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Mar 1, 2022

कविता- मौन उद्गार


सोनेट

- अनिमा दास 

(कटक, ओड़िशा)



मेरी आत्मा पर भी...मेरा अग्र अधिकार नहीं

मेरा स्त्री होना क्या मात्र चिरंतन अभिशाप है?

मेरा शिखर पर्यंत आना भी तुम्हें स्वीकार नहीं

मेरे अस्तित्व का चीखना क्या मात्र परिताप है?

तुम्हारी विजय मेरी है यह मैंने सदैव स्वीकारा

एवं मेरी पराधीनता ही सदा है तुम्हारा साम्राज्य

यह धार्य है एवं है कई युगों की अबाधित धारा

मेरा आत्मोद्गार सदैव समाज में रहा है त्याज्य।


मेरे अबाध्य अश्रु अब नहीं स्वीकारते समर्पण

क्योंकि मैं विलीन हो जाऊँ यही है मेरी इच्छा

हो शेष सूर्य के प्रभास में...मेरा अंतिम तर्पण

अंतिम श्वास में मौन होगी मेरी अंतिम पृच्छा।


जब होगी सृष्टि में नारी सत्ता की पूर्ण समाप्ति

तब अनिश्चित होगी निराधार जगता की व्याप्ति ।

 

6 comments:

rameshwar kamboj said...

नारी चेतना को सार्थक अभिव्यक्ति देने वाला सोनेट। बहुत बधाई अनिमा

Anima Das said...

जी सर सादर धन्यवाद 🙏🌹

VineetMohanAudichya said...

उत्कृष्ट सृजन हेतु हार्दिक बधाई आपको अनिमा जी 💐💐

Bharati Babbar said...

सुंदर भाषा में सशक्त अभिव्यक्ति, बधाई।

Anima Das said...

जी सादर धन्यवाद सर 🙏🌹

Anima Das said...

जी सादर धन्यवाद 🌹🙏😊