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Mar 1, 2022

ग़ज़ल- होली में

 
- विनीत मोहन 'फ़िक्र सागरी' 




कभी तो कुर्ब में आकर, मिलो दिलदार होली में..

मुहब्बत का जुबाँ से भी, करो इजहार होली में..

खिले हर सिम्त गुल, कचनार, जूही औ चमेली के,

फिजाँ ने भी किया है, इश्क का इकरार होली में..

अधूरे रंग खिल जाएँ, अगर हाथों से छू लो तन,

पपीहा प्रेम का कबसे, करे मनुहार होली में..

खुशी सारी ज़माने की, लगे फीकी तुम्हारे बिन,

भुला दो नफ़रतें मन की, सभी इस बार होली में ..

गुलाबी होंठ, रतनारे नयन, दहका बदन गोरा,

ये मन फागुन हुआ, करता फिरे, इसरार होली में..

करो शृंगार सोलह, यामिनी पे चाँद है ठहरा,

करे फिर इश्क की खुशबू, चमन गुलजार होली में। ।

नशा छाया, घुली मस्ती, हवा में रंग जो बिखरे,

बचाये 'फ़िक्र' फिर कैसे, कोई किरदार होली में?

सम्पर्कः एम आई जी - 118, शांति बिहार कालोनी,रजा खेड़ी, मकरोनिया, सागर, मध्य प्रदेश- 470004, मो.  91- 7974524871, Email- v।maudichya@yahoo

3 comments:

Anima Das said...

वाह्ह्ह क्या खूबसूरत कहा आपने... आपको असीम बधाई सर 🌹🙏

शिवजी श्रीवास्तव said...

वाह,बेहतरीन ग़ज़ल

प्रेम चंद गुप्ता said...

नाजनी जब भी मुस्कुराई है।
घर दीवाने के होली आई है।
आज बहकी सी है फागुन की हवा।
उसके दामन को छू के आई है।

बहुत अच्छे अशआर। बहुत मुबारकबाद।