह चाट रहा है। बार- बार उठता ये सवाल नेट का कीमती समय चाट गया। ऑनलाइन कार्यक्रम में जुड़े सारे लोग भी कवि होते हैं; इसलिए दाद नहीं मिलने की जोखिम ज्यादा होती है। बावजूद इसके कठ्ठा-जी करके आपको मुस्कराते रहना है, जैसा कि हमारी टीवी वाली एन्कर करती हैं। दुनिया लेन-देन पर चलती है। आपको दाद तभी मिलेगी जब आप दूसरे को देंगे। अगर आपको किसी की कविता पसंद नहीं आए, तो भी थोड़ी बहुत दाद अवश्य दीजिए। जेब से क्या जाता है, इसे ऑनलाइन शिष्टाचार मानिए। जैसे कि लोग अपने मेहमान को दोबारा नहीं चाहते हैं; लेकिन उसे ‘और आइएगा’ अवश्य कहते हैं। 

  पिछली दफा आपने एक मंच पर कवयित्री देवी की साड़ी की तारीफ में दो गुलूगुलू गजलें ठोक दी थीं। साड़ी आपको पसंद आई, गजलें देवीजी को पसंद आईं; लेकिन ये दोनों बाते कवयित्री के पतिदेव को पसंद नहीं आईं। पति की इस नापसंदगी पर कुपित हो।कर देवी ने अब तक पचास से ज्यादा कविताएँ लिख मारी हैं। सिलसिला अभी थमा नहीं है। डर है कि कवयित्री का यह आन्दोलन किसान आन्दोलन की तरह लम्बा खिच सकता है। पतिदेव डाक्टरों के सम्पर्क में हैं और सुना है किसी कारगर वेक्सिन की तलाश में लगे हुए हैं। अगर वे कहीं सफल हो गए,  तो लोग डीपीटी के साथ इस वेक्सिन को भी लगवाने लगेंगे और हो सकता है कि भविष्य में मंचों को मँजी हुई कवयित्रियाँ  मिलना ही बंद हो जाएँ। सो प्लीज ऑनलाइन कवयित्रियों को देखकर आगे से ऐसा खतरनाक कुछ न करें। इसे साहित्य में आपका बड़ा योगदान माना जाएगा।

  आपको पूरे समय याद रखना है कि कार्यक्रम लाइव जाता है; इसलिए चलते कार्यक्रम में यथासंभव पानी के आलावा कुछ न पिएँ। चाय-कॉफ़ी पीनी ही पड़े, तो पूरा टी-सेट, क्रोकरी, बिस्किट-भजिया वगैरह कतई नहीं दिखाएँ। लोगों को लगता है कि हम आपको अच्छा पारिश्रमिक देते है और बाकी को सूखा निचोड़ लेते हैं। लेकिन सच्चाई का खुलासा करवाना आप भी नहीं चाहोगे। बँधी मुट्ठी ग्यारह सौ की और खुल गई तो ग्यारह की। पिछली बार आपने गले में सोने की दो तीन चेन और हाथों में कई लाल- पीली अंगूठियाँ पहन रखीं थीं। यह सच है कि
  आजकल बच्चों के रिश्ते ऑनलाइन तलाशे जाते हैं, लेकिन साहित्यिक कार्यक्रम को इसका जरिया बनाना ठीक नहीं है। इन्कमटेक्स के बहुत से अधिकारी भी इनदिनों कविता लिख रहे हैं और ऑनलाइन ताकझाँक करते हैं, इस बात का विशेष ध्यान रखने की जरुरत है .... माना कि वो सारी ज्यूलरी नकली थी। लेकिन ये बात आप जानते हैं, हो सकता है ऑनलाइन संयोजक और संचालक भी जानते हैं कि नकली है... लेकिन दर्शकों को नहीं पता होता है कि वो नकली हैं। इसी सिचुएशन में डॉन निकल भागा था और बारह मुल्कों की पुलिस हाथ मलती रह गई थी। 

  और एक अंतिम बात, कविताएँ अपनी ही सुनाएँ, चाहे कितनी दोयम दर्जा हों। विदेशी भाषा से अनूदित कविताओं के कच्चे माल से बनी या कॉपी-पेस्ट कविताएँ फ़ौरन पकड़ ली जाती हैं ....तो ठीक है कविराज, कल मिलते हैं। 

सम्पर्कः BH- 26, सुखलिया, (भारत माता मंदिर के पास) इंदौर- म.प्र. 452 010, फोन 9406 701670, jc.indore@gmail.com

1 comment:

कथाकार said...

बहुत ही उम्दा रचना। पढ़कर आनंद आ गया। ऑनलाइन ड्रिंक पार्टी जैसा। बनाए रखें।