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Mar 1, 2022

कविता- मुखड़ा हुआ अबीर

 - रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

मुखड़ा हुआ अबीर लाज से
अंकुर फूटे आस के।
जंगल में भी रंग बरसे हैं
         दहके फूल पलाश के..
 
मादकता में डाल आम की
झुककर हुई विभोर है।
कोयल लिखती प्रेम की पाती
बाँचे मादक भोर है..
 
खुशबू गाती गीत प्यार के
भौंरों की गुंजार है।
सरसों ने भी ली अँगड़ाई
पोर-पोर में प्यार है..
 
मौसम पर मादकता छाई
किसको अपना होश है।
धरती डूबी है मस्ती में
फागुन का यह जोश है..

सम्पर्कः rdkamboj@gmail.com

11 comments:

शिवजी श्रीवास्तव said...

वाह,फागुन की मस्ती में आनन्द बिखेरती प्रकृति के वैभव और उल्लास को चित्रित करती सुंदर रचना।नमन आदरणीय काम्बोज जी को।

srijan said...
This comment has been removed by the author.
Kamlanikhurpa@gmail.com said...

बहुत प्यारी रचना , एक एक पंक्ति मनमोहक

साधना मदान said...

फाल्गुन की बहकती झालर में झूलती कविता में रंगीन समां बांधा है आपने। बधाई हो

साधना मदान said...

वाह!एक चित्र, रंगों का संग, मस्ती और मकरंद की महक,,,,,सभी कुछ एक रंगीन समां में बंधा है। सजीवता कविता की विशेषता है। बधाई हो ।

Anima Das said...

वाहह!!!🌹सर अत्यंत सुंदर मोहक वर्णन फागुन का.... वाहह... 💐💐🌹🌹🙏

Krishna said...

फागुन का बहुत खूबसूरत मनमोहक चित्रण। बहुत बधाई।

mgdhn said...

लाजवाब बसंती बयार का झौंका

dr.surangma yadav said...

बहुत सुंदर।

सहज साहित्य said...

आप सबकी उत्साहवर्धक टिप्पणियों के लिए कृतज्ञ हूँ।

Bharati Babbar said...

सुंदर एवं चित्र उकेरती अभिव्यक्ति।